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________________ - विषय-त्याग नहीं-रस-विसर्जन मार्ग है - जहां हैं, वहां पूरे हैं; उनकी उपस्थिति पूरी है। पत्थर को भी देखते वह दूसरा यह है कि इंद्रियां मैकेनिकल हैबिट्स हैं, यांत्रिक आदतें हैं, तो पूरे ध्यान से देखते हैं। पत्थर भूल में नहीं पड़ता, यह बात | हैं। और आपने जन्मों-जन्मों में जिस इंद्रिय की जो आदत बनाई है, दूसरी है। लेकिन आदमी को देख लेते हैं, तो भूल में पड़ जाता है। जो कंडीशनिंग की है उसकी, जब आप बदलते हैं तो उसे कुछ भी स्त्री को देख लेते हैं, तो और भी भूल में पड़ जाती है। फिर वह | | पता नहीं होता कि आप बदल गए हैं। वह अपनी पुरानी आदत को तड़पती है, रोती है, चिल्लाती है। उसे पता नहीं है कि कृष्ण गए, तो | | दोहराए चली जाती है। इंद्रियां यंत्र हैं, उन्हें कुछ पता नहीं होता। गए। वहां भीतर कोई सेतु नहीं बनता, वहां भीतर कोई रस नहीं है। | आपने एक ग्रामोफोन पर रिकार्ड चढ़ा दिया। रिकार्ड गाए चला ___ इस तथ्य को न समझे जाने से कृष्ण के संबंध में भारी भूल हुई | जा रहा है। आधा गीत हो गया, अब आपका मन बिलकुल सुनने है। जिस स्थितधी की वे बात कर रहे हैं, वैसी थिरता चेतना की को नहीं है, लेकिन रिकार्ड गाए चला जा रहा है। अब रिकार्ड को स्वयं उनमें पूरी तरह फलित हुई है। कोई भी पता नहीं है कि अब आपका मन सुनने का नहीं है। रिकार्ड को पता हो भी नहीं सकता। रिकार्ड तो सिर्फ यंत्र की तरह चल रहा है। लेकिन उठकर आप रिकार्ड को बंद कर देते हैं, क्योंकि रिकार्ड यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः । | को कभी आपने अपना हिस्सा नहीं समझा। इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः।। ६० ।। | ___ इंद्रियों के यंत्र के साथ एक दूसरी आइडेंटिटी है कि आप इंद्रियों और हे अर्जुन, इसलिए यत्न करते हुए बुद्धिमान पुरुष के भी | || को अपना ही समझते हैं। इसलिए इंद्रियां जब चलती चली जाती मन को यह प्रमथन स्वभाव वाली इंद्रियां हैं, तो अपना ही समझने के कारण आप भी उनके पीछे चल पड़ते बलात्कार से हर लेती है। हैं। आप उनको यंत्र की तरह बंद नहीं कर पाते। तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः । ___ अब एक आदमी है; उसे सिगरेट पीने की यांत्रिक आदत पड़ वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।। ६१।। गई है, या शराब पीने की। कसम खाता है, नहीं पीऊंगा। निर्णय इसलिए मनुष्य को चाहिए कि उन संपूर्ण इंद्रियों को वश में | करता है, नहीं पीऊंगा। लेकिन उसकी इंद्रियों को कोई पता नहीं; करके समाहित चित्त हुआ, मेरे परायण स्थित होवे।। | उनके पास बिल्ट-इन-प्रोसेस हो गई है। तीस साल से वह पी रहा क्योंकि, जिस पुरुष के इंद्रियां वश में होती है, | है, चालीस साल से वह पी रहा है। इंद्रियों का एक नियमित ढांचा __ उसकी ही प्रज्ञा स्थिर होती है। हो गया है कि हर आधे घंटे में सिगरेट चाहिए। हर आधे घंटे पर यंत्र की घंटी बज जाती है, सिगरेट लाओ। तो आदमी कहता है, | तलब! तलब लग गई है। तलब वगैरह क्या लगेगी। वह कहता है, 5 क चेतावनी कृष्ण देते हैं, वह यह कि इंद्रियां भी | | सिगरेट पुकारती है। सिगरेट क्या पुकारेगी! ए व्यक्ति को खींचती हैं विषयों की ओर। इस बात को । नहीं, चालीस-पचास वर्ष का यांत्रिक जाल है इंद्रियों का। हर थोड़ा गहरे में समझना आवश्यक है। इंद्रियां भी आधे घंटे पर सिगरेट मिलती रही है, इंद्रियों के पास व्यवस्था हो व्यक्ति को खींचती हैं विषयों की ओर। साधक को भी इंद्रियां गिरा | | गई है। उनके पास बिल्ट-इन-प्रोग्रेम है। उनके पास चौबीस घंटे देती हैं। की योजना है कि जब आधा घंटा हो जाए, तब आपको खबर कर इंद्रियां कैसे गिराएंगी? क्या इंद्रियों के पास अपनी कोई व्यक्ति | | दें कि अब सिगरेट चाहिए। पूरा शरीर! और इंद्रियों के साथ पूरा की आत्मा से अलग शक्ति है? क्या इंद्रियों के पास अपनी कोई | शरीर है। अलग ऊर्जा है? क्या इंद्रियां इतनी बलवान हैं स्वतंत्र रूप से कि | तो जब सिगरेट चाहिए, तब शरीर के अनेक अंगों से यह खबर व्यक्ति की आत्मा को गिराएंगी? | आएगी कि सिगरेट चाहिए। होंठ कुछ पकड़ने को आतुर हो जाएंगे, नहीं, इस कारण नहीं। इंद्रियों के पास कोई भी शक्ति नहीं है। | फेफड़े कुछ खींचने को आतुर हो जाएंगे, खून निकोटिन लेने के इंद्रियां व्यक्ति से स्वतंत्र अस्तित्ववान भी नहीं हैं। लेकिन फिर भी लिए प्यासा हो जाएगा, नाक कुछ छोड़ने को आतुर हो जाएगी। मन इंद्रियां गिरा सकती हैं, गिराने का कारण बहुत दूसरा है। किसी चीज में व्यस्त होने को आतुर हो जाएगा। यह इकहरी घटना 261
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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