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निरालंब पीठः।
संयोगदीक्षा। वियोगोपदेशः। दीक्षा संतोषपावनम् च। द्वादश आदित्यावलोकनम्।
आश्रयरहित उनका आसन है। (परमात्मा के साथ) संयोग ही उनकी दीक्षा है।
संसार से छूटना ही उपदेश है। दीक्षा संतोष है और पावन भी। बारह सूर्यों का वे दर्शन करते हैं।