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________________ Om विषय-त्याग नहीं-रस-विसर्जन मार्ग है -m लूंगा। मैं अपनी कमजोरी से परिचित हूं। मेरे भीतर मुझे कोई सुरक्षा का उपाय नहीं है। मेरे भीतर मेरे परिचय में मेरे पास कोई संकल्प नहीं है जो मैं सिगरेट से बच सकू। लेकिन मेरे मन को पीड़ा भी बहुत है। और मैं यह भी नहीं सोच पा सकता कि इतना कमजोर, इतना दीन हूं कि सिगरेट भी नहीं छोड़ सकूँगा, तो फिर मैं और क्या छोड़ सकता हूं। मैं तेरे ऊपर छोड़ता हूं। अब तू ही खयाल रखना। जब तू ही साथ छोड़ देगा, तो ही सिगरेट उठाऊंगा। हां! उठाने के पहले एक दफे तेरी तरफ आंख उठा लूंगा! फिर तीस साल बीत गए। उस आदमी ने उन्नीस सौ चालीस में वक्तव्य दिया है कि तीस साल बीत गए-सिगरेट आधी वहीं रखी है। जब भी उठाने का स्टअर्ट पैरी का मन होता है. तभी ऊपर की तरफ देखता हूं कि क्या इरादे हैं? सिगरेट वहां रह जाती है, पैरी यहां रह जाते हैं। तीस साल हो गए, अभी उठाई नहीं। और अब तीस साल काफी वक्त है, स्टुअर्ट पैरी ने कहा, अब मैं कह सकता हूं कि जो भरोसा, जो ट्रस्ट मैंने परमात्मा पर किया था, वह पूरा हुआ है। "तो कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि स्थितप्रज्ञ छोड़ देता है। उस गहरी साधना में लगा व्यक्ति, संयम की उस यात्रा पर निकला व्यक्ति अपने पर ही भरोसा नहीं रख लेता, वह परम तत्व पर भी छोड़ देता है, समर्पण कर देता है। वह समर्पण ही असंयम के क्षणों में, कमजोरी के क्षणों में सहारा बनता है। वह हेल्पलेसनेस ही, वह निरुपाय दशा ही–यह जान लेना कि मैं कमजोर हूं-बड़ी शक्ति सिद्ध होती है। और यह मानते रहना कि मैं बड़ा शक्तिशाली हूं, बड़ी कमजोरी सिद्ध होती है। इंद्रियां गिरा देती हैं उस संयमी को, जो अहंकारी भी है। इंद्रियां नहीं गिरा पातीं उस संयमी को, जो अहंकारी नहीं है, विनम्र है। जो अपनी कमजोरियों को स्वीकार करता है। जो उनको दबाता नहीं, जो उनको झुठलाता नहीं, लेकिन जो परमात्मा के हाथों में उनको भी समर्पित कर देता है। ऐसा संयमी व्यक्ति धीरे-धीरे रसों से, इंद्रियों के दबाव से, अतीत के किए गए संस्कारों के प्रभाव से, आदतों से, यांत्रिकता से-सभी से मुक्त हो जाता है। और तभी स्थितप्रज्ञ की स्थिति में आगमन शुरू होता है। तभी वह स्वयं में थिर हो पाता है। आज इतना ही। शेष कल सुबह। 265
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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