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बचकाना है / दार्शनिकों के उत्तरों की व्यर्थता / आत्मा के तल पर मात्र कामना ही कृत्य बन जाती है | अगर भाव और समझ पूरी हो, तो घटना तत्काल / क्या प्रेतात्मा और इथरिक बाडी एक है? क्या प्रेतात्मा का दूसरे के शरीर में प्रवेश करके उसे सताना संभव है? इसका निवारण क्या है? / साधारण मृत आत्माएं शीघ्र ही गर्भ पा जाती हैं। अधिक बुरी आत्माएं-भूत-प्रेत; और अधिक भली आत्माएं-देवता / संकल्पवान व्यक्ति में भूत-प्रेत का प्रवेश कठिन / निराशा, भय व आत्मग्लानि में सूक्ष्म शरीर का सिकुड़ना और प्रेतात्माओं के लिए खाली जगह का बनना / संकल्प के वर्तुल का फैलाव-शरीर के बाहर भी / संकल्प का पूरे ब्रह्मांड में फैलाव होने पर अहं ब्रह्मास्मि का अनुभव / बढ़ते हुए संकल्प में आस्तिकता का जन्म और सिकुड़ते हुए संकल्प में नास्तिकता का जन्म / अशरीरी भूत-प्रेतों का अपनी वासनापूर्ति के लिए दूसरे के शरीर में प्रवेश / देवताओं का-आमंत्रण पर ही शरीर में प्रवेश / देवताओं को निमंत्रित करने की विधियां / देवताओं द्वारा अनेक ज्ञान-विज्ञान की सूचनाओं का देना / आयुर्वेद-देवताओं द्वारा दी गई सूचनाओं पर आधारित / यज्ञ, हवन, मंत्र, अनुष्ठान आदि विधियां-देव आत्माओं के आह्वान के लिए / मान लो कि आत्मा यदि मरणधर्मा है, तो फिर मरने की चिंता क्यों करनी / विद्वान तर्क और विचार के तल पर जीता है-और ज्ञानी अनुभूति के तल पर / अर्जुन, ज्ञानी होने की तेरी तैयारी नहीं है, तो विद्वान हो जा / जो अपरिहार्य है-वह होकर ही रहेगा, तू चिंता छोड़ / अपने को निमित्त मात्र समझ / करोड़ों में कभी कोई एक व्यक्ति स्वयं को जानने के लिए पिपासु होता है / करोड़ों में एक व्यक्ति विचारों का अतिक्रमण कर पाता है / बिना विचार के आप हो सकते हैं, विचार आपके बिना नहीं हो सकता / आश्चर्य की बात है कि कोई आत्म-ज्ञान का उपदेश करे / वह कहा नहीं जा सकता, लेकिन कहना ही पड़ेगा / नहीं कह सकने की असमर्थता में ही शायद कुछ संवादित हो जाए।
जीवन की परम धन्यतास्वधर्म की पूर्णता में ... 151
प्रारंभ और अंत में है अव्यक्त, अद्वैत; और मध्य में है व्यक्त, द्वैत-तो अव्यक्त, अद्वैत को मध्य के व्यक्त क्षणों में जानने का क्या प्रयोजन है? / व्यक्त की सीमा है-अव्यक्त असीम है / व्यक्त में ही भीतर उतरें तो अव्यक्त में पहुंच जाएंगे / स्वयं में उतरते ही सर्व में उतरना / अव्यक्त आपके भीतर ही मौजूद है / तू की खोज व्यक्त में ले जाती है और मैं में प्रवेश-सर्व में, अव्यक्त में / श्वास कौन लेता है? खून कौन चलाता है? कोई अज्ञात, अव्यक्त ताकत / रूप के पीछे अरूप, दृश्य के पीछे अदृश्य और व्यक्त के पीछे अव्यक्त छिपा है | आंखें बंद करें-भीतर उतरें; विचारों को, स्मृतियों को तटस्थ साक्षी भाव से देखते रहें / देखते-देखते-स्वयं का बोध और अव्यक्त में प्रवेश / जीने की इच्छा के हटते ही अव्यक्त सिकुड़ने लगता है या अव्यक्त के सिकुड़ने पर जीवेषणा छूट जाती है? दोनों युगपत घटित / दोनों एक ही घटना है / अहंकार के कारण कर्ताभाव / अव्यक्त में सब प्रश्नों का गिर जाना / व्यक्त में डूबना है मार्ग–अव्यक्त में प्रवेश का / क्षत्रिय का स्वधर्म है-युद्ध / प्रत्येक व्यक्ति असमान है / समानता हो नहीं सकती / चार मनोवैज्ञानिक टाइप-मनुष्य के / ब्राह्मण-सत्य और ज्ञान का खोजी / क्षत्रिय-शक्ति का पिपासु / अर्जुन का स्वधर्म है-क्षत्रिय होना / वैश्य का धन-केंद्रित जीवन / वर्ण की धारणा तुलनात्मक नहीं तथ्यात्मक है / वर्ण की धारणा का भी ऊंच-नीच के नाम पर शोषण हुआ है / वर्ण की धारणा के आज के समर्थक-शोषण के समर्थक / शूद्र है सेवा-केंद्रित / प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग उसके वर्ण से-स्वधर्म से लेकर गुजरता है / वर्ण व्यवस्था ताकि अपने टाइप के अनुकूल गर्भ का चुनाव सुगमता से हो सके / एक गहन प्रयोग-सामाजिक तल पर / अमेरिका में वैश्यों की हुकूमत, रूस और चीन में शूद्रों का शासन / भविष्य में ब्राह्मणों का शासन संभव / अर्जुन का सारा शिक्षण क्षत्रिय होने का / क्षत्रियत्व का निखार-युद्ध में ही / अभय-क्षत्रिय की आत्मा है / अर्जुन को धन्यता उपलब्ध होगी-युद्ध के माध्यम से ही / कृष्ण का अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करना-मनोवैज्ञानिक कारणों से / प्रत्येक व्यक्ति का अपना निजी स्वधर्म है / गीता का संदेश युद्ध नहीं-स्वधर्म का पालन है।