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________________ 10 अहंकार का भ्रम - ठंडा हो जाऊं। अभी हवाओं में आक्सीजन है, कल न रह जाए, प्रकृतेर्गुणसंमूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसुः । तो मैं समाप्त। यह मेरे भीतर जलता हुआ दीया बुझा! तो फिर इन तानकृत्स्नविदोमन्दान्कृत्स्नविनविचालयेत् ।। २९ ।। हवाओं से मैं अलग हूं? और प्रकृति के गुणों से मोहित हुए पुरुष गुण और कर्मों में एक क्षण को अलग नहीं हैं। आप जो श्वास ले रहे हैं, वह आसक्त होते हैं। उन अच्छी प्रकार न समझने वाले मूखों आपसे हवा का जोड़ है। आप प्रतिपल जुड़े हुए हैं। आप हवा में को, अच्छी प्रकार जानने वाला ज्ञानी पुरुष ही जी रहे हैं. जैसे मछली पानी में सागर में जी रही है। सागर न चलायमान न करे। रह जाए, तो मछली नहीं है। ऐसे ही आप भी हवा के सागर में जी रहे हैं। हवा न रह जाए, तो आप भी नहीं हैं। लेकिन आप कहते हैं, मैं अलग हूं। अगर आप अलग हैं, तो ठीक है, एक पांच मिनट व हुत कीमती सूत्र कृष्ण इसमें कह रहे हैं। वे कह रहे हैं. श्वास न लें और जीकर देखें। तब आपको पता चलेगा कि यह मैं ५ प्रकृति के गुणों से मोहित हुए...। उपयोगी तो था, सत्य नहीं है। इस मोहित शब्द को थोड़ा गहरे में समझना जरूरी है। हवा भी मुझसे जुड़ी है। अभी जो श्वास आपके पास थी थोड़ी | मोहित हुए अर्थात सम्मोहित हुए, हिप्नोटाइज्ड। सुना होगा आपने देर पहले, अब वह मेरे पास है। और मैं कह भी नहीं पाया कि मेरे | कि सिंह के सामने शिकार जब जाता है, तो भाग नहीं पाता, पास है, कि वह किसी और के पास चली गई। वह श्वास किसकी सम्मोहित हो जाता है, हिप्नोटाइज्ड हो जाता है, खड़ा रह जाता है; थी? आपके खून में जो अणु दौड़ रहे हैं, वे अभी आपके पास हैं, | | भूल ही जाता है कि भागना है। सिंह की आंखों में देखता हुआ कल किसी वृक्ष में थे, परसों किसी नदी में, उसके पहले किसी अवरुद्ध हो जाता है, मैग्नेटाइज्ड हो जाता है, रुक ही जाता है। बादल में थे। किसके हैं वे? आपके शरीर में जो हड्डी है, वह न भागना ही भूल जाता है। यह भी भूल जाता है कि मृत्यु सामने खड़ी मालूम कितने लोगों के शरीर की हड्डी बन चुकी है और अभी न | | है। अजगर के बाबत तो कहा जाता है कि शिकार अपने आप खिंचा मालूम कितने लोगों के शरीर की हड्डी बनेगी। उस पर जल्दी से | हुआ उसके पास चला आता है। आकाश में उड़ता हुआ पक्षी खिंचता अपना कब्जा मत कर लेना। वह आपकी क्या है? आपके पास जो हुआ चला आता है; कोई परवश, कोई खींचे चला जाता है। आंख है, वे आंख के अणु और न मालूम किन-किन आंखों के संस्कृत का यह शब्द है, पशु। इसका मतलब इतना ही होता है अणु बन चुके हैं। पूरी जिंदगी इकट्ठी है। कि जो पाश में बंधा हुआ खिंचा चला आता है, उसे पशु कहते हैं। जब कृष्ण कहते हैं यह कि अज्ञानीजन अपने को अहंकार में | | जैसे एक गाय को हमने बांध लिया रस्सी में और खींचे चले आ बांधकर व्यर्थ फंस जाते हैं, तो उसका मतलब केवल इतना है। | रहे हैं। गाय पाश में बंधी हुई खिंची चली आती है। ऐसे ही प्रत्येक इसका मतलब यह नहीं है कि कष्ण मैं का उपयोग न करेंगे। कष्ण व्यक्ति प्रकति के गणों में खिंचा हआ पश की तरह वर्तन करता है. भी उपयोग करेंगे, उपयोग तो करना ही पड़ेगा। लेकिन उपयोग को | मोहित हो जाता है, हिप्नोटाइज्ड हो जाता है। इसमें दो-तीन बातें कोई सत्य न मान ले। उपयोग तो करना ही पड़ेगा, लेकिन उपयोग | हिप्नोटिज्म की खयाल में लें, तो खयाल में आ सकेगा। को कोई पकड़कर यह न समझ ले कि वही सत्य है। बस, इतना एक चेहरा सुंदर लगता है आपको, खिंचे चले जाते हैं। लेकिन स्मरण रहे, तो जीवन से आसक्ति कम होनी शुरू हो जाती है। कभी आपने सोचा है कि चेहरे में क्या सौंदर्य हो सकता है! आप क्योंकि आसक्ति वहीं है, जहां मैं है। मेरा वहीं है, जहां मैं है। अगर | | कहेंगे, होता है, बिलकुल होता है। लेकिन फिर आपको सम्मोहन मुझे यह पता चल जाए कि मेरी जैसी कोई सत्ता ही नहीं है, सब | के संबंध में बहुत पता नहीं है। मेरे एक मित्र, जिनको सुंदर चेहरों इकट्ठा है, तो मैं किस चीज को मेरा कहूं और किस चीज को पराया | | पर बड़ा ही आकर्षण था। उनसे मैंने कहा, आकर्षण है क्या सुंदर कहूं! फिर कोई चीज अपनी नहीं, कोई चीज पराई नहीं; सब उसकी चेहरों में? उन्होंने कहा, है। फिर भी मैंने कहा, क्या है? नाक थोड़ी है, सब प्रभु की है। ऐसी मनोदशा में आसक्ति विलीन हो जाती है। | लंबी होती है कि थोड़ी छोटी होती है, तो आपके हृदय की धड़कन | में क्यों फर्क पड़ता है? आंख थोड़ी बड़ी होती है कि छोटी होती है, | कि चेहरा थोड़ा अनुपात में होता है कि गैर-अनुपात में होता है, 409
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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