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________________ सम्यक त्याग, निर्मल शक्ति और परम अनुशासन मुक्ति में प्रवेश हिटलर हमारा श्रेष्ठतम व्यक्ति नहीं है। नेपोलियन नहीं है, सिकंदर नहीं है, चंगेज नहीं है, तैमूर नहीं है। अगर हम ठीक से सोचें तो तैमूर, चंगेज, हिटलर, मुसोलिनी, स्टैलिन, माओ, इनके मुकाबले हमने इतिहास में एक भी आदमी पैदा नहीं किया। पांच हजार साल का इतिहास, इतनी बड़ी कौम, एक चंगेज हमने पैदा नहीं किया। हम कर नहीं सकते, क्योंकि शिखर उठाने के लिए पूरा भवन चाहिए, नीचे एक-एक ईंट चाहिए। हम बुद्ध पैदा कर सके, महावीर पैदा कर सके, पतंजलि पैदा कर सके। ये बहुत और तरह के लोग हैं— अनियामक । ये अनुशासनमुक्त, अनप्रेडिक्टेबल, इनकी कोई घोषणा नहीं कर सकता कि ये कल सुबह क्या करेंगे, क्या कहेंगे, क्या होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। हमने इस पृथ्वी पर एक और ही प्रयोग किया है। और शायद हमारा प्रयोग अंततः जगत के काम पड़ेगा। बीच में चाहे हमें कितनी ही तकलीफ उठा लेनी पड़ी हो, अंततः हमारा प्रयोग ही जगत के काम पड़ेगा । आज पश्चिम के मनोवैज्ञानिक यह बात स्वीकार करने लगे हैं कि किसी भी कौम को बहुत ज्यादा डिसिप्लिन सिखाना अंततः युद्ध में घसीटने का रास्ता है। और अगर एक कौम भी डिसिप्लिण्ड हो जाएगी, तो वह युद्ध थोप देगी दूसरों पर । क्योंकि उसको पक्का भरोसा आ जाएगा कि तुमको हम मिटा सकते हैं, हमारे पास अनुशासनबद्ध शक्ति है। इसका मतलब यह हुआ कि मनोवैज्ञानिक कह रहे हैं कि • अब बच्चों की डिसिप्लिन मत सिखाओ। अगर दुनिया से युद्ध मिटाना है, तो बच्चों को स्वतंत्रता दो, पंक्तिबद्ध मत खड़ा करो उनको । उनको यूनिफार्म मत पहनाओ । उनको व्यक्तित्व दो, भीड़ और समूह की व्यवस्था मत दो। तो दुनिया से युद्ध मिट सकते हैं, नहीं तो युद्ध नहीं मिट सकेगा। कोई नहीं कह सकता कि आने वाले सौ वर्ष के भीतर भारत के ऋषियों ने जो कहा था, वह जगत का परम ज्ञान नहीं बन जाएगा। बन जा सकता है। उसका कारण है, क्योंकि पहली दफा अनुशासन के हाथ में इतने खतरनाक अस्त्र पड़ गए हैं कि अगर दुनिया अब अनुशासित हुई, तो नष्ट होगी, अब बच नहीं सकती। अब हमें उन दिशाओं में खोज करनी पड़ेगी, जहां व्यक्ति को हम इतना सरल कर देते हैं कि वह नियममुक्त होकर जी सके। पर अनियम से जो शक्ति आती है, वह बड़ी निर्मल है। फर्क उसका ऐसा समझें। शक्ति तो वह भी है। आग जलती है, तो गर्मी पैदा होती है। पास जाएं, जलन पैदा होती है। हाथ लगा दें, तो जल जाते हैं। लेकिन ठंडा आलोक भी होता है, जो सिर्फ स्पर्श करता है, लेकिन कोई ऊष्मा नहीं होती, कोई गर्मी नहीं होती। रात चांद भी निकलता है, उसका भी प्रकाश है। दिन में सूरज भी निकलता है, उसका भी प्रकाश है। लेकिन चांद का प्रकाश बड़ा शीतल है, आघात नहीं करता । छूता है, फिर भी स्पर्श का पता नहीं चलता, बहुत शीतल है। शक्ति के भी दो रूप हैं, एक तो बहुत उष्ण, जब वह हिंसा बन जाती है और दूसरे को छेदने लगती है और एक बहुत निर्मल और शीतल, चांद जैसी, जब वह दूसरे को सिर्फ सहलाती है, छूती है, लेकिन कहीं कोई आघात नहीं होता। पद-चाप भी नहीं होता, पैरों की आवाज भी नहीं मालूम पड़ती। बुद्ध आपके पास से निकल जाएं, तो ऐसे निकल जाते हैं जैसे कोई भी न निकला हो। लेकिन चंगेज खां निकले, तो ऐसा नहीं निकल सकता । 233
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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