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जागो और जीओ
आगे नहीं जातीं, क्योंकि आगे जाना खतरनाक
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फिल्में भी – बैंड-बाजा बज रहा है, शहनाई बज रही है - और खतम हो जाती हैं । विवाह हुआ; खतम हुईं। कहानियां पुरानी कहती हैं कि उन दोनों का विवाह हो गया, फिर वे दोनों सुख से रहने लगे। यहीं जाकर खतम हो जाती हैं । फिर आगे की बात उठाना खतरे से खाली नहीं है।
विवाह के बाद कौन कब सुख से रहा ? विवाह के पहले लोग भला सुख से रहे हों। एक आदमी ही जब दुखी था, तो दो होकर दुगना दुख हो जाएगा, हजार गुना हो जाएगा। दो दुखी मिलेंगे, तो सुख पैदा हो कैसे सकता है? दो जहरों के मिलने से कहीं अमृत बनता है ?
और ध्यान रखना, कसूर न स्त्री का है, न पुरुष का । कसूर यही है कि हमारी मौलिक भ्रांति है कि मैं दुखी हूं; कोई स्त्री भी दुखी है; हम दोनों मिल बैठेंगे, साथ-साथ हो जाएंगे, तो दोनों सुखी हो जाएंगे। हम एक असंभव बात की कल्पना कर रहे हैं। मैं दुखी हूं; स्त्री दुखी है। अकेली वह भी दुखी है; अकेला मैं भी दुखी हूं। ये दो दुखी आदमी एक-दूसरे से मिलकर दुख को अनंत गुना कर लेंगे। यह जोड़ ही नहीं होगा; गुणनफल होगा। और तब तड़फेंगे, तब परेशान होंगे।
रेवत ने देखा होगा चारों तरफ । रेवत ने देखे होंगे अपने मां-बाप । रेवत ने देखे होंगे अपने पड़ोसी, अपने बुजुर्ग, अपने परिवार के लोग। और फिर रेवत ने यह भी देखा होगा, सारिपुत्र का सब छोड़कर संन्यस्त हो जाना - बड़े भाई का । फिर उसने यह भी देखा होगा कि सारिपुत्र की आंखों में एक और ही आभा आ गयी। फिर उसने यह भी देखा होगा कि सारिपुत्र पहली दफा आनंदित हुए। ऐसा आनंदित आदमी उसने नहीं देखा था ।
ये सब बातें वह चुपचाप देखता रहा होगा । ये सारी बातें इकट्ठी होकर उसके भीतर घनी होती रही होंगी। फिर घोड़े पर सवार करके जब लोग उसे आग की तरफ ले चलने लगे, और जब बैंड-बाजे जोर से बजने लगे, तब उसके भीतर निर्णय की घड़ी आ गयी होगी। उसने सोचा होगा : अब सोच लूं या फिर सोचने का आगे कोई उपाय न रहेगा। कुछ करना हो तो कर लूं, अन्यथा घड़ीभर बाद फिर करना झंझट से भर जाएगा।
उसने देखा होगा कि सारिपुत्र घर छोड़कर गए, तो उनकी पत्नी कितनी दुखी है । सारिपुत्र परम सुख को उपलब्ध हो गए हैं, लेकिन पत्नी बहुत दुखी है। पति जिंदा है और पत्नी विधवा हो गयी है जीते जी पति के; दुखी न होगी, तो क्या होगा !
सारिपुत्र घर छोड़कर चले गए, उनके बेटे दीन-हीन और अनाथ हो गए हैं। सारिपुत्र तो परम अवस्था को उपलब्ध हो गए, लेकिन थोड़ी खटक तो है इसमें कि ये बच्चे अनाथ हो गए; यह पत्नी दुखी है। बूढ़े मां-बाप चिंतित हैं; परेशान हैं। उनको यह बोझ ढोना पड़ रहा है सारिपुत्र की पत्नी और बच्चों का ।
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