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________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 - नहीं है। चाय पीकर वापस लौट जाएं। वह बांकेई भीतर से चाय बनाकर लाया। उसने प्रोफेसर के हाथ में कप और प्याली दी। केतली से चाय ढाली। भीतर का बर्तन पूरा भर गया, फिर भी वह चाय ढालता गया। फिर तो नीचे का बर्तन भी पूरा भर गया, फिर भी वह चाय ढालता गया। वह प्रोफेसर चिल्लाया कि रुकिए! मैं तो पहले ही समझ गया कि आपका दिमाग ठीक नहीं मालूम होता। यह चाय नीचे गिर जाएगी, अब एक बूंद चाय रखने की जगह प्याली में नहीं है! बांकेई ने कहा, यही मैं आपसे कहना चाहता था। सत्य, परमात्मा, धर्म-एक बूंद भी जगह तुम्हारे भीतर रखने के लिए है ? इतने-इतने बड़े लोगों को मेहमान बनाना चाहोगे-सत्य, परमात्मा, धर्म! जगह है? स्पेस है भीतर? लेकिन प्याली में एक बूंद जगह नहीं है, तुम्हें दिखाई पड़ता है! और तुम्हारे मन की प्याली में भी एक बूंद जगह नहीं है, यह तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता! जाओ, जगह बनाकर आओ। घबड़ाहट में प्रोफेसर चाय भी न पी सका। घबड़ाकर उठ गया। बात तो ठीक मालूम पड़ी। जाने लगा, सीढ़ियां उतरने लगा। सीढ़ियों पर से उसने कहा कि अच्छा, तो जब खाली कर लूंगा, तो आऊंगा। तो बांकेई खिलखिलाकर हंसने लगा। उसने कहा, पागल, जब तू खाली कर लेगा, तो परमात्मा खुद वहां आ जाएगा। तुझे यहां आने की कोई जरूरत नहीं है। जहां अहंकार मिटा, जहां भीतर जगह खाली हुई, इनर स्पेस, वहीं ज्ञान उतर आता है, वहीं प्रभु उतर आता है। ___ यज्ञरूपी कर्म जो करता है, उसके भीतर ज्ञान से कर्म विकसित होते, निकलते। और ज्ञान से निकला हुआ कर्म मुक्तिदायी है। शेष कल बात करेंगे। 368
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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