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________________ 8/137 स्वप्न-सर्जक मन का विसर्जन और नित्य सत्य की उपलब्धि 9/155 साधक के लिए शून्यता, सत्य योग, अजपा गायत्री और विकार-मुक्ति का महत्व __10/173 आनंद और आलोक की अभीप्सा, उन्मनी गति और परमात्म-आलंबन 11/195 अंतर-आकाश में उड़ान, स्वतंत्रता का दायित्व और शक्तियां प्रभु-मिलन की ओर __12/217 सम्यक त्याग, निर्मल शक्ति और परम अनुशासन मुक्ति में प्रवेश 13/239 असार बोध, अहं विसर्जन और तुरीय तक यात्रा-चैतन्य और साक्षीत्व से 14/261 भ्रांति-भंजन, कामादि वृत्ति दहन, अनाहत मंत्र और अक्रिया में प्रतिष्ठा 15/285 निर्वाण रहस्य अर्थात सम्यक संन्यास, ब्रह्म जैसी चर्या और सर्व देहनाश
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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