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भय मोह शोक क्रोध त्यागस्त्यागः।
परावरैक्य रसास्वादनम्।
अनियामकत्व निर्मल शक्तिः। स्वप्रकाश ब्रह्मतत्त्वे शिवशक्ति सम्पुटित प्रपंचच्छेदनम्। तथा पत्राक्षाक्षिक कमंडलुः भावाभावदहनम्।
विभ्रत्याकाशाधारम्।
भय, मोह, शोक और क्रोध का छोड़ना, यही उनका त्याग है। परब्रह्म के साथ एकता के रस का स्वाद ही वे लेते हैं।
अनियामकपन ही उनकी निर्मल शक्ति है। स्वयं प्रकाश ब्रह्मतत्व में शिव-शक्ति से संपुटित प्रपंच का छेदन करते हैं। जैसे इंद्रिय रूपी पत्रों से ढंका हुआ मंडल होता है, ऐसे ही ढंकने वाले भाव और अभाव के आवरण को भस्म कर
डालने के लिए वे आकाश रूप आधार को धारण करते हैं।