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________________ mजीवन की परम धन्यता-स्वधर्म की पूर्णता में - दिखाई पड़ती हैं, इतना सुंदर संगीत मैंने कोई नहीं सुना। | ही जिसके जीवन की सारी व्यवस्था निर्मित होती है। अगर वैसे ब्राह्मण को यह आदमी पागल मालूम पड़ेगा, संगीन की | | आदमी को मोक्ष की भी बात करनी हो, तो उसके लिए मोक्ष भी धन चमकती हुई धार में कहीं कोई संगीत होता है? कि सिपाहियों के के रूप में ही दिखाई पड़ सकता है। अगर वह भगवान का भी एक साथ पड़ते हुए कदमों की चाप में कोई संगीत होता है ? संगीत | चिंतन करेगा, तो भगवान को लक्ष्मीनारायण बनाए बिना नहीं रह तो होता है कंटेंप्लेशन में, चिंतना में, आकाश के नीचे वृक्ष के पास | | सकता। इसमें उसका कोई कसूर नहीं है। सिर्फ फैक्ट, सिर्फ तथ्य बैठकर तारों के संबंध में सोचने में। संगीत तो होता है संगीत में, की बात कर रहा हूं मैं। ऐसा है। और ऐसा आदमी अगर छिपाए काव्य में। संगीत तो होता है खोज में सत्य की। यह पागल है नीत्से! अपने को, तो व्यर्थ ही कठिनाई में पड़ेगा। अगर वह दबाए अपने लेकिन नीत्से किसी एक वर्ग के लिए ठीक-ठीक बात कह रहा को, तो कठिनाई में पड़ेगा। उसके लिए जीवन की जो परम अनुभूति है। किसी के लिए तारों में कोई अर्थ नहीं होता। किसी के लिए एक | | का द्वार है, वह शायद धन की खोज से ही खुलने वाला है। इसलिए ही अर्थ होता है, एक ही संकल्प होता है कि शक्ति और ऊर्जा के | | और कहीं से खुलने वाला नहीं है। ऊपरी शिखर पर वह कैसे उठ जाए! उसे हमने कहा था क्षत्रिय। | . अब एक राकफेलर या एक मार्गन या एक टाटा, ये कोई छोटे कृष्ण पहचानते हैं अर्जुन को भलीभांति। वह टाइप क्षत्रिय का | लोग नहीं हैं। कोई कारण नहीं है इनके छोटे होने का। ये अपने वर्ग है। अभी बातें वह ब्राह्मण जैसी कर रहा है। इसमें कनफ्यूज्ड हो | में वैसे ही श्रेष्ठ हैं, जैसे कोई याज्ञवल्क्य, जैसे कोई पतंजलि, जैसे जाएगा। इसमें उपद्रव में पड़ जाएगा। उसके व्यक्तित्व का पूरा का कोई अर्जुन अपने वर्गों में होंगे। इसमें कोई तुलना नहीं है, कोई पूरा बनाव, स्ट्रक्चर, उसके मनस की एनाटामी, उसके मनस का | | कंपेरिजन नहीं है। सारा ढांचा क्षत्रिय का है। तलवार ही उसकी आत्मा है; वही उसकी | वर्ण की जो धारणा है, वह तुलनात्मक नहीं है, वह सिर्फ रौनक है, वही उसका संगीत है। अगर परमात्मा की झलक उसे | तथ्यात्मक है। जिस दिन वर्ण की धारणा तुलनात्मक हुई कि कौन कहीं से भी मिलनी है, तो वह तलवार की चमक से मिलनी है। ऊपर, कौन नीचे, उस दिन वर्ण की वैज्ञानिकता चली गई और वर्ण उसके लिए कोई और रास्ता नहीं है। एक सामाजिक अनाचार बन गया। जिस दिन वर्ण में तुलना पैदा तो उससे वे कह रहे हैं, तू क्षत्रिय है; अगर और सब बातें भी | हुई—कि क्षत्रिय ऊपर, कि ब्राह्मण ऊपर, कि वैश्य ऊपर, कि शूद्र छोड़, तो तुझसे कहता हूं कि तू क्षत्रिय है। और तुझसे मैं कहता हूं | | ऊपर, कि कौन नीचे, कि कौन पीछे-जिस दिन वर्ण का शोषण कि क्षत्रिय में यहां-वहां होकर तू सिर्फ दीन-हीन हो जाएगा, | | किया गया, वर्ण के वैज्ञानिक सिद्धांत को जिस दिन सामाजिक यहां-वहां होकर तू सिर्फ ग्लानि को उपलब्ध होगा, यहां-वहां | शोषण की आधारशिला में रखा गया. उस दिन से वर्ण की धारणा होकर तू सिर्फ अपने प्रति अपराधी हो जाएगा। अनाचार हो गई। और ध्यान रहे, अपने प्रति अपराध जगत में बड़े से बड़ा अपराध । सभी सिद्धांतों का अनाचार हो सकता है, किसी भी सिद्धांत का है। क्योंकि जो अपने प्रति अपराधी हो जाता है, वह फिर सबके शोषण हो सकता है। वर्ण की धारणा का भी शोषण हुआ। और प्रति अपराधी हो जाता है। सिर्फ वे ही लोग दूसरे के साथ अपराध | | अब इस मुल्क में जो वर्ण की धारणा के समर्थक हैं, वे उस वर्ण नहीं करते, जो अपने साथ अपराध नहीं करते। और कृष्ण की भाषा। | की वैज्ञानिकता के समर्थक नहीं हैं। उस वर्ण के आधार पर जो में समझें, तो अपने साथ सबसे बड़ा अपराध यही है कि जो उस | शोषण खड़ा है, उसके समर्थक हैं। उनकी वजह से वे तो डूबेंगे ही, व्यक्ति का मौलिक स्वर है जीवन का, वह उससे च्युत हो जाए, | वर्ण का एक बहुत वैज्ञानिक सिद्धांत भी डूब सकता है। उससे हट जाए। ___ एक चौथा वर्ग भी है, जिसे धन से भी प्रयोजन नहीं है, शक्ति तीसरा एक वर्ग और है, जिसको तलवार में सिर्फ भय के | से भी अर्थ नहीं है, ज्ञान की भी कोई बात नहीं है, लेकिन जिसका अतिरिक्त और कुछ भी नहीं दिखाई पड़ेगा; संगीत तो कभी नहीं, | | जीवन कहीं बहुत गहरे में सेवा और सर्विस के आस-पास घूमता सिर्फ भय दिखाई पड़ेगा। जिसे ज्ञान की खोज नासमझी मालूम | है। जो अगर अपने को कहीं समर्पित कर पाए और किसी की सेवा पड़ेगी कि सिरफिरों का काम है। तो तीसरा वर्ग है, जिसके लिए | कर पाए, तो फुलफिलमेंट को, आप्तता को उपलब्ध हो सकता है। धन महिमा है। जिसके लिए धन ही सब कुछ है। धन के आस-पास | | ये जो चार वर्ग हैं, इनमें कोई नीचे-ऊपर नहीं है। ऐसे चार मोटे 159
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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