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________________ mm मोह-मुक्ति, आत्म-तृप्ति और प्रज्ञा की थिरता -am वह पूछता है कि चलो, अब मैं उसको ही जान, जैसे आदमी के हो सकते। सिर्फ बुद्धिहीन संगत हो सकते हैं। बुद्धिमान के उत्तर लिए तुम कहते हो, जैसे आदमी को तुम चाहते हो। जिस मनुष्य के असंगत होंगे ही। क्योंकि हर उत्तर किसी को दिया गया है; कोई आस-पास तुम्हारे इशारे हैं, अब मैं उसको ही जानने के लिए आतुर उत्तर सभी को नहीं दिया गया है। हूं। छोडूं उसे, जो अब तक मैंने पकड़ रखा था। आनंद ने बुद्ध से कहा कि मुझे परेशानी में डाल दिया। रात सोते __इस प्रश्न से अर्जुन की वास्तविक जिज्ञासा शुरू होती है। अब | समय मुझे नींद न आएगी, पहले मेरा उत्तर दो! सही क्या है ? इन तक अर्जुन जिज्ञासा नहीं कर रहा था। अब तक अर्जुन कृष्ण को | तीनों में कौन-सी बात ठीक है? या कि चौथी बात ठीक है? ऐसी जगह नहीं रख रहा था, जहां से उनसे उसे कुछ सीखना, बुद्ध ने कहा, तुझे क्या मतलब! जिनसे मैंने बात की थी, उनसे जानना है। अब तक अर्जुन कृष्ण का उपयोग एक जस्टीफिकेशन, | मतलब पूरा हो गया। तेरा न सवाल था, न तेरे लिए जवाब है। तूने एक रेशनलाइजेशन, एक युक्तियुक्त हो सके उसका अपना ही | | पूछा नहीं था, तूने सुना क्यों? उसने कहा, और मजा करते हैं आप! खयाल, उसके लिए कर रहा था। | मेरे पास कान हैं, मैं बहरा नहीं हूं। मैं पास ही मौजूद था। सुनाई इसे समझ लेना उचित है, तो आगे-आगे समझ और स्पष्ट हो मुझे पड़ गया। तो बुद्ध ने कहा, जो दूसरे के लिए कहा गया हो, सकेगी। उसे सुनना उचित नहीं है। तुझे क्या जरूरत थी? पर उसने कहा, हम अक्सर जब प्रश्न पूछते हैं, तो जरूरी नहीं कि वह प्रश्न | | जरूरत थी या नहीं, मुझे सुनाई पड़ गया और मैं बेचैन हूं। तीन उत्तर जिज्ञासा से आता हो। सौ में निन्यानबे मौके पर प्रश्न जिज्ञासा से | एक दिन में! आप कहना क्या चाहते हैं? नहीं आता। सौ में निन्यानबे मौके पर प्रश्न सिर्फ किसी कनफर्मेशन बुद्ध ने कहा, मैंने तीन उत्तर नहीं दिए। मैंने तो उत्तर एक ही दिया के लिए, किसी दूसरे के प्रमाण को अपने साथ जोड़ लेने के लिए। | है कि मैं तुम्हें कन्फर्म न करूंगा। मैं तुम्हारी हां में हां न भरूंगा। आता है। | मैंने तो उत्तर एक ही दिया है दिनभर। सुबह जो आदमी आया था, बुद्ध एक दिन एक गांव में प्रविष्ट हुए। एक आदमी ने पूछा, वह चाहता था कि मैं कह दूं कि हां, ईश्वर है, ताकि जिस ईश्वर ईश्वर है? बुद्ध ने कहा, नहीं, कहीं नहीं है, कभी नहीं था, कभी | को वह मानता है, उसको मेरा भी सहारा मिल जाए। ताकि वह नहीं होगा। स्वभावतः, वह आदमी कंप गया। कंप गया। उसने आश्वस्त हो जाए कि चलो, मैं ठीक हूं, बुद्ध भी यही कहते हैं। वह कहा, क्या कहते हैं आप? ईश्वर नहीं है? बुद्ध ने कहा, बिलकुल सिर्फ मेरा उपयोग करना चाहता था। वह मुझसे सीखने नहीं आया नहीं है। सब जगह खोज डाला; मैं कहता हूं, नहीं है। था। वह मुझसे जानने नहीं आया था। वह जानता ही था, वह सीखा फिर दोपहर एक आदमी उस गांव में आया और उसने पूछा कि | ही हुआ था। वह सिर्फ मेरा और साथ चाहता था, वह सिर्फ एक जहां तक मैं सोचता हूं, ईश्वर नहीं है। आपका क्या खयाल है? सर्टिफिकेट और चाहता था, एक प्रमाणपत्र और चाहता था कि जो बुद्ध ने कहा, ईश्वर नहीं है? ईश्वर ही है। उसके अतिरिक्त और मैं कहता हूं, वही बुद्ध भी कहते हैं! मैं ठीक हूं, क्योंकि बुद्ध भी कुछ भी नहीं है। उस आदमी ने कहा, क्या कहते हैं! मैं तो यह यही कहते हैं! वह सिर्फ अपने अहंकार के लिए एक युक्ति और सोचकर आया कि बुद्ध नास्तिक हैं। खोज रहा था। वह बुद्ध का भी अपने अहंकार के लिए शोषण कर सांझ को एक और आदमी आया और उस आदमी ने बुद्ध से कहा | रहा था। कि मुझे कुछ भी पता नहीं है कि ईश्वर है या नहीं। आप क्या कहते ___ दोपहर जो आदमी आया था, वह नास्तिक था। वह भी आश्वस्त हैं? बुद्ध ने कहा, मैं भी कुछ न कहूंगा। मैं भी चुप रहूंगा। उसने कहा | | था कि उसे पक्का पता है। उसकी कोई जिज्ञासा न थी। जिन्हें पक्का कि नहीं-नहीं, कुछ तो कहें! बुद्ध ने कहा कि मैं कुछ न कहूंगा। | पता है, उनकी कोई जिज्ञासा नहीं होती। जिन्हें पक्का ही पता है, इन तीन को तो छोड़ दें, कठिनाई में पड़ गया बुद्ध का भिक्षु | | उन्हें जिज्ञासा कैसे हो सकती है? और मजा यह है कि जिन्हें पक्का आनंद। वह तीनों समय साथ था, सुबह भी, दोपहर भी, सांझ भी। | पता है, वे भी जिज्ञासा करते हैं। तब उनका पक्का पता बहुत कच्चे उसका कष्ट हम समझ सकते हैं। सोचा न था कभी कि बुद्ध और । | पते पर खड़ा है। पर वह कच्चा पता बहुत नीचे है। पक्का ऊपर है, ऐसे इनकंसिस्टेंट, इतने असंगत कि सुबह कुछ, दोपहर कुछ, सांझ | | कच्चा नीचे है। इसलिए वह कच्चा उनको धक्के देता रहता है कि कुछ। लेकिन कंसिस्टेंट सिर्फ बुद्धओं के सिवाय और कोई भी नहीं | | और पक्का कर लो, और पक्का कर लो। पक्का नहीं है, पता कुछ 239
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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