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________________ वर्ण व्यवस्था की वैज्ञानिक पुनर्स्थापना AM को भी पता था, महावीर को भी पता था, लाओत्से को भी पता था, | हैं, वे झूठ नहीं हैं, वे सच हैं। उनकी सचाई में रत्तीभर फर्क नहीं है। क्राइस्ट को भी पता था। लेकिन क्राइस्ट, लाओत्से, बुद्ध और | | लेकिन उन्हें बुद्धिमानी से नहीं कहा गया है। जानते हैं; जो जानते महावीर और कृष्ण ने इस भांति नहीं कहा, जिस भांति वे कहते हैं।। | हैं, वह ठीक जानते हैं। लेकिन जिनसे कहा जा रहा है, उन्हें ठीक इसलिए बद. क्राइस्ट और महावीर से तो लोगों के जीवन में मंगल से नहीं जानते। आदमी से गलत छडा लेना बहत आसान है, जरा फलित हुआ; कृष्णमूर्ति की बातों से मंगल फलित नहीं हुआ है, भी कठिन नहीं है। किसी चीज को भी गलत सिद्ध कर देना बहुत नहीं हो सकता है। इसलिए नहीं कि जो कहा जा रहा है वह गलत आसान है, जरा भी कठिन नहीं है। लेकिन सही का पदार्पण, सही है, बल्कि इसलिए कि वह जिनसे कहा जा रहा है, उनको बिना का आगमन और अवतरण बहुत कठिन है। समझे कहा जा रहा है। कृष्ण यही कह रहे हैं। वे यह कह रहे हैं कि अर्जुन, अनासक्त इसलिए चालीस-चालीस वर्ष से कृष्णमूर्ति को लोग बैठकर | | व्यक्ति को अज्ञानियों पर ध्यान रखकर जीना चाहिए। ऐसा न हो कि सुन रहे हैं। उससे कृष्णमूर्ति उनकी समझ में नहीं आए, सिर्फ अनासक्त व्यक्ति छोड़कर भाग जाए, तो अज्ञानी भी छोड़कर भाग महावीर, बुद्ध और कृष्ण उनकी समझ के बाहर हो गए हैं। उससे | जाएं। अनासक्त छोड़कर भागेगा, तो उसका कोई भी अहित नहीं है। सूरज उनकी जिंदगी में नहीं उतरा, सिर्फ जो उनके पास छोटे-मोटे | | लेकिन अज्ञानी छोड़कर भाग जाएंगे, तो बहुत अहित है। क्योंकि दीए थे, वे भी उन्होंने बुझा दिए हैं। और अब अगर उनसे कोई दीयों | अज्ञान में छोड़कर वे जहां भागेंगे, वहां फिर कर्म घेर लेगा। उससे की बात करे, तो वे सूरज की बात करते हैं। और सूरज उनकी | | कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है। दुकान छोड़कर मंदिर में जाएगा जिंदगी में नहीं है। अब अगर उनसे कोई साधना की बात करे, तो | अज्ञानी, तो मंदिर में नहीं पहुंचेगा, सिर्फ मंदिर को दुकान बना देगा। वे कहते हैं, साधना से क्या होगा? साधना से कुछ नहीं हो सकता। | कोई फर्क नहीं पड़ेगा। खाते-बही पढ़ते-पढ़ते एकदम से गीता और बिना साधना की उनकी जिंदगी में कुछ भी नहीं हुआ है! अब | पढ़ेगा, तो गीता नहीं पढ़ेगा, गीता में भी खाते-बही ही पढ़ेगा। अगर उनसे कोई उपाय की बात करे कि इस उपाय से मन शांत | अज्ञानी सत्यों का भी दुरुपयोग कर सकता है, करता है। सत्यों होगा, आनंदित होगा, तो वे कहेंगे, उपाय से कंडीशनिंग हो जाती | का भी दुरुपयोग हो सकता है और असत्यों का भी सदुपयोग हो है, संस्कार हो जाते हैं। उपाय से कुछ भी नहीं हो सकता, इससे तो | | सकता है। ज्ञानी छोड़ दे सब। अज्ञानी भी छोड़ना चाहता है, लेकिन कंडीशनिंग हो जाएगी। और नान-कंडीशनिंग उनकी हुई नहीं है | - छोड़ना चाहने के कारण बिलकुल अलग हैं। ज्ञानी इसलिए छोड़ सुन-सुनकर। सूरज उतरा नहीं! जिन दीयों से सूरज के अभाव में देता है कि पकड़ना, न पकड़ना, बराबर हो गया। चीजें छूट जाती काम चल सकता था, वे भी बुझा दिए गए हैं। सूरज निकल आए, | हैं, दे जस्ट विदर अवे। अज्ञानी छोड़ता है; चीजें छूटती नहीं, चेष्टा फिर तो दीए अपने से ही बुझ जाते हैं, बुझाने नहीं पड़ते। और जलते | करके छोड़ देता है। जिस चीज को भी चेष्टा करके छोड़ा जाता है, भी रहें, तो दिखाई नहीं पड़ते। उनका कोई अर्थ ही नहीं रह जाता, उसमें पीछे घाव छूट जाता है। वे व्यर्थ हो जाते हैं। लेकिन सूरज न निकले, तो छोटे-से दीए भी | जैसे कच्चे पत्ते को कोई वृक्ष से तोड़ लेता है, कच्ची डाल को काम करते हैं। | कोई वृक्ष से तोड़ लेता है, तो पीछे घाव छूट जाता है। पका पत्ता भी बुद्ध और महावीर में ज्यादा करुणा है, कृष्णमूर्ति के बजाय। | टूटता है, लेकिन कोई घाव नहीं छूटता। पके पत्ते को सम्हलकर कृष्ण और क्राइस्ट में ज्यादा करुणा है, कृष्णमूर्ति के बजाय। करुणा | छूटना चाहिए, कच्चे पत्तों को टूटने का खयाल न आ जाए। कच्चे इस अर्थों में कि वे निपट सत्य को निपट सत्य की तरह नहीं कह दे | पत्ते भी टूटने के लिए आतुर हो सकते हैं। पके पत्ते का आनंद देखेंगे रहे हैं, आप पर भी ध्यान है कि जिससे कह रहे हैं, उस पर क्या हवाओं में उड़ते हुए और खुद को पाएंगे बंधा हुआ। और पका पत्ता होगा। सवाल यही महत्वपूर्ण नहीं है कि मैं कह दूं सत्य को। सवाल हवाओं की छाती पर सवार होकर आकाश में उठने लगेगा, और यह भी महत्वपूर्ण है, परिणाम क्या है? इससे होगा क्या? उससे पका पत्ता पूर्व और पश्चिम दौड़ने लगेगा, और पके पत्ते की जो होगा, वह ज्यादा महत्वपूर्ण है, बजाय मेरे कह देने के। क्योंकि स्वतंत्रता-वृक्ष से टूटकर, मुक्त होकर-कच्चे पत्तों को भी अंततः मैं कह इसलिए रहा हं कि कछ हो. और वह मंगलदायी हो। | आकर्षित कर सकती है। वे भी टटना चाह सकते हैं। वे भी कह फ्रायड ने, डार्विन ने, कृष्णमूर्ति ने सारे जगत में जो बातें कही | सकते हैं, हम भी क्यों बंधे रहें इस वृक्ष से! टूटे। लेकिन तब पीछे 1399
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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