________________
मृत्यु के पीछे अजन्मा, अमृत और सनातन का दर्शन ...87
निरहंकार और निर्विचार होने पर क्रियाएं कैसे, अभिव्यक्ति कैसे, समाज का विकास कैसे? तब सब कुछ होता है-केवल कर्ता का भाव नहीं बनता / तब परमात्मा ही करता. करवाता / जो है वह सदा से है | कछ भी विनष्ट नहीं होता केवल रूप परिवर्तन / अर्जन रूप की, परिवर्तनशील की बात कर रहा है; कृष्ण अरूप की, अपरिवर्तनशील की बात कर रहे हैं / जीवन प्रतिपल बदल रहा है / एक ही नदी में दुबारा नहीं उतर सकते / जो प्रतिपल बदल रहा है, मर रहा है उसके लिए अर्जुन चिंतित / असंभव के लिए चिंता का परिणाम विक्षिप्तता / अर्जुन को अमृत का पता नहीं / मृत्यु का भय-अर्थात अज्ञान निश्चित / अर्जुन की सारी पीड़ा आत्म-अज्ञान की है | क्या यह सही नहीं है कि नाम-रूप के बिना अरूप सत्ता की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती? अभिव्यक्ति और अस्तित्व में फर्क है / बिना अभिव्यक्ति के भी सत्ता संभव / कली के फोटोग्राफ में फूल की छाप / जो भविष्य में होने वाला है, वह आज भी किसी सूक्ष्म तल पर हो रहा है / बच्चे के चित्र में बुढ़ापे का चित्र भी लेना संभव / कृष्ण के लिए कोई अतीत और भविष्य नहीं-सब सनातन वर्तमान है / अस्तित्व है-होना; और अभिव्यक्ति है-घटना / प्रकट ही सब कुछ नहीं है-अप्रकट भी है बहुत कुछ / जीवन एक लीला है-बदलते चेहरों का / समस्त परिवर्तनशील के केंद्र में एक अपरिवर्तनशील तत्व / मरण और नए जन्म के बीच आत्मा का क्या रूप होता है? मरने के बाद सूक्ष्म शरीर नयी यात्रा पर / मृतात्मा के सूक्ष्म शरीर का फोटोग्राफ संभव / सूक्ष्म शरीर में पूरा बिल्ट-इन-प्रोग्रैम / सूक्ष्म शरीर-अनेक जन्मों का आधार / समाधि अर्थात जीते जी सूक्ष्म शरीर का पूर्ण विसर्जन / अभिव्यक्ति बंधन है-सीमा है /
अभिव्यक्ति से मुक्त होना ही संसार से मुक्त होना है / मृतात्मा की शांति के लिए क्या पत्नी-बच्चे कुछ कर सकते हैं? / मृतात्मा की शांति के बहाने पत्नी या बच्चों द्वारा शुभ कर्म फलित / प्रौढ़ मनुष्यता को सीधी वैज्ञानिक व्याख्या देनी होगी / जो भी जन्मता है, वह मरता है / न मिटने में दुख है, न होने में सुख / आनंद सुख और दुख दोनों से ही ऊपर उठ जाना है / सुख और दुख, मिलन और विरह-एक ही सिक्के के दो पहलू / आधा सत्य सुख-दुख में ले जाएगा और पूरा सत्य आनंद में / अर्जुन पूरा सत्य देख ले तो चिंता-मुक्त हो जाए / द्वैत में अद्वैत के दर्शन से व्यक्ति ज्ञानी / खोजो सुख-मिलता है दुख / समय के अंतराल के कारण हम दोनों में संबंध नहीं जोड़ पाते / सुख-दुख को समान समझने वाले धीर पुरुष को इंद्रियों के . विषय व्यथित नहीं करते।
भागना नहींजागना है ... 105
सत क्या, असत क्या-इसके भेद को जान लेना ज्ञान है / असत अर्थात जो नहीं है, फिर भी होने का भ्रम देता है / दो न होने के बीच में जो होना है, वह असत है / सत अर्थात जो सदा है, अनादि है, अनंत है / असत को असत की भांति जान लेना-सत्य की खोज का आधार / असत को सत का अवलंबन जरूरी / असत के प्रति बोध से असत का विसर्जन / असत है समय में सत्य है कालातीत / समय के दर्पण पर असत का प्रतिफलन / अविनाशी सत / जो हर हालत में बच ही रहता है—वह सत / बुद्ध के नथिंगनेस में और शंकर के एवरीथिंगनेस में क्या विरोध है? / न भोगो, न भागो-वरन जागो-तो जागना भी क्या एक प्रयास और चुनाव ही नहीं होगा? शून्य और पूर्ण एक ही सत्य के दो नाम हैं / बुद्ध और शंकर में कोई विरोध नहीं है केवल नकार और विधेय की भाषा का फर्क है / भागने का मतलब है-चुनाव / कुछ छोड़ना, कुछ पकड़ना / भागकर जहां भी जाएंगे, वहां संसार होगा / ज्ञानी जागता है-अज्ञानी भागता है / संसार न पाया जा सकता है, न छोड़ा जा सकता है / भागना भी गलत, पकड़ना