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V
गगन सिद्धान्तः अमृत कल्लोलनदी । अक्षयं निरंजनम् । निःसंशय ऋषिः ।
निर्वाणो देवता ।
निष्कुल प्रवृत्तिः । निष्केवलज्ञानम् । ऊर्ध्वाम्नायः ।
उनका सिद्धांत आकाश के समान निर्लेप होता है, अमृत की तरंगों से युक्त (आत्मारूप) उनकी नदी होती है। अक्षय और निर्लेप उनका स्वरूप होता है ।
संशय शून्य है वह ऋषि है। निर्वाण ही उनका इष्ट है । वे सर्व उपाधियों से मुक्त हैं। वहां मात्र ज्ञान ही शेष है। ऊर्ध्वगमन ही जिनका पथ है।