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________________ - पूर्व की जीवन-कलाः आश्रम प्रणाली - करते हैं, जैसे आज हम साइंस, विज्ञान शब्द का प्रयोग करते हैं। हो पाता। जीवन का एक अनिवार्य नियम है, हम जिसे ठीक से जान अगर आप एलोपैथिक चिकित्सक के पास जाते हैं, तो हम कहेंगे, लेते हैं, उससे मुक्त हो जाते हैं। जिसे हम ठीक से नहीं जानते, आप विज्ञान-सम्मत चिकित्सा करवा रहे हैं। और अगर आप किसी | उससे हम कभी मुक्त नहीं हो पाते। नीमहकीम से इलाज करवाने जाते हैं, तो हम कहेंगे, आप अब यह बड़ी उलटी बात मालूम पड़ेगी कि पच्चीस वर्ष तक हम विज्ञान-सम्मत चिकित्सा नहीं करवा रहे हैं। कृष्ण जब भी कहते हैं व्यक्ति को ब्रह्मचर्य की साधना में से गुजारते थे, ताकि वह शास्त्र-सम्मत, तो कृष्ण का अर्थ शास्त्र से यही है। शास्त्र का अर्थ | | कामवासना से किसी दिन मुक्त हो सके। पच्चीस वर्ष हम उसे भी गहरे में यही है। उस दिन तक जो भी जानी गई साइंस थी, उस | ब्रह्मचर्य साधना में रखते थे, ताकि वह पच्चीस वर्ष काम-उपभोग दिन तक जो भी जाना गया विज्ञान था, उसके द्वारा जो सम्मत कर्म | की गहराई में उतर सके; वह सेक्स की जो गहरी से गहरी हैं, उस कर्म की ओर वे इशारा कर रहे हैं। अनुभूतियां हैं, उनमें जा सके। क्योंकि वही सेक्स के बाहर जा और जितना विज्ञान हम आज जानते हैं, वह एक अर्थ में | सकेगा, जो उसमें गहरा गया है। जो उसमें गहरा नहीं गया है, वह आंशिक है, टोटल नहीं है, खंडित है। हम सिर्फ पदार्थ के संबंध कभी बाहर नहीं जा सकेगा। में विज्ञान को जानते हैं, जीवन के संबंध में हमारे पास अभी कोई आज बूढ़े आदमी भी कामवासना के बाहर नहीं जा पाते हैं। विज्ञान नहीं है। कृष्ण के सामने एक पूर्ण विज्ञान था। पदार्थ और | | क्योंकि कामवासना में जाने के लिए जितनी शक्ति की जरूरत है, जीवन को खंड-खंड में बांटने वाला नहीं, अखंड इकाई में स्वीकार वही हम कभी नहीं जुटा पाते। जितनी प्रगाढ़ और जितनी इंटेंस और करने वाला। उस विज्ञान ने जीवन को चार हिस्सों में बांट दिया था। | तीव्र शक्ति चाहिए कि हम अनुभव कर सकें और अनुभव के बाहर जैसे व्यक्तियों को चार टाइप, प्रकार में बांट दिया था, ऐसे जा सकें। उतनी शक्ति ही कभी इकट्ठी नहीं हो पाती। इसलिए ये एक-एक व्यक्ति की जिंदगी को चार हिस्सों में बांट दिया था। वे पच्चीस वर्ष दोहरे अर्थ के थे। हिस्से जीवन की धारा के साथ थे। एक तो जिन व्यक्तियों को कल संसार के अनुभव में जाना है, पहले हिस्से को हम कहते थे, ब्रह्मचर्य-पच्चीस वर्ष। यदि सौ इंद्रियों के अनुभव में—कृष्ण इस वचन में कहते हैं, इंद्रियों का सुख वर्ष आदमी की उम्र स्वीकार करें, तो पच्चीस वर्ष का काल ब्रह्मचर्य | भोगते हैं जो उनके लिए भी जीवन के क्रम से ही जाना उचित है। आश्रम का था। दूसरे पच्चीस वर्ष गृहस्थ आश्रम के थे, तीसरे जीवन का अगर क्रम खंडित, टूटता, केआटिक हो जाए, अराजक पच्चीस वर्ष वानप्रस्थ आश्रम के थे और चौथे पच्चीस वर्ष संन्यास हो जाए, तो कोई भी जीवन के चरम शिखर को उपलब्ध नहीं होता आश्रम के थे। पहले पच्चीस वर्ष जीवन-प्रभात के हैं, जब कि है। इसलिए पहले पच्चीस वर्ष शक्ति के संचय के। कल फिर ऊर्जा जगती है, शरीर सशक्त होता है, इंद्रियां बलशाली होती हैं, शक्ति के व्यय के क्षण आएंगे। बुद्धि तेजस्वी होती है, जीवन उगता है-सुबह। इस पच्चीस वर्ष कभी आपने सोचा कि कमजोर आदमी कभी भी कामवासना से के जीवन को हमने ब्रह्मचर्य आश्रम कहा था। मुक्त नहीं हो पाता। जितना कमजोर, उतना काम में गिर जाता है। इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। पहले पच्चीस वर्ष संयम के।। | यह उलटी बात लगती है। लेकिन यही सच है। जितना क्यों? क्योंकि जिसके पास शक्ति है, जीवन के भोग में वही उतर | शक्तिशाली, उतना कामवासना के शीघ्र बाहर हो जाता है। इसलिए सकेगा। जो अशक्त है, वह जीवन के भोग से वंचित रह जाएगा। जितने शक्तिशाली युग थे, वे कामुक युग नहीं थे। और जितने जिसके पास जितनी शरीर संपदा, मन की संपदा है, संरक्षित शक्ति । कमजोर युग होते हैं, उतने सेक्सुअल और कामुक युग होते हैं। है, वह जीवन के रस में उतने ही गहरे जा सकेगा। इसलिए पहले | | कामवासना कमजोर करती है और कमजोरी कामवासना को बढ़ाती पच्चीस वर्ष शक्ति-संचय के वर्ष हैं, जीवन की तैयारी के। । है। शक्ति कामवासना से मुक्त करती है और कामवासना से मुक्ति और यह बहुत मजे की बात है कि जो ठीक से भोग सकेगा, वही आती है, तो शक्ति बढ़ती है। ये दोनों जुड़ी हुई बातें हैं। कमजोर ठीक से त्याग को उपलब्ध होता है। कमजोर भोग नहीं पाता, आदमी वासना के बाहर कभी नहीं जा पाता। इसलिए कभी त्याग को उपलब्ध नहीं हो पाता। असल में कमजोर | असल में कमजोर आदमी वासना में ही नहीं जा पाता, सिर्फ जान ही नहीं पाता कि भोग क्या है, इसलिए उसके पार कभी नहीं | वासना का चिंतन करता है। सेरिब्रल, मानसिक हो जाता है उसका
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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