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Om जीवन की परम धन्यता-स्वधर्म की पूर्णता में -
क्या है! यह हो नहीं सकता। उसे तो दिखाई पड़ेगा कि इस जगत | यह जो कृष्ण उसको कह रहे हैं अर्जुन को, वह एक बहुत बड़ी में कुछ चल नहीं सकता, पैसा ही सब कुछ चला रहा है। | मनोवैज्ञानिक बात कह रहे हैं। वे यह कह रहे हैं कि तू अन्यथा हो
इसलिए अब तक दुनिया में जो भी व्यवस्थाएं बनी हैं, वे भी | नहीं सकता। और इसको भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है कि क्यों गहरे में वर्ण की ही व्यवस्थाओं के रूपांतरण हैं। अब तक पृथ्वी नहीं हो सकता। अगर अर्जुन चाहे, तो क्यों ब्राह्मण नहीं हो सकता? पर कोई भी व्यवस्था ब्राह्मण की नहीं बन सकी। संभावना है आगे। अगर बुद्ध क्षत्रिय घर में पैदा होकर ब्राह्मण हो सकते हैं, और बुद्ध आज जो पश्चिम में बहुत बुद्धिमान लोग मेरिटोक्रेसी की बात कर | जैसा ब्राह्मण नहीं हुआ। अगर महावीर क्षत्रिय घर में पैदा होकर रहे हैं, गुणतंत्र की, तो कभी ऐसा वक्त आ सकता है कि जगत में ब्राह्मण हो सकते हैं, और महावीर जैसा ब्राह्मण नहीं हुआ। जैनों के ब्राह्मण की व्यवस्था हो। शायद वैज्ञानिक इतने प्रभावशाली हो | तो चौबीस तीर्थंकर ही क्षत्रिय हैं, लेकिन क्षत्रिय का कोई काम नहीं जाएंगे आने वाले पचास सालों में कि राजनीतिज्ञों को अपने आप | | किया; शुद्धतम ब्राह्मण की यात्रा पर निकले। तो क्यों कृष्ण जोर जगह खाली कर देनी पड़े। अभी भी बहुत प्रभावशाली हो गए हैं। देते हैं कि अर्जुन, तू क्षत्रिय ही हो सकता है। जब बुद्ध हो सकते अभी भी एक वैज्ञानिक के ऊपर निर्भर करता है बड़े से बड़ा युद्ध, | | हैं, महावीर हो सकते हैं, पार्श्व हो सकते हैं, नेमिनाथ हो सकते कि कौन जीतेगा।
हैं—नेमिनाथ तो कृष्ण के चचेरे भाई ही थे—वे जब हो सकते हैं, अगर आइंस्टीन जर्मनी में होता, तो जीत का हिसाब और होता। तो इस अर्जुन का क्या कसूर है कि नहीं हो सकता! तो थोड़ी-सी आइंस्टीन अमेरिका में था, तो हिसाब और हो गया। हिटलर को | बातें समझ लेनी जरूरी हैं। अगर कोई भी भूल-चूक पछताती होगी अभी भी नर्क में, तो एक | आज मनोविज्ञान कहता है कि तीन साल की उम्र तक आदमी ही भूल-चूक पछताती होगी कि इस यहूदी को भाग जाने दिया, वही | | जितना सीखता है, वह पचास प्रतिशत है पूरे जीवन के ज्ञान का, गलती हो गई। यह एक आदमी पर इतना बड़ा निर्णय होगा...।। | फिफ्टी परसेंट। बाकी शेष जीवन में वह पचास प्रतिशत और
ज्ञान निर्णायक होता जा रहा है! क्षत्रिय दुनिया पर हुकूमत कर | सीखेगा। पचास प्रतिशत तीन साल में सीख लेता है; शेष पचास चुके। वैश्य आज अमेरिका में हुकूमत कर रहे हैं। शूद्र आज रूस प्रतिशत आने वाले जीवन में सीखेगा। और वह जो पचास प्रतिशत और चीन में हुकूमत कर रहे हैं। शूद्र यानी प्रोलिटेरिएट, शूद्र यानी उसने तीन वर्ष की उम्र तक सीखा है, उसे बदलना करीब-करीब वह जिसने अब तक सेवा की थी, लेकिन बहुत सेवा कर चुका, | असंभव है। बाद में जो पचास प्रतिशत सीखेगा, उसे बदलना कभी
वह कहता है, हटो। अब हम मालकियत भी करना चाहते हैं। भी संभव है। तीन वर्ष तक मानना चाहिए, समझना चाहिए कि लेकिन ब्राह्मण के हाथ में भी कभी आ सकती है व्यवस्था। | व्यक्ति का मन करीब-करीब प्रौढ़ हो जाता है भीतर। संभावना बढ़ती जाती है। क्योंकि क्षत्रियों के हाथ में जब तक अगर बुद्ध और महावीर क्षत्रिय घरों में पैदा होकर भी ब्राह्मण की व्यवस्था रही, सिवाय तलवार चलने के कुछ भी नहीं हुआ। | यात्रा पर निकल जाते हैं, तो उनके लक्षण बहुत बचपन से साफ हैं। अमेरिका के हाथ में, जब से वैश्यों के हाथ में धन की सत्ता आई | बुद्ध को एक प्रतियोगिता में खड़ा किया गया कि हरिण को निशाना है, तब से सारी दुनिया में सिवाय धन के और कोई चीज विचारणीय | | लगाएं, तो वे इनकार कर देते हैं। इस अर्जुन ने कभी ऐसा नहीं नहीं रही। और जब से प्रोलिटेरिएट, सेवक, श्रमिक के हाथ में | | किया। यह अब तक निशाना ही लगाता रहा है; इसकी सारी यात्रा व्यवस्था आई है, तब से वह दुनिया में एरिस्टोक्रेसी ने जो भी श्रेष्ठ | | अब तक की क्षत्रिय की ही यात्रा है। आज अचानक, आकस्मिक, पैदा किया था, उसे नष्ट करने में लगा है।
| एक क्षण में यह कहने लगा कि नहीं। तो इसके पास जो व्यक्तित्व चीन में जिसे वे सांस्कृतिक क्रांति कह रहे हैं, वह सांस्कृतिक | | का ढांचा है, वह पूरा का पूरा ढांचा ऐसा नहीं है कि बदला जा सके। क्रांति नहीं, सांस्कृतिक हत्या है। जो भी संस्कृति ने पैदा किया है | उसकी सारी तैयारी, सारा शिक्षण, सारी कंडीशनिंग बहुत व्यवस्था चीन की, उस सबको नष्ट करने में लगे हैं। बुद्ध की मूर्तियां तोड़ी | | से क्षत्रिय के लिए हुई है। आज अचानक वह भाग नहीं सकता। जा रही हैं, मंदिर गिराए जा रहे हैं! विहार, मस्जिदें, गुरुद्वारे गिराए __ कृष्ण उससे कहते हैं कि तू जो छोड़ने की बात कर रहा है, वह जा रहे हैं। कीमती चित्र, बहुमूल्य पेंटिंग्स, वे सब बुर्जुआ हो गई | | उपाय नहीं है कोई; कठिन है। तू क्षत्रिय है, यह जान। और अब हैं, उन सबमें आग लगाई जा रही है।
| शेष यात्रा तेरी क्षत्रिय की तरह गौरव के ढंग से पूरी हो सकती है,
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