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________________ विषय-त्याग नहीं-रस-विसर्जन मार्ग है - कोई भी पागल कांटों के कारण फूल को नहीं छोड़ देता। तो दुख | तो कृष्ण कहते हैं, ऐसा व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा विषयों को छोड़ के कारण सुख को छोड़ने की कोई भी जरूरत नहीं है। बुद्धिमान सकता है, लेकिन रस से मुक्त नहीं होता। अब आंख फोड़ डालेंगे, दुख को कम करता और सुख को बढ़ाता चला जाता है। लेकिन तो दिखाई पड़ने वाले आब्जेक्ट से तो मुक्त हो ही जाएंगे। जब सब सुख ऐंद्रिक हैं। दिखाई ही नहीं पड़ेगा, तो दिखाई पड़ने वाला विषय तो खो ही क्या इस बात पर आपको कभी भी शक हुआ है कि सब सुख जाएगा। जब कान ही न होंगे, तो वीणा तो खो ही जाएगी, सुनाई ऐंद्रिक हैं? अगर शक नहीं हुआ, तो कृष्ण को समझना बहुत पड़ने वाला विषय तो खो ही जाएगा। लेकिन क्या रस खो जाएगा? मश्किल हो जाएगा। हम सब का भी भरोसा यही है कि सब सख | रस, विषय से अलग बात है। विषय बाहर है, रस भीतर है, ऐंद्रिक हैं। हमने कोई सुख जाना भी नहीं है, जो इंद्रिय के बाहर जाना | इंद्रियां बीच में हैं। इंद्रियां सेतु हैं; ब्रिजेज हैं; रस और विषय के हो। स्वाद जाना है, संगीत जाना है, दृश्य देखे हैं, गंध सूंघी है, | बीच में बना हुआ सेतु हैं। रस को ले जाती हैं विषय तक, विषय सौंदर्य देखा है-जो भी, वह सब इंद्रियों से देखा है। वह सब को लाती हैं रस तक। इंद्रियां बीच के द्वार, मार्ग, पैसेज हैं। इंद्रिय ऐंद्रिक हैं। इंद्रिय के अतिरिक्त हमने और कुछ जाना नहीं है। हम | तोड़ दें; तो ठीक है, विषय से रस का संबंध टूट जाएगा। लेकिन इंद्रियों के अनुभव का ही जोड़ हैं। रस तो नहीं टूट जाएगा। रस भीतर निर्मित रह जाएगा-अपनी इसीलिए तो हमें आत्मा का कोई पता नहीं चलता। क्योंकि इंद्रिय | | जगह तड़पता, अपनी जगह कूदता, विषयों की मांग करता, लेकिन का अनुभव ही जिसकी सारी संपदा है, वह शरीर के ऊपर किसी विषयों तक पहुंचने में असमर्थ, इंपोटेंट; क्लीव हो जाएगा रस। भी तत्व को नहीं जान सकता है। यह तो हमारी स्थिति है। यह हमारी सत्व खो देगा, द्वार खो देगा, मार्ग खो देगा, विक्षिप्त हो जाएगा, देहाभिमानी भोगी की स्थिति है। लेकिन भीतर घूमने लगेगा। अब वह रस भीतर कल्पना के विषय · फिर अगर कभी कोई देहाभिमानी भोगी देह को भोगते-भोगते निर्मित करेगा। क्योंकि जब वास्तविक विषय नहीं मिलते, जब ऊब जाता है...। हर चीज को भोगते-भोगते ऊब आ जाती है। एक्चुअल आब्जेक्ट्स नहीं मिलते, तब चित्त कल्पित विषय निर्मित सभी चीजों से चित्त ऊब जाता है। अगर स्वर्ग में भी बिठा दिया | करना शुरू कर देता है। जाए आपको, तो ऊब जाएगा। ऐसा मत सोचना कि स्वर्ग में बैठे दिनभर उपवास करके देखें, तो रात सपने में पता चल जाता है, हुए लोग जम्हाई नहीं लेते, लेते हैं। वहां भी ऊब जाएंगे। | कि दिनभर किया उपवास तो रातभर सपने में भोजन करना पड़ता बड रसेल ने तो कहीं मजाक में कहा है कि मैं स्वर्ग से बहुत | है। रस भीतर विषय निर्मित करने लगता है। वह कहता है, कोई डरता हूं। सबसे बड़ा डर यह है कि इटरनल है स्वर्ग; फिर वहां से | फिक्र नहीं। बाहर नहीं मिला, भीतर कर लेते हैं। लौटना नहीं है। उसने कहा, इससे बहुत डर लगता है। दूसरा, उसने | असल में, रस इतना प्रबल है कि अगर विषय न हों, तो वह कहा कि वहां सुख ही सुख है, सुख ही सुख है, तो फिर ऊब नहीं काल्पनिक विषयों को निर्मित कर लेता है। सेतु टूट जाए, तो भीतर जाएंगे सुख से? मिठास भी उबा देती है; बीच-बीच में नमकीन की ही विषय बना लेता है; आटो इरोटिक हो जाता है। दूसरे की जरूरत जरूरत पड़ जाती है। सुख भी उबा देता है; बीच-बीच में दुख की ही नहीं रह जाती, वह आत्ममैथुन में रत हो जाता है। अपने ही रस भी जरूरत पड़ जाती है। सब एकरसता मोनोटोनस हो जाती है और | को अपना ही विषय बनाकर भीतर ही जीने लगता है। पागल, उबा देती है। कितना ही सुंदर संगीत हो, बजता रहे, बजता रहे, तो | विक्षिप्त, न्यूरोटिक हो जाता है। फिर सिर्फ नींद ही ला सकता है, और कुछ नहीं कर सकता। कृष्ण जो कह रहे हैं कि विषय तो टूट जाएंगे, छूट जाएंगे तो देहाभिमानी भोगी ऊब जाता है, इंद्रियों के सुखों से ऊब जाता | देहाभिमानी त्यागी के, लेकिन रस नहीं छूटेंगे। और असली सवाल है, तो वह इंद्रियों की शत्रुता करने लगता है। वह देहाभिमानी भोगी | विषयों का नहीं है, असली सवाल रसों का है। असली सवाल की जगह देहाभिमानी त्यागी बन जाता है। फिर जिस-जिस इंद्रिय | इसका नहीं है कि बाहर कोई बड़ा मकान है; असली सवाल इसका से उसने सुख पाया है, उस-उस इंद्रिय को सताता है। और कहता | है कि मेरे भीतर बड़े मकान की चाह है। असली सवाल यह नहीं है है, अब इससे विपरीत चलकर सुख पा लेंगे। लेकिन मानता है | कि बाहर सौंदर्य है; असली सवाल यह है कि मेरे भीतर सौंदर्य की इंद्रिय को ही आधार अब भी। मालकियत की आकांक्षा है। असली सवाल यह नहीं है कि बाहर 259
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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