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________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 AM यह साधारण नहीं है। इस स्त्री के प्रति रामतीर्थ की कोई दृष्टि है। बड़े मजे की बात है कि हमारी भाषा बन ही नहीं सकती विपरीत किसी दिन रामतीर्थ ने इस स्त्री के लिए उठकर द्वार खोला होता. के बिना। क्योंकि बिना विपरीत के हम परिभाषा नहीं कर सकते. अब उठकर द्वार बंद कर रहे हैं। लेकिन इस स्त्री के लिए उठते | | डेफिनीशन नहीं कर सकते। अगर कोई आपसे पूछे कि अंधेरा यानी जरूर हैं। किसी दिन द्वार खोलने उठे होते, अपनी पत्नी है; आज | क्या? तो आप कहते हैं, जो प्रकाश नहीं है। बड़ी सर्कुलर द्वार बंद करने उठे हैं, अपनी पत्नी नहीं है। लेकिन द्वार तक रामतीर्थ डेफिनीशन है। कोई पूछे, प्रकाश यानी क्या? तो आप कहते हैं, जो को उठना पड़ता है; वैराग्य नहीं है। अंधेरा नहीं है। न आपको अंधेरे का पता है कि क्या है, न प्रकाश पूर्ण सिंह ने कहा कि अगर आप द्वार नहीं खोलते हैं, तो मैं | | का पता है कि क्या है। अंधेरे को जब पूछते हैं, क्या है? तो कह नमस्कार करता हूं। मेरे लिए आपका सब ब्रह्मज्ञान व्यर्थ हो गया। | देते हैं, प्रकाश नहीं है। और जब पूछते हैं, प्रकाश क्या है? तो कह मैं जाता हूं। यह कैसा ब्रह्मज्ञान है। क्योंकि किसी स्त्री से आपने नहीं देते हैं, अंधेरा नहीं है। यह कोई परिभाषा हुई? यह कोई डेफिनीशन कहा अब तक रुकने के लिए। सभी स्त्रियों में ब्रह्म दिखाई पड़ा। हुई? परिभाषा तो तभी हो सकती है, जब कम से कम एक का तो आज इस स्त्री में कौन-सा कसूर हो गया है कि ब्रह्म नहीं है! पता हो! रामतीर्थ को भी चुभी बात; खयाल में पड़ी। द्वार तो खोल दिया। मैंने सुना है, एक आदमी एक अजनबी गांव में गया। उसने पूछा लेकिन विचारशील व्यक्ति थे। यह तो दिखाई पड़ गया कि वैराग्य | | कि अ नाम का आदमी कहां रहता है? तो लोगों ने कहा, ब नाम फलित नहीं हुआ है। क्योंकि वैराग्य का अर्थ ही यह है कि जहां न के आदमी के पड़ोस में। पर उसने कहा, मुझे ब का भी कोई पता राग रहा हो, न विराग रहा हो। वैराग्य भी न रहा हो, वहीं वैराग्य नहीं, ब कहां रहता है? उन्होंने कहा, अ के पड़ोस में। पर उसने है। मोह की निशा पूरी ही खो गई हो। मेरा खो गया हो, मेरा नहीं | | कहा कि इससे कुछ हल नहीं होता, क्योंकि न मुझे अका पता है, है, यह भी खो गया हो। जहां वैराग्य भी नहीं है, वहीं वैराग्य है। | नब का पता है। मुझे ठीक-ठीक बताओ, अकहां रहता है ? उन्होंने रामतीर्थ को भी दिखाई तो पड़ गया। समझ में तो आ गया। उसी कहा, ब के पड़ोस में। लेकिन ब कहां रहता है? उन्होंने कहा, अ दिन उन्होंने गेरुए वस्त्र छोड़ दिए। यह जानकर आपको हैरानी होगी। के पड़ोस में। कि रामतीर्थ ने जिस दिन जल-समाधि ली, उस दिन वे गेरुए वस्त्र | आदमी से पूछो, चेतना क्या है? वह कहता है, पदार्थ नहीं। ' नहीं पहने हुए थे। उस दिन उन्होंने साधारण वस्त्र पहन लिए थे। उससे पूछो, पदार्थ क्या है? वह कहता है, चेतना नहीं। माइंड क्या क्योंकि यह उनको भी यह साफ हो गया था कि यह वैराग्य नहीं है। है? मैटर नहीं। मैटर क्या है? माइंड नहीं। बड़े से बड़ा दार्शनिक वैराग्य का अर्थ, जहां न राग रह गया, न विराग रह गया। न | भी इसको परिभाषा कहता है, इसको डेफिनीशन कहता है। यह जहां किसी चीज का आकर्षण है, न विकर्षण है; न अट्रैक्शन है, | | डेफिनीशन हुई ? धोखा हुआ, डिसेप्शन हुआ—परिभाषा न हुई। न पिल्शन है। जहां न किसी चीज के प्रति खिंचाव है, न विपरीत | क्योंकि इसमें से एक का भी पता नहीं है। भागना है। न जहां किसी चीज का बुलावा है, न विरोध है। जहां | लेकिन आदमी को कुछ भी पता नहीं है, काम तो चलाना व्यक्ति थिर हुआ, सम हुआ; जहां पक्ष और विपक्ष एक से हो गए, | | पड़ेगा। इसलिए आदमी बेईमान शब्दों को रखकर काम चलाता है। वहां वैराग्य फलित होता है। | उसके सब शब्द डिसेप्टिव हैं। उसके किसी शब्द में कोई भी अर्थ लेकिन इसे विराग क्यों कहते हैं? वैराग्य क्यों कहते हैं? क्योंकि | नहीं है। क्योंकि अपने शब्द में वह जिस शब्द से अर्थ बताता है, जहां वैराग्य भी नहीं है, वहां वैराग्य क्यों कहते हैं? कोई उपाय नहीं उस शब्द में भी उसको कोई अर्थ नहीं है। उसकी सब परिभाषाएं है। शब्द की मजबूरी है, और कोई बात नहीं है। आदमी के पास सर्कुलर हैं, वर्तुलाकार हैं। वह कहता है, बाएं यानी क्या! वह सभी शब्द द्वंद्वात्मक हैं, डायलेक्टिकल हैं। आदमी की भाषा में कहता है, दाएं जो नहीं है। और दाएं ? वह कहता है, बाएं नहीं। ऐसा शब्द नहीं है जो नान-डायलेक्टिकल हो, द्वंद्वात्मक न हो। | लेकिन इनमें से किसी का पता है कि बायां क्या है? मनुष्य ने जो भाषा बनाई है, वह मन से बनाई है। मन द्वंद्व है। यह आदमी की भाषा डायलेक्टिकल है। डायलेक्टिकल का इसलिए मनुष्य जो भी भाषा बनाता है, उसमें विपरीत शब्दों में भाषा | | मतलब यह कि जब आप पूछे अक्या, तो वह ब की बात करता को निर्मित करता है। | है; जब पूछे ब क्या, तो वह अकी बात करने लगता है। इससे भ्रम 232
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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