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________________ am गीता दर्शन भाग-1 मानते हैं। फिर यह प्रतीति गहरी होती चली जाती है, यह स्मृति मुझसे कहा कि हैरानी की बात है। दर्द जितनी जगह फैला हुआ सघन हो जाती है। फिर शरीर वस्त्र नहीं रह जाता, हम ही वस्त्र हो | दिखाई पड़ता था, इतनी जगह है नहीं। बस, घुटने के ठीक पास जाते हैं। मालूम पड़ता है। मैंने कहा, कितनी जगह घेरता होगा? उन्होंने कहा एक मेरे मित्र हैं। वृद्ध हैं, सीढ़ियों से पैर फिसल पड़ा उनका।। कि जैसे कोई एक बड़ी गेंद के बराबर जगह। मैंने कहा, और थोड़ा पैर में बहुत चोट पहुंची। कोई पचहत्तर साल के वृद्ध हैं। गया उनके | | खोजें। और थोड़ा खोजें। उन्होंने फिर आंख बंद कर ली। और अब गांव तो लोगों | तो आश्वस्त थे. क्योंकि दर्द इतना सिकडा कि सोचा भी नहीं था डाक्टरों ने तीन महीने के लिए उनको बिस्तर पर सीधा बांध रखा कि मन ने इतना फैलाया होगा। और खोजा। पंद्रह मिनट मैं बैठा था। और कहा कि तीन महीने हिलना-इलना नहीं। सक्रिय आदमी रहा। वे खोजते चले गए। हैं, पचहत्तर साल की उम्र में भी बिना भागे-दौड़े उन्हें चैन नहीं। फिर उन्होंने आंख नहीं खोली। चालीस मिनट, पैंतालीस तीन महीने तो उनको ऐसा अनंत काल मालुम होने लगा। मिनट और उनका चेहरा मैं देख रहा है और उनका चेहरा __ मैं मिलने गया, तो कोई छह-सात दिन हुए थे। रोने लगे। बदलता जा रहा है। कोई सत्तर मिनट बाद उन्होंने आंख खोली और हिम्मतवर आदमी हैं। कभी आंख उनकी आंसुओं से भरेगी, मैंने | | कहा, आश्चर्य है कि वह तो ऐसा रह गया, जैसे कोई सुई चुभाता सोचा नहीं था। एकदम असहाय हो गए और कहा कि इससे तो | हो इतनी जगह में। फिर मैंने कहा, फिर क्या हआ? आपको जवाब बेहतर है, मैं मर जाता। ये तीन महीने इस तरह बंधे हए। यह तो देना था: मझे जल्दी जाना है: मैं सत्तर मिनट से बैठा हआ हं: आप बिलकुल नर्क हो गया। यह मैं न गुजार सकूँगा। मुझसे बोले, मेरे | आंख नहीं खोले। उन्होंने कहा कि जब वह इतना सिकुड़ गया कि लिए प्रार्थना करिए कि भगवान मुझे उठा ही ले। अब जरूरत भी | | ऐसा लगने लगा कि बस, एक जरा-सा बिंदु जहां पिन चुभाई जा क्या है। अब काफी जी भी लिया। अब ये तीन महीने इस खाट पर | रही हो, वहीं दर्द है, तो मैं उसे और गौर से देखने लगा। मैंने सोचा, बंधे-बंधे ज्यादा कठिन हो जाएंगे। तकलीफ भी बहुत है, पीड़ा भी | जो इतना सिकुड़ सकता है, वह खो भी सकता है। और ऐसे क्षण बहुत है। । आने लगे कि कभी मुझे लगे कि नहीं है। और कभी लगे कि है, मैंने उनसे कहा, छोटा-सा प्रयोग करें। आंख बंद कर लें और | कभी लगे कि खो गया। और एक क्षण लगे कि सब ठीक है, और . पहला तो यह काम करें कि तकलीफ कहां है, एक्जेक्ट पिन प्वाइंट एक क्षण लगे कि वापस आ गया। करें कि तकलीफ कहां है। वे बोले, परे पैर में तकलीफ है। मैंने | फिर मैंने कहा कि फिर भी मझे खबर कर देनी थी. तो मैं जाता। कहा कि थोड़ा आंख बंद करके खोज-बीन करें, सच में पूरे पैर में उन्होंने कहा, लेकिन एक और नई घटना घटी, जिसके लिए मैं सोच तकलीफ है? | ही नहीं रहा था। वह घटना यह घटी कि जब मैंने इतने गौर से दर्द क्योंकि आदमी को एग्जाजरेट करने की, बढ़ाने की आदत है। को देखा, तो मुझे लगा कि दर्द कहीं बहुत दूर है और मैं कहीं बहुत न तो इतनी तकलीफ होती है, न इतना सुख होता है। हम सब दूर हूं। दोनों के बीच बड़ा फासला है। तो मैंने कहा, अब ये तीन बढाकर देखते हैं। आदमी के पास मैग्नीफाइंग माइंड है। उसके महीने इसका ही ध्यान करते रहें। जब भी दर्द हो, फौरन आंख बंद पास-जैसे कि कांच होता है न, चीजों को बड़ा करके बता देता | | करें और ध्यान में लग जाएं। है-ऐसी खोपड़ी है। हर चीज को बड़ा करके देखता है। कोई तीन महीने बाद वे मुझे मिले तो उन्होंने पैर पकड़ लिए। फिर फूलमाला पहनाता है, तो वह समझता है कि भगवान हो गए। कोई रोए, लेकिन अब आंसू आनंद के थे। और उन्होंने कहा, भगवान जरा हंस देता है. तो वह समझता है कि गए. सब इज्जत पानी में की कपा है कि मरने के पहले तीन महीने खाट पर लगा दिया. मिल गई। मैग्नीफाइंग ग्लास का काम उसका दिमाग करता है। | अन्यथा मैं कभी आंख बंद करके बैठने वाला आदमी नहीं हूं। मैंने कहा, जरा खोजें। मैं नहीं मानता कि पूरे पैर में दर्द हो लेकिन इतना आनंद मुझे मिला है कि मैं जीवन में सिर्फ इसी घटना सकता है। क्योंकि पूरे पैर में होता, तो पूरे शरीर में दिखाई पड़ता। के लिए अनुगृहीत हूं परमात्मा का। जरा खोजें। । मैंने कहा, क्या हुआ आपको? उन्होंने कहा, यह दर्द को आंख बंद करके उन्होंने खोजना शुरू किया। पंद्रह मिनट बाद मिटाते-मिटाते मुझे पता चला कि दर्द तो जैसे दीवार पर हो रहा है
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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