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________________ Im गीता दर्शन भाग-1 AM पता नहीं कैसे चूक जाते हैं देखने से! कैसे अपने को बचा लेते हैं मिलेगा। जिससे भी सुख चाहा, उससे दुख मिलेगा। क्योंकि सब देखने से! शायद कोई बड़ी ही चालाकी हम अपने साथ करते हैं। | | सुख दुख में बदल जाते हैं। जिससे भी मित्रता चाही, उससे शत्रुता अन्यथा ऐसा जीवंत सत्य दिखाई न पड़े, यही आश्चर्य है। | मिलेगी। क्योंकि सभी मित्रताएं शत्रुताओं की शुरुआत हैं। रोज अनुभव में आता है। सब चीजें अपने से विपरीत में बदल | | ट्रिक कहां है मन की? धोखा कहां है? तरकीब? जाती हैं। ज्यादा गहरी मित्रता करें और शत्रता जन्मनी शुरू हो जाती । तरकीब है, अनुभूति के सत्य को, स्थिति के सत्य को, हम है। लेकिन तरकीब क्या है हमारी इससे बच जाने की? तरकीब व्यक्तियों पर थोप देते हैं। फिर नया व्यक्ति खोजने निकल जाते हैं। हमारी यह है कि जब मित्र शत्रु बनने लगता है, तो हम ऐसा नहीं | साइकिल नहीं है घर में, साइकिल खरीद ली। फिर पाते हैं, सोचा समझते हैं कि मित्रता शत्रुता बन रही है, हम समझते हैं कि मित्र | | था कि बहुत सुख मिलेगा, नहीं मिला। लेकिन तब तक यह खयाल शत्रु बन रहा है। बस वहीं भूल हो जाती है। जब एक मित्र शत्रु बनने | | भी नहीं आता कि जिस साइकिल के लिए रात-रातभर सपने देखे लगता है, तो हम समझते हैं कि मित्र शत्रु बन रहा है; दूसरा कोई | | थे कि मिल जाए तो बहुत सुख मिलेगा, अब बिलकुल नहीं मिल मित्र होता तो नहीं बनता, यह आदमी दगाबाज था। तीसरा कोई | | रहा है। लेकिन वह बात ही भूल जाते हैं। तब तक हम कार मिल मित्र होता तो नहीं बनता, यह आदमी दगाबाज था। वह दूसरा मित्र, | जाए तो उसके सुख में लग जाते हैं। फिर कार भी मिल जाती है। आप भी उसके शत्रु बन रहे हैं अब, वह भी यही सोचता है कि यह | फिर भूल जाते हैं कि जितना सुख सोचा था, उतना मिला? वह आदमी गलत आदमी चुन लिया। ठीक आदमी होता तो कभी ऐसा | कभी मिलता नहीं। नहीं होने वाला था। मित्रं जब शत्रु बनता है, तब हम सत्य से वंचित ___ मिलता है दुख, खोजा जाता है सुख। मिलती है घृणा, खोजा रह जाते हैं। सत्य यह है कि मित्रता शत्रुता बन जाती है। लेकिन हम | जाता है प्रेम। मिलता है अंधकार, यात्रा की जाती है सदा प्रकाश मित्र पर थोपकर, फिर दूसरे मित्र की तलाश में निकल जाते हैं। | की। लेकिन इन दोनों को हम कभी जोड़कर नहीं देख पाते, गणित एक आदमी ने अमेरिका में आठ बार शादियां कीं। मगर को हम कभी पूरा नहीं कर पाते। उसका एक कारण और भी खयाल होशियार आदमी रहा होगा। पहली शादी, सालभर बाद तलाक | । में ले लेना जरूरी है। क्योंकि दोनों के बीच में टाइम-गैप होता है, किया। देखा कि पत्नी गलत है। कोई अनहोनी बात नहीं देखी; इसलिए हम नहीं जोड़ पाते हैं। सभी पति देखते हैं, सभी पत्नियां देखती हैं। देखा कि पत्नी गलत | ___ अफ्रीका में जब पहली दफा पश्चिम के लोग पहुंचे, तो बड़े है, चुनाव गलत हो गया। तलाक कर दिया। फिर दूसरी पत्नी चुनी। हैरान हुए। क्योंकि अफ्रीकनों में यह खयाल ही नहीं था कि बच्चों छः महीने बाद पता चला कि फिर गलत हो गया! आठ बार जिंदगी का संभोग से कोई संबंध है। उनको पता ही नहीं था इस बात का में शादी की। लेकिन मैंने कहा कि आदमी होशियार होगा, क्योंकि | | कि बच्चे का जन्म संभोग से किसी भी तरह जुड़ा हुआ है। आठ बार की भूल से भी जो ठीक सत्य पर पहुंच जाए, वह भी | टाइम-गैप बड़ा है। एक तो सभी संभोग से बच्चे पैदा नहीं होते। असाधारण आदमी है। आठ हजार बार करके भी नहीं पहुंचते, | दूसरे नौ महीने का फर्क पड़ता है। अफ्रीका में खयाल ही नहीं था क्योंकि हमारा तर्क तो वही रहता है हर बार। कबीलों में कि बच्चे का कोई संबंध संभोग से है। संभोग से कुछ आठ बार के बाद उसने शादी नहीं की। और उसके मित्रों ने पूछा लेना-देना ही नहीं है। कॉज़ और एफेक्ट में इतना फासला जो कि तमने शादी क्यों न की? तो उसने कहा कि आठ बार में एक | है—कारण नौ महीने पहले, कार्य नौ महीने बाद तो जोड़ नहीं अजीब अनुभव हुआ कि हर बार जिस स्त्री को मैं ठीक समझकर हो पाता। लाया, वह पीछे गलत साबित हुई। तो पहली दफा मैंने सोचा कि ___ सुख को जब हम पकड़ते हैं, जब तक वह दुख बनता है, तब वह स्त्री गलत थी। दूसरी दफे सोचा कि वह स्त्री गलत थी। लेकिन | | तक बीच में टाइम गिरता है समय गिरता है। तो हम जोड़ नहीं पाते तीसरी दफे शक पैदा होने लगा। चौथी दफा तो बात बहुत साफ |कि ये दोनों बिंदु जुड़े हैं। यह वही सुख है जो अब दुख बन गया। दिखाई पड़ने लगी। फिर भी मैंने कहा, एक-दो प्रयोग और कर लेने | नहीं, वह हम नहीं जोड़ पाते। मित्र को शत्रु बनने में समय लगेगा चाहिए। आठवीं बार बात स्पष्ट हो गई कि यह सवाल स्त्री के न! आखिर कुछ भी बनने में समय लगता है। तो जब मित्र बना था गलत और सही होने का नहीं है। जिससे भी सुख चाहा, उससे दुख | तब, और जब शत्रु बना तब, वर्षों बीच में गुजर जाते हैं। जोड़ नहीं 102
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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