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शिवम् तुरीयं यज्ञोपवीतं तन्मया शिखा। चिन्मयं चौत्सृष्टिदंडम् संतताक्षि कमंडलुम्।
कर्म निर्मूलनं कन्था। मायाममताहंकार दहनं श्मशाने अनाहतांगी।
तुरीय ब्रह्म उनका यज्ञोपवीत है और वही शिखा है। चैतन्यमय होकर संसार-त्याग ही दंड है, ब्रह्म का नित्य दर्शन कमंडलु है।
और कर्मों का निर्मूल कर डालना कन्था है। श्मशान में जिसने दहन कर दिए हैं माया, ममता, अहंकार, वही अनाहत अंगी-पूर्ण व्यक्तित्व वाला है।