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छोटी / निष्काम कर्मी को कभी विषाद नहीं / विषाद - फ्रस्ट्रेशन – सकाम कर्म की छाया है / शिक्षा और संपन्नता द्वारा अपेक्षाओं का अंतहीन विस्तार / गरीब समाज की अपेक्षाएं सीमित, इसलिए विषाद कम / निष्काम कर्म में कोई बाधा नहीं क्योंकि सभी बाधाएं होती हैं अपेक्षा के कारण / अनियोजित निष्काम कर्म / निष्काम कर्म का अल्प आचरण भी बड़े-बड़े भयों से बचाता है— इसका क्या अर्थ है ? असफलता, विषाद, दुख का भय है / छोटी-छोटी अपेक्षाओं पर खड़े बड़े-बड़े दुख / पांडवों की एक छोटी-सी मजाक और द्रौपदी का दुर्योधन पर हंसना - विराट महाभारत युद्ध का कारण था / क्या निष्काम भाव से हमारी प्रगति नहीं रुक जाती ? / निष्काम कर्म से बढ़ेगा - आनंद, प्रेम, शांति / हो सकता है-धन, मकान, जायदाद के बढ़ने में रुकावट हो / शांत मन हो, तो दरिद्र होने की अनिवार्यता नहीं है / प्रगति की पागल दौड़ से छुटकारा / बहुचित्तवान मनुष्य / अनेक विरोधी खंडों में बंटा हुआ हमारा मन / शांति मत खोजो - खोजो : अशांति के कारणों को / अखंड चित्त में आता है - आनंद, सौंदर्य, शांति / अशांति अर्थात बहुत-बहुत दिशाओं में दौड़ता हुआ मन / अखंड मन में निश्चयात्मक बुद्धि ।
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काम, द्वंद्व और शास्त्र सेनिष्काम, निद्वंद्व और स्वानुभव की ओर....
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कामनाशून्य कर्म योग बन जाता है / कामनाशून्य कर्म को समझना पश्चिम के मनोविज्ञान के लिए अति कठिन / आंतरिक आनंद से सहज स्फुरित कामनाशून्य कर्म / जीवन ऊर्जा का ओवर फ्लो / ईश्वर को पाने की कामना भी कामना ही है / ईश्वर तो निष्कामता में उपलब्ध / निष्काम कर्म प्रार्थना बन जाता है / छोटे-छोटे निष्काम कर्म करें, तो ही गीता समझ में आ पाएगी / द्वंद्व में चुनाव आसान है / अचुनाव में मन का विसर्जन / जब तक चुनाव है - तब तक द्वंद्व / जिसको हम इनकार करते हैं, वह अचेतन मन में चला जाता है / अचेतन - चेतन से नौ गुना ज्यादा शक्तिशाली / द्वंद्व नरक है / द्वंद्व शून्यता और निष्काम कर्म अन्योन्याश्रित / चेतना के दर्पण पर द्वंद्व की तस्वीरें / ब्रह्म अर्थात चेतना का शून्य दर्पण / वेद को गुण्य-युक्त क्यों कहते हैं? कोई भी शब्द निर्गुण नहीं हो सकता / व्यक्त सगुण ही होगा / केवल अव्यक्त ही निर्गुण / अभिव्यक्ति गुणों के ही . माध्यम से / शास्त्र अकथ्य को कहने की चेष्टा है / गीता भी निर्गुण नहीं है / यदि योग-क्षेम आत्मवान होने का सहज फल है, तो उसे न चाहने को क्यों कहा गया है? आत्मवान होने का परिणाम - योग-क्षेम / योग-क्षेम सीधे नहीं / मोहम्मद, महावीर, बुद्ध जैसे लोग जहां भी जाते - वहां योग-क्षेम की अमृत वर्षा / बुरे, आत्महीन व्यक्तियों के आस-पास अमंगल घटित / अहंकार अर्थात विपन्नता - आत्मा अर्थात संपन्नता / शक्ति - अहंकार की खोज नहीं - अहंकार का विसर्जन है / असीम में सीमित समाहित ही है / सीमित के लिए असीम को छोड़ना खतरनाक / शास्त्र भी ज्ञान है - लेकिन दूसरे का / सत्य दर्शन है - और शास्त्र श्रुति / शास्त्र कुएं हैं, सत्य सागर है / कुआं सागर की याद दिलाए तो ही ठीक / कुआं सागर है— सीमा में बांधा है।
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फलाकांक्षारहित कर्म, जीवंत समता और परमपद ... 213
कर्म व्यक्ति से निकलता है और फल आता है समष्टि से / अधिकार है कर्म में फल में नहीं / कल का कोई भरोसा नहीं / कर्म है अभी और यहीं — फल सदा भविष्य में है / कर्म हम करें और फल परमात्मा पर छोड़ दें / अधिक फलाकांक्षा - तो कम कर्म / कम फलाकांक्षा - तो अधिक कर्म / फलाकांक्षा है – अश्रद्धा, अनास्था, नास्तिकता / अश्रद्धालु चित्त फलातुर हो जाता है / श्रद्धा से पूर्ण कर्म होता है — और फल सुनिश्चित /