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________________ m गीता दर्शन भाग-1 - सिर्फ मिट्टी अलग करते हैं, परत तोड़ देते हैं, एक छेद हो जाता है; अपने ही घर में सागर को झांकने का उपाय हो जाता है। लेकिन कुआं बनाया हुआ है। और अगर कुआं इसकी खबर लाए-रिमेंबरेंस-कि सागर भी है और सागर की यात्रा करवा दे, तब तो कुआं सहयोगी हो जाता है। और अगर कुआं ही सागर बन जाए और हम सोचें कि यही रहा सागर, तो फिर सागर की, असीम की यात्रा नहीं हो पाती; फिर हम कुएं के किनारे ही बैठे समाप्त होते हैं। शास्त्र कुएं हैं। जो जानते हैं, खोदते हैं। और शब्द की सीमा में छेद बनाते हैं। जो कहा जा सकता है, उसकी सीमा में छेद बनाते हैं। और अनकहे की थोड़ी-सी झलक, थोड़ा-सा दर्शन करवाते हैं। इस आशा में कि इसको देखकर अनंत की यात्रा पर कोई निकलेगा। इसलिए नहीं कि इसे देखकर कोई बैठ जाएगा और तृप्त हो जाएगा। कुआं सागर है, सीमा में बंधा। सागर कुआं है, असीम में मुक्त। शास्त्र ज्ञान है, सीमा में बंधा। ज्ञान शास्त्र है, असीम में मुक्त। तो कृष्ण जब वेद की, शब्द की बात कर रहे हैं, तो निंदा नहीं है. सिर्फ निर्देश है। और निर्देश स्मरण में रखने योग्य है। अभी इतना ही। फिर सांझ बात करेंगे। 212
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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