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________________ - गीता दर्शन भाग-1-m है, तो कैसे यात्रा करती है, वह मैंने आपसे कहा। यात्रा का कमी को पूरा करते हैं, फिर भी पूरा नहीं कर पाते। अगर कामना क्या-इतना ही ज्ञात है, इतना ही ज्ञात हो सका है, इतना ही ज्ञात पूरी है, तो कृत्य तत्काल हो जाता है। अगर आप इसी क्षण पूरे भाव हो सकता है, इससे शेष अज्ञात ही रहेगा। से कामना कर पाएं कि परमात्मा को जानूं, तो एक सेकेंड भी नहीं वह यह कि स्वतंत्रता के पूर्ण अनुभव के पहले परतंत्रता का गिरेगा और परमात्मा जान लिया जाएगा। अनुभव जरूरी है। मुक्ति के पूरे आकाश में उड़ने के पहले किसी | अगर बाधा पड़ती है, तो कृत्य की कमी से नहीं; बाधा पड़ती है, कारागृह, किसी पिंजरे के भीतर थोड़ी देर टिकना उपयोगी है। | भीतर मन ही पूरा नहीं कहता। वह यह कहता है, जरा और सोच उसकी यूटिलिटी है। इसलिए आत्मा यात्रा करती है। और जब तक | | लू; इतनी जल्दी भी क्या है जानने की! एक मन कहता है, जानें। आत्मा बहुत गहरी नहीं उतर जाती पाप, अंधकार, बुराई, कारागृह | आधा मन कहता है, छोड़ो। क्या रखा है! परमात्मा है भी, नहीं में, तब तक लौटती भी नहीं। है-कुछ पता नहीं है। कामना ही पूरी नहीं है। कल कोई दोपहर मुझसे पूछता था कि वाल्मीकि जैसे पापी ___ इसलिए कृष्ण जब कहते हैं, आत्मा निष्क्रिय है, तो इस बात को उपलब्ध हो जाते हैं ज्ञान को! तो मैंने कहा, वही हो पाते हैं। जो | ठीक से समझ लेना कि आत्मा के लिए कृत्य करने की अनिवार्यता मीडियाकर हैं, जो बीच में होते हैं, उनका अनुभव ही अभी पाप का | ही नहीं है। आत्मा के लिए कामना करना ही पर्याप्त कृत्य है। अगर इतना नहीं कि पुण्य की यात्रा शुरू हो सके। इसलिए वे बीच में ही | | यह खयाल में आ जाए, तो ही यह बात खयाल में आ पाएगी कि रहते हैं। लेकिन वाल्मीकि के लिए तो आगे जाने का रास्ता ही | | कृष्ण अर्जुन को समझाए चले जा रहे हैं, इस आशा में कि अगर खतम हो जाता है; कल-डि-सैक आ जाता है; वहां सब रास्ता ही समझ भी पूरी हो जाए, तो बात पूरी हो जाती है; कुछ और करने खतम हो जाता है। अब और वाल्मीकि क्या पाप करें? आखिरी आ| | को बचता नहीं है। कुछ ऐसा नहीं है कि समझ पूरी हो जाए, तो गई यात्रा। अब दूसरी यात्रा शुरू होती। | फिर शीर्षासन करना पड़े, आसन करना पड़े, व्यायाम करना पड़े, इसलिए अक्सर गहरा पापी गहरा संत हो जाता है। साधारण | | फिर मंदिर में घंटी बजानी पड़े, फिर पूजा करनी पड़े, फिर प्रार्थना पापी साधारण सज्जन ही होकर जीता है। जितने गहरे अंधकार की करनी पड़े। अगर अंडरस्टैंडिंग पूरी हो जाए, तो कुछ करने को यात्रा होगी, उतनी अंधकार से मुक्त होने की आकांक्षा का भी जन्म | बचता नहीं। वह पूरी नहीं होती है, इसलिए सब उपद्रव करना पड़ता . होता है; उतनी ही तीव्रता से यात्रा भी होती है दूसरी दिशा में भी। | है। सारा रिचुअल सब्स्टीटयूट है। जो भी क्रियाकांड है, वह समझ इसलिए आत्मा निष्क्रिय होते हुए भी कामना तो करती है यात्रा | की कमी को पूरा करवा रहा है और कुछ नहीं। उससे पूरी होती भी की। निष्क्रिय कामना भी हो सकती है। आप कुछ न करें, सिर्फ नहीं, सिर्फ वहम पैदा होता है कि पूरी हो रही है। अगर समझ पूरी कामना करें। लेकिन आत्मा के तल पर कामना ही एक्ट बन जाती हो जाए, तो तत्काल घटना घट जाती है। है, दि वेरी डिजायर बिकम्स दि एक्ट। वहां सिर्फ कामना करना ही एडिंग्टन ने अपने आत्म-संस्मरणों में लिखा है कि जब मैंने कृत्य हो जाता है। वहां कोई और कृत्य करने की जरूरत नहीं होती। जगत की खोज शुरू की थी, तो मैं कुछ और सोचता था। मैं सोचता इसलिए शास्त्र कहते हैं कि परमात्मा ने कामना की, तो जगत था, जगत वस्तुओं का एक संग्रह है। अब जब कि मैं जगत की निर्मित हुआ। बाइबिल कहती है कि परमात्मा ने कहा, लेट देअर | | खोज, जितनी मुझसे हो सकती थी, करके विदा की बेला में आ बी लाइट, एंड देअर वाज़ लाइट। कहा कि प्रकाश हो, और प्रकाश | | गया हूं, तो मैं कहना चाहता हूं, दि वर्ल्ड इज़ लेस लाइक ए थिंग हो गया। यहां प्रकाश हो और प्रकाश के हो जाने के बीच कोई भी | | एंड मोर लाइक ए थाट। अब यह नोबल प्राइज विनर वैज्ञानिक कृत्य नहीं है। सिर्फ कामना है। आत्मा की कामना कि अंधेरे को | कहे, तो थोड़ा सोचने जैसा है। वह कहता है कि जगत वस्तु के जाने, कि यात्रा शुरू हो गई। आत्मा की कामना कि मुक्त हों, कि जैसा कम और विचार के जैसा ज्यादा है। . यात्रा शुरू हो गई। आत्मा की कामना कि जानें परम सत्य को, कि | अगर जगत विचार के जैसा ज्यादा है, तो कृत्य मूल्यहीन है, यात्रा शुरू हो गई। संकल्प मूल्यवान है। कृत्य संकल्प की कमी है। इसलिए हमें और आपको अगर कृत्य करने पड़ते हैं, तो वे इसलिए करने लगता है कि कुछ करें भी, तब पूरा हो पाएगा। पड़ते हैं कि कामना पूरी नहीं है। असल में कृत्य सिर्फ कामना की। संकल्प ही काफी है। आत्मा बिलकुल निष्क्रिय है। और उसका 142
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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