SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मचर्य शांति संग्रहणम् । ब्रह्मचर्याश्रमैऽधीत्य वानप्रस्थाश्रमेऽधीत्य स सर्वविन्यासं संन्यासम् । अंते ब्रह्माखंडाकारम् नित्यं सर्व देहनाशनम् । एतन्निर्वाणदर्शनं शिष्यं विना पुत्रं विना न देयम | इत्युपनिषत् । ब्रह्मचर्य और शांति जिनकी संपत्ति या संग्रह है। ब्रह्मचर्याश्रम में, फिर वानप्रस्थाश्रम में अध्ययन से फलित सर्व त्याग ही संन्यास है। अंत में जहां समस्त शरीरों का नाश हो जाता है और ब्रह्मरूप अखंड आकार में प्रतिष्ठा होती है। यही निर्वाण दर्शन है, शिष्य या पुत्र के अतिरिक्त अन्य किसी को इसका उपदेश नहीं करना, ऐसा यह रहस्य है। निर्वाण उपनिषद समाप्त ।
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy