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________________ - गीता दर्शन भाग-1 AM हैं। जो भी आस-पास होगा, वह प्रकाशित होगा। पद्य में कहते हैं। पद्य हमारे गद्य की असमर्थता है। जब प्रोज़ में नहीं और बड़े मजे की बात है कि आपने कभी भी प्रकाश नहीं देखा कह पाते, तो पोएट्री निर्मित करते हैं। और जीवन में जो-जो गहरा है अब तक, सिर्फ प्रकाशित चीजें देखी हैं। प्रकाश नहीं देखा है है, वह गद्य में नहीं कहा जा सकता, इसलिए जीवन का सब गहरा किसी ने भी आज तक, सिर्फ प्रकाशित चीजें देखी हैं। प्रकाशित पद्य में, पोएट्री में कहा जाता है। चीजों की वजह से आप अनुमान करते हैं कि प्रकाश है। आप ___ यह पोएटिक एक्सप्रेशन है किसी अनुभूति का, मोहम्मद जहां सोचेंगे कि मैं क्या बात कह रहा हूं! हम सब ने प्रकाश देखा है। | भी जाते, वहां छाया पहुंच जाती। मोहम्मद जहां भी जाते, वहां फिर से सोचना, प्रकाश कभी किसी ने देखा ही नहीं। आस-पास के लोगों को ऐसा लगता जैसे रेगिस्तान, मरुस्थल के यह वृक्ष दिखता है सूरज की रोशनी में चमकता हुआ, इसलिए आदमी को लगेगा कि जैसे ऊपर कोई बादल आ गया हो और सब आप कहते हैं, सूरज की रोशनी है। फिर अंधेरा आ जाता है और | छाया हो गई हो। मोहम्मद जहां होते, वहां योगक्षेम फलित होता। वृक्ष नहीं दिखता है; आप कहते हैं, रोशनी गई। लेकिन आपने महावीर के बाबत कहा गया है कि महावीर अगर रास्ते से रोशनी नहीं देखी है। देखें आकाश की तरफ, चीजें दिखाई पड़ेंगी, चलते, तो कांटे अमर सीधे पड़े होते, तो उलटे हो जाते। कोई कांटा रोशनी कहीं दिखाई नहीं पड़ेगी। जहां भी है, जो भी दिखाई पड़ रहा | फिक्र नहीं करेगा; संभावना कम दिखाई पड़ती है। है, वह प्रकाशित है, प्रकाश नहीं। लेकिन जिन्होंने यह लिखा है, उन्होंने कुछ अनुभव किया है। कृष्ण के कहने का कारण है। वे कहते हैं, जब कोई शून्य | | महावीर के आस-पास सीधे कांटे भी उलटे हो जाएं–कांटे नहीं, आत्मस्थिति को उपलब्ध होता है, तो योगक्षेम फलित होते हैं। पर कांटापन। जिंदगी में बहुत कांटे हैं, बहुत तरह के कांटे हैं। रास्तों आपको योगक्षेम ही दिखाई पडेंगे। आपको आत्मस्थिति दिखाई पर बहत कांटे हैं। और महावीर के पास जो लोग आए हों, उन्हें नहीं पड़ेगी। उस आत्मस्थिति के पास जो घटना घटती है योगक्षेम | अचानक लगा हो कि अब तक जो कांटे सीधे चुभ रहे थे, वे की, वही दिखाई पड़ेगी। जब कोई व्यक्ति आनंद को उपलब्ध होता | एकदम उलटे हो गए, नहीं चुभ रहे हैं; योगक्षेम फलित हुआ हो, है, तो आपको उसके भीतर की स्थिति दिखाई नहीं पड़ेगी; उसके तो कविता कैसे कहे? आदमी कैसे कहे? आदमी कहता है कि ऐसा चारों तरफ सब आनंद से भर जाएगा, वही दिखाई पड़ेगा। जब कोई हो जाता है। लेकिन भूल होती है हमें। हमें तो यही दिखाई पड़ता । भीतर ज्ञान को उपलब्ध होता है, तो आपको उसके ज्ञान की स्थिति | | है। हम महावीर को पहचानेंगे भी कैसे कि वे महावीर हैं? हम कैसे दिखाई नहीं पड़ेगी, लेकिन उसके चारों तरफ ज्ञान की घटनाएं घटने पहचानेंगे कि बुद्ध बुद्ध हैं? लगेंगी, वही आपको दिखाई पड़ेगा। भीतर तो शुद्ध अस्तित्व ही रह | | तो बुद्ध के लिए हमने कहानियां गढ़ी हैं कि बुद्ध जिस गांव से जाएगा आत्मा का, लेकिन योगक्षेम उसके कांसिक्वेंसेस होंगे। । | निकलते हैं, वहां केशर की वर्षा हो जाती है। हो नहीं सकती, उस जैसे दीया जलेगा, और चीजें चमकने लगेंगी। चीजें न हों तो भी | केशर की नहीं, जो बाजार में बिकती है। लेकिन जिन लोगों के गांव दीया जल सकता है, लेकिन तब आपको दिखाई नहीं पड़ सकता | | से बुद्ध गुजरे हैं, उनको जरूर केशर की सुगंध जैसा, केशर है। अर्जुन आत्मवान होगा, यह उसकी भीतरी घटना है। अर्जुन का जैसा—उनके पास जो कीमती से कीमती शब्द रहा होगा-उसकी आत्मवान होना, चारों तरफ योगक्षेम के फूल खिला देगा; यह प्रतीति हुई, उसका एहसास हुआ है। कुछ बरसा है उस गांव में उसकी बाहरी घटना है। इसलिए वे दोनों का स्मरण करते हैं। और जरूर। और आदमी की भाषा में कोई और शब्द नहीं होगा, तो कहा हम कैसे पहचानेंगे जो बाहर खड़े हैं? वे आत्मवान को नहीं | | है, केशर बरस गई है। पहचानेंगे, योगक्षेम को पहचानेंगे। जब भीतर जीवन प्रकाशित होता है, तो बाहर भी प्रकाश की मोहम्मद के बाबत कहा जाता है कि मोहम्मद जहां भी चलते, किरणें लोगों को छूती हैं। वे जब लोगों को छूती हैं, तो योगक्षेम तो उनके ऊपर आकाश में एक बदली चलती साथ. छाया करती फलित होता है। हुई। कठिन मालूम पड़ती है बात। मोहम्मद जहां भी जाएं, तो उनके इसलिए कृष्ण कहते हैं और ठीक कहते हैं। कहना चाहिए। कहना ऊपर एक बदली चले और छाया करे! लेकिन आदमी के पास शब्द | | जरूरी है। क्योंकि एक व्यक्ति के जीवन में भी जब आत्मा की कमजोर हैं, इसलिए जो चीज गद्य में नहीं कही जा सकती, उसे हम घटना घटती है, तो उसके प्रकाश का वर्तुल दूर-दूर लोक-लोकांतर 208
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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