SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 +m करके देख लें। लेकिन अध्यात्म से इनका कोई बहुत संबंध नहीं है। संजय उवाच तो संजय कोई बहुत आध्यात्मिक व्यक्ति हो, ऐसा नहीं है; दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा । संजय विशिष्ट व्यक्ति जरूर है। वह दर यद्ध के मैदान पर जो हो | आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् ।।२।। रहा है, उसे देख पा रहा है। और संजय को इस शक्ति के कारण, इस पर संजय बोलाः उस समय राजा दुयोधन ने कोई परमात्मा, कोई सत्य की उपलब्धि हो गई हो, ऐसा भी नहीं है। व्यूहरचनायुक्त पांडवों की सेना को देखकर और द्रोणाचार्य संभावना तो यही है कि संजय इस शक्ति का उपयोग करके ही के पास जाकर, यह वचन कहा। समाप्त हो गया हो। पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् । __ अक्सर ऐसा होता है। विशेष शक्तियां व्यक्ति को बुरी तरह व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ।। ३ ।। . भटका देती हैं। इसलिए योग निरंतर कहता है कि चाहे शरीर की अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि । सामान्य शक्तियां हों और चाहे मन की-साइकिक पावर युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ।।४।। की विशेष शक्तियां हों, शक्तियों में जो उलझता है वह सत्य तक हे आचार्य, आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा नहीं पहुंच पाता। व्यूहाकार खड़ी की हुई पांडुपुत्रों की इस भारी सेना को पर, यह संभव है। और इधर पिछले सौ वर्षों में पश्चिम में देखिए । इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले, युद्ध में भीम और साइकिक रिसर्च ने बहुत काम किया है। और अब किसी आदमी | अर्जुन के समान बहुत से शूरवीर है। जैसे सात्यकि और को संजय पर संदेह करने का कोई कारण वैज्ञानिक आधार पर भी विराट तथा महारथी राजा द्रुपद। नहीं रह गया है। और ऐसा ही नहीं कि अमेरिका जैसे धर्म को धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् । स्वीकार करने वाले देश में ऐसा हो रहा हो; रूस के भी पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुंगवः ।।५।। मनोवैज्ञानिक मनुष्य की अनंत शक्तियों का स्वीकार निरंतर करते | और धृष्टकेतु, चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित चले जा रहे हैं। कुंतिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य। __ और अभी चांद पर जाने की घटना के कारण रूस और अमेरिका युधामन्युश्च विक्रांत उत्तमौजाश्च वीर्यवान् । के सारे मनोवैज्ञानिकों पर एक नया काम आ गया है। और वह यह सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः । १.६ ।। . . है कि यंत्रों पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता। और जब हम अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। अंतरिक्ष की यात्रा पर पृथ्वी के वासियों को भेजेंगे, तो हम उन्हें गहन | नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थ तान्ब्रवीमि ते ।।७।। खतरे में भेज रहे हैं। और अगर यंत्र जरा भी बिगड़ जाएं तो उनसे | और पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र हमारे संबंध सदा के लिए टूट जाएंगे; और फिर हम कभी पता भी | अभिमन्यु और द्रौपदी के पांचों पुत्र, यह सब ही महारथी हैं। नहीं लगा सकेंगे कि वे यात्री कहां खो गए। वे जीवित हैं, जीवित हे ब्राह्मण श्रेष्ठ, हमारे पक्ष में भी जो-जो प्रधान हैं, उनको नहीं हैं, वे किस अनंत में भटक गए-हम उनका कोई भी पता न | आप समझ लीजिए। आपके जानने के लिए मेरी सेना के लगा सकेंगे। इसलिए एक सब्स्टीटयूट, एक परिपूरक व्यवस्था की जो-जो सेनापति हैं, उनको कहता हूं। तरह, दूर से बिना यंत्र के देखा जा सके, सुना जा सके, खबर भेजी जा सके, इसके लिए रूस और अमेरिका दोनों की वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं अति आतुर हैं। और बहुत देर न होगी कि रूस और नुष्य का मन जब हीनता की ग्रंथि से. इनफीरिआरिटी अमेरिका दोनों के पास संजय होंगे। हमारे पास नहीं होंगे। 01 कांप्लेक्स से पीड़ित होता है, जब मनुष्य का मन ___ संजय कोई बहुत आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं है। लेकिन संजय के अपने को भीतर हीन समझता है, तब सदा ही अपनी पास एक विशेष शक्ति है, जो हम सबके पास भी है, और | | श्रेष्ठता की चर्चा से शुरू करता है। लेकिन जब हीन व्यक्ति नहीं विकसित हो सकती है। होते, तब सदा ही दूसरे की श्रेष्ठता से चर्चा शुरू होती है। यह दुर्योधन कह रहा है द्रोणाचार्य से, पांडवों की सेना में कौन-कौन
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy