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गीता दर्शन भाग-1-m
असल में पूरब और पश्चिम की फिलासफी बांटनी बंद करनी | | ही नहीं है। पांच का तो सुनिश्चित नुकसान हुआ है। चाहिए; जैन, हिंदू, मुसलमान की फिलासफी बांटनी बंद करनी | | अब यह सकाम बुद्धि है, यह सदा असफल होती है; सदा चाहिए; सिर्फ दो विभाजन किए जाने चाहिए, योग और सांख्य। | असफल होती है। लाभ हो, तो भी हानि होती है सकाम बुद्धि में। योग पर वे आस्थाएं, जो कहती हैं, कुछ करने से होगा। सांख्य पर क्योंकि अपेक्षा का कोई अंत नहीं है। जो भी मिलता है, सदा छोटा वे आस्थाएं, जो कहती हैं, कुछ न करने से ही होता है। पड़ता है। जो भी सफलता मिलती है, वह भी किसी बड़ी
असफलता के सामने फीकी लगती है। कुछ भी मिल जाए, तो भी
तृप्ति नहीं है। कुछ भी मिल जाए, तो भी संतोष की कहीं कोई नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते । झलक नहीं आती। सकाम कर्म असफल होने को बाध्य है। स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ।। ४०।। असफलता में नहीं है उसका राज, उसका राज सकाम होने में है। इस निष्काम कर्मयोग में आरंभ का अर्थात बीज का नाश अब कृष्ण कहते हैं, निष्काम कर्म का छोटा-सा भी कृत्य सफल
नहीं है, और उलटा फलस्वरूप दोष भी नहीं होता है, ही होता है। होगा ही, क्योंकि असफलता का कोई उपाय नहीं है। इसलिए इस निष्काम कर्मयोगरूप धर्म का थोड़ा भी साधन, जब निष्काम है, तो अपेक्षारहित है। इसलिए जो भी मिल जाए, वह जन्म-मृत्यरूप महान भय से उद्धार कर देता है। भी बहुत है। क्योंकि कोई अपेक्षा नहीं थी, जिससे उसको छोटा
बताया जा सके।
कहानी सुनी है हम सबने कि अकबर ने एक लकीर खींच दी थी कष्ण कह रहे हैं कि निष्काम कर्म का कोई भी कदम व्यर्थ दरबार में अपने, और कहा था अपने दरबारियों को कि बिना छुए १० नहीं जाता है। इसे समझना जरूरी है। निष्काम कर्म का इसे छोटा कर दो। वे सब हार गए थे और फिर बीरबल ने एक बड़ी
८ छोटा-सा प्रयास भी व्यर्थ नहीं जाता है। लेकिन इससे | लकीर उसके पास खींच दी। उसे छुआ नहीं, काटा नहीं, पोंछा उलटी बात भी समझ लेनी चाहिए। सकाम कर्म का बड़े से बड़ा नहीं, सिर्फ एक बड़ी लकीर पास खींच दी। और वह लकीर एकदम प्रयास भी व्यर्थ ही जाता है।
छोटी हो गई। एक घर में मैं अभी ठहरा था। चिंतित थे, जिनके घर रुका था। । अपेक्षा की बड़ी लकीर जिनके मन में खिंची है, सफलता की रात नींद नहीं आती थी, तो मैंने पूछा, बात क्या है? उन्होंने कहा, सभी लकीरें छोटी पड़ती हैं। अपेक्षा एंडलेस है-वह जितनी बड़ी क्या बताएं, बड़ी मुसीबत टूट पड़ी है, पांच लाख का नुकसान हो खींची थी बीरबल ने, वह कुछ बड़ी नहीं थी-अपेक्षा की जो गया। स्वभावतः, पांच लाख का नुकसान लगा हो, तो बड़ी लकीर है, उसका कोई अंत ही नहीं है। वह दोनों छोरों पर अनंत मुसीबत टूट ही गई है। मैंने उनकी पत्नी को पूछा, क्या हो गया? | | है। जो लोग ब्रह्म को जानते हैं, वे ब्रह्म को अनंत कहते हैं। लेकिन कैसे नुकसान लग गया पांच लाख का? उनकी पत्नी ने कहा, आप | जिन्होंने ब्रह्म को नहीं जाना, वे भी एक अनंत चीज को जानते हैं। इनकी बातों में मत पड़ जाना। पांच लाख का नुकसान नहीं लगा वह अपेक्षा है, एक्सपेक्टेशन है। उस अनंत अपेक्षा के पास खींची है, पांच लाख का लाभ हुआ है!
गई कोई भी सफलता सदा छोटी पड़ती है। मैं तो बहुत मुश्किल में पड़ गया। मैंने कहा कि क्या कहती हो! लेकिन कृष्ण कह रहे हैं कि अपेक्षा की लकीर मिटा दो। निष्काम उसने कहा, बिलकुल ठीक कहती हूं। उनको दस लाख के लाभ कर्म का अर्थ यही है-अपेक्षारहित, फल की आकांक्षारहित, की आशा थी, पांच लाख का ही लाभ हुआ है, इसलिए उनको पांच कामनारहित। स्वभावतः, बड़ी होशियारी की बात उन्होंने कही है। लाख का नुकसान हो गया है। नींद हराम है, दवाएं चल रही हैं, | वे कह रहे हैं कि अगर अपेक्षा की लकीर मिटा दो, तो फिर ब्लड-प्रेशर बढ़ा हुआ है। कोई उपाय नहीं है उनको समझाने का छोटा-सा भी कर्म तृप्ति ही लाता है। क्योंकि कितना ही छोटा हो, कि पांच लाख का लाभ हुआ है!
| तो भी बड़ा ही होता है, क्योंकि तौलने के लिए कोई नीचे लकीर ___ मैंने उनसे पूछा। तो उन्होंने कहा कि वह पांच लाख क्या, दस नहीं होती। इसलिए निष्कामकर्मी कभी भी विषाद को उपलब्ध नहीं लाख होने ही वाले थे। पंद्रह भी हो सकते थे। पांच का कोई सवाल होता है। सिर्फ सकामकर्मी विषाद को उपलब्ध होता है। फ्रस्ट्रेशन
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