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am गीता दर्शन भाग-1 -
लड़की है, जब आपको शॉक लगता है, तो उसकी शान देखें। वह का विसर्जन। तो निश्चित ही योगक्षेम फलित होता है। समझता है कि शायद मैं शॉक मार रहा हूं। कुर्सी के शॉक हैं। लेकिन आइडेंटिफाइड हो जाता है आदमी। पावर नहीं मतलब है कृष्ण की शक्ति का। कृष्ण की शक्ति का
यावानर्थ उदपाने सर्वतः संप्लुतोदके। मतलब है, एनर्जी, ऊर्जा; जो पद से नहीं आती। असल में जो तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः । । ४६ ।। पद-मात्र छोड़ने से आती है।
क्योंकि मनुष्य का, सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त अहंकार पद को खोजता है। जो अहंकार को ही छोड़ देता है. होने पर, छोटे जलाशय में जितना प्रयोजन रहता है, अच्छी उसके सब पद खो जाते हैं। उसके पास कोई पद नहीं रह जाता। प्रकार ब्रह्म को जानने वाले ब्राह्मण का भी सब वेदों में वह शून्य हो जाता है। उस शून्य में विराट गूंजने लगता है। उस
उतना ही प्रयोजन रहता है। शून्य में विराट उतर आता है। उस शून्य में विराट के लिए द्वार मिल जाता है। तब वह एनर्जी है, पावर नहीं। तब वह ऊर्जा है, शक्ति है, उधार नहीं है। तब वह व्यक्ति मिटा और अव्यक्ति हो गया। कष्ण कह रहे हैं कि जैसे छोटे-छोटे नदी-तालाब हैं, तब व्यक्ति नहीं है, परमात्मा है। और ऐसी स्थिति से वापस लौटना | yा कुएं-पोखर हैं, झरने हैं, इन झरनों में नहाने से जो नहीं होता।
८ आनंद होता है, जो शुचिता मिलती है, ऐसी शुचिता ___ध्यान रखें, पावर से वापस लौटना होता है। पद से वापस तो सागर में नहाने से मिल ही जाती है अनेक गुना होकर। शब्दों के लौटना होता है, धन से वापस लौटना होता है। जो शक्ति भी किसी | | पोखर में, शास्त्रों के पोखर में जो मिलता है, उससे अनेक गुना ज्ञान कारण से मिलती है और अहंकार की खोज से मिलती है, उससे | | के सागर में मिल ही जाता है। वेद में जो मिलेगा-संहिता में, लौटना होता है। लेकिन जो शक्ति अहंकार को खोकर मिलती है, शास्त्र में, शब्द में वह ज्ञानी को ज्ञान में तो अनंत गुना होकर वह प्वाइंट आफ नो रिटर्न है, उससे वापस लौटना नहीं होता है। मिल ही जाता है।
इसलिए एक बार व्यक्ति परमात्मा की शक्ति को जान लेता है, | । इसमें दो बातें ध्यान रखने जैसी हैं। एक तो यह कि जो सीमा में एक हो जाता है, वह सदा के लिए शक्ति-संपन्न हो जाता है। शायद मिलता है, वह असीम में मिल ही जाता है। इसलिए असीम के लिए यह कहना ठीक नहीं है कि शक्ति-संपन्न हो जाता है, उचित यही सीमित को छोड़ने में भय की कोई भी आवश्यकता नहीं है। अगर होगा कहना कि वह शक्ति-संपन्नता हो जाता है। शक्ति-संपन्न हो | ज्ञान के लिए वेद को छोड़ना हो, तो कोई चिंता की बात नहीं है। जाता है, तो ऐसा खयाल बनता है कि वह भी बचता है। नहीं, यह | सत्य के लिए शब्द को छोड़ना हो, तो कोई चिंता की बात नहीं है। कहना ठीक नहीं है कि वह शक्ति-संपन्न हो जाता है, यही कहना | अनुभव के लिए शास्त्र को छोड़ना हो, तो कोई चिंता की बात नहीं ठीक है कि वह शक्ति हो जाता है। और ऐसी शक्ति अगर पद की | है—पहली बात। क्योंकि जो मिलता है यहां, उससे अनंत गुना है, धन की है, तो योगक्षेम फलित नहीं होंगे। ऐसी शक्ति अगर वहां मिल ही जाता है। परमात्मा की है, तो योगक्षेम फलित होंगे।
दूसरी बात, सागर में जो मिलता है, ज्ञान में जो मिलता है, ___ इसलिए भी योगक्षेम की बात कर लेनी उचित है। क्योंकि ऐसी असीम में जो मिलता है, उस असीम में मिलने वाले को सीमित के शक्तियां भी हैं, जिनसे योगक्षेम से उलटा फलित होता है। लिए छोड़ना बहुत खतरनाक है। अपने घर के कुएं के लिए सागर
पावर-पालिटिक्स है सारी दुनिया में। जब भी कोई आदमी | | को छोड़ना बहुत खतरनाक है। माना कि घर का कुआं है, अपना पोलिटिकली पावरफुल होने की यात्रा करता है, तो योगक्षेम फलित | | है, बचपन से जाना, परिचित है, फिर भी कुआं है। घरों में कुएं से नहीं होता है। उससे उलटा ही फलित होता है। अमंगल ही फलित | ज्यादा सागर हो भी नहीं सकते। सागरों तक जाना हो तो घरों को होता है। दुख ही फलित होता है।
छोड़ना पड़ता है। घरों में कुएं ही हो सकते हैं। तो शक्ति का यह स्मरण रहे. भेद खयाल में रहे. शक्ति का अर्थ __ हम सबके अपने-अपने घर हैं, अपने-अपने वेद हैं, अपनेपावर नहीं, एनर्जी। शक्ति का अर्थ अहंकार की खोज नहीं, अहंकार अपने शास्त्र हैं, अपने-अपने धर्म हैं, अपने-अपने संप्रदाय हैं,