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________________ TA पूर्व की जीवन-कला : आश्रम प्रणाली -m भी चल ले, तो भी रास्ते पर ही है। अभी मंजिल पर कहां पहुंचा? है। वह खड़ा नहीं है, वह चल रहा है। न तो वह नीचे की भूमि पर अभी तो रास्ते पर ही है। अभी मंजिल कहां आई? तो एक अर्थ में है, न अभी ऊपर पहुंच गया है। अभी वह गिर सकता है वापस; तो निन्यानबे कदम पर खड़ा हुआ आदमी भी रास्ते पर है, मंजिल अभी वह सीढ़ियों पर ही रुक सकता है; अभी वह पहुंच भी सकता पर नहीं है। और एक अर्थ में पहले कदम पर खड़ा हुआ आदमी | है। सब संभावनाएं खुली हैं। भी मंजिल पर है, क्योंकि एक कदम तो मंजिल पा ही ली। एक अनासक्ति का प्राथमिक कदम तो साधना का होगा, अंतिम कदम तो कम हुआ। कदम सिद्धि का होगा। लेकिन पहचान क्या होगी? जब तक तो साधना और सिद्धि. रास्ते और मंजिल की तरह हैं. आपको स्मरण रखना पडे अनासक्ति का, तब तक साधना है: और अनासक्ति दोनों है। जब आप शुरू करेंगे, तब वह साधना है; और | जब स्मरण की कोई जरूरत न रह जाए, तब सिद्धि है। जब तक जब पूर्ण होगी, तब वह सिद्धि है। जब आप शुरू करेंगे, पहला | आपको खयाल रखना पड़े कि अनासक्त रहना है, तब तक साधना कदम रखेंगे, तब तो साधना ही है, तब तो साधना ही रहेगी वह। है। जब आपको खयाल न रखना पड़े, आप कैसे भी रहें, चूकेंगे, भूलेंगे, भटकेंगे, गिरेंगे। कभी चित्त विरक्त हो जाएगा, अनासक्ति ही पाएं, तब समझना सिद्धि है। कभी आसक्त हो जाएगा। फिर संभलेंगे, फिर पहचानेंगे कि यह तो एक जापानी गुड्डा देखा होगा आपने; बाजार में मिलता है; उसे विरक्ति हो गई, यह तो आसक्ति हो गई। खरीदकर रख लेना चाहिए। दारुमा डाल्स कहलाते हैं वे गुड्डे। नीचे . और ध्यान रहे. आसक्ति उतना धोखा न देगी अनासक्ति का. चौडे होते हैं और उनके पैरों में सीसा भरा होता है। कैसे ही फेंको जितना विरक्ति देती है। क्योंकि विरक्ति में ऐसा लगता है, यह तो उसको, वह सदा पालथी मारकर बैठ जाता है सिद्धासन में। कहीं भी अनासक्ति हो गई। विरक्ति जल्दी धोखा देती है। आसक्ति तो | पटको, कुछ भी करो; वह वापस अपनी जगह बैठ जाता है। यह इतना धोखा नहीं देती; क्योंकि आसक्ति हमारा अनुभव है। विरक्ति सिद्ध है। यह दारुमा डाल जो है न, यह सिद्ध है। इसको तुम कुछ अपरिचित है। तो अनेक लोग वैराग्य को ही अनासक्त-भाव समझ | भी करो, यह अपनी पालथी मारकर अपनी जगह बैठ जाता है। लेते हैं। धोखे पड़ेंगे, भूल होगी, कई दफा लगेगा कि पहुंचे-पहुंचे यह दारुमा शब्द बड़ा अदभुत है। हिंदुस्तान से एक फकीर चौदह और एकदम फिसल जाएंगे और पाएंगे कि वहीं खड़े हैं; पोलेरिटी सौ साल पहले चीन गया, उसका नाम था बोधिधर्म। वह एक में वापस आ गए, ध्रुव में वापस गिर गए। अनासक्त व्यक्ति था; थोड़े से फूलों में से एक, जो मनुष्य जाति में अनासक्ति का पहला कदम तो साधना ही बनेगा। साधना का खिले। बोधिधर्म का जापानी नाम दारुमा है। बोधिधर्म को देखकर मतलब, अभी आश्वस्त नहीं हुए कि पहुंच गए; चल रहे हैं। वह गुड़िया बनाई गई। क्योंकि बोधिधर्म को कुछ भी करो—सोता लेकिन चलना ही तो पहुंचने के लिए पहला चरण है। जो चलेगा | है, तो अनासक्त; जागता है, तो अनासक्त; कुछ भी करे, नहीं, वह तो पहुंचेगा ही नहीं। चलना तो पड़ेगा ही। लेकिन चलना अनासक्त-उसको कहीं से पटको, कुछ भी करो, वह वापस ही पहुंच जाना नहीं है। यह भी खयाल रख लेना जरूरी है। जिस अपनी अनासक्ति में ही रहता है। इसलिए फिर यह गुड़िया बनाई दिन चलने का अंत होगा, उस दिन पहुंचना होगा। अब इसमें बड़ी गई। यह दारुमा डाल जो है, यह एक बहुत बड़े सिद्धपुरुष के रूप उलटी बातें कह रहा हूं मैं। जो चलेगा, वही पहुंच सकता है। जो | में बनाई गई। चलता ही रहेगा, वह कभी नहीं पहुंचेगा। जो नहीं चलेगा, वह कभी वह गुड़िया अपने घर में रखनी चाहिए। उसे लुढ़काकर देखते नहीं पहुंचेगा और जो नहीं-चलने में पहुंच जाता है, वही पहुंच गया | रहना चाहिए। वह वापस अपनी पोजीशन में आ जाती है। आप है। लेकिन यह बिलकुल अलग-अलग तल पर बात है, लेवल्स कुछ भी उपाय करें, उसकी पोजीशन नहीं मिटा सकते। जब अलग हैं। आपको अपने भीतर ऐसा लगे, कुछ भी हो जाए-दुख आए, नीचे खड़ा है एक आदमी सीढ़ियों के, वह भी खड़ा है। सीढ़ियां सुख आए, सफलता, असफलता, कोई जीए, कोई मरे, तूफान टूट पार करके जो आदमी छत पर खड़ा हो गया है, वह भी खड़ा है। जाए, बैंक्रप्ट हो जाएं, दिवालिया हो जाएं, मौत आ जाए-कुछ दोनों सीढ़ियों पर नहीं हैं। लेकिन एक सीढ़ियों के नीचे है, एक | भी हो जाए, आपके भीतर का दारुमा डाल जो है, आपकी चेतना सीढ़ियों के ऊपर है। जो सीढ़ियों के बीच में है, वह दोनों जगह नहीं जो है, वह हमेशा सिद्धासन लगाकर बैठी रहती है, उसमें कोई फर्क 1381
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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