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________________ अप्प दीपो भव! कहते हैं; परमात्मा को खोजने चला था। खोजते-खोजते कबीर तो खो ही गया। और जिस क्षण कबीर खोया, उसी क्षण परमात्मा से मिलन हुआ। यह मिलन बड़ा विरोधाभासी है। खोजी तो चला गया, तब खोज पूरी हुई–खोजी के जाने पर। तो मिलन कहां? पहले कबीर था; अब परमात्मा है। मिलन कहां? कबीर तो अब नहीं है। जब तक कबीर था, तब तक परमात्मा नहीं था। अब परमात्मा है, तो कबीर नहीं है। ऐसी दशा है प्रेम की। कबीर ने कहा है : प्रेम गली अति सांकरी, तामे दो न समाय। इसका तुमने एक अर्थ तो सदा लिया है कि प्रेमी और प्रेयसी दो एक साथ न समा सकेंगे। उनको एक हो जाना पड़ेगा। इसका एक और गहरा अर्थ है: प्रेम में मस्तिष्क और हृदय भी न समा सकेंगे। एक ही समा सकता है। क्यों उठता है मस्तिष्क से। खुजलाहट है मस्तिष्क की। उसका कोई मूल्य भी नहीं है। उठना स्वाभाविक है। लेकिन अब धीरे-धीरे स्वभाव से भी ऊपर उठो, ताकि परम स्वभाव मिले। ''मैं तुम्हीं से पूछती हूं, मुझे तुमसे प्यार क्यों है?' नहीं, इसका कोई उत्तर नहीं हो सकता। वृक्ष हरे क्यों हैं? चांद-तारों में रोशनी क्यों है? आकाश में बादल क्यों भटकते हैं? सुबह सूरज क्यों निकलता है? पक्षी प्रभात में गीत क्यों गाते हैं? वैज्ञानिक से पूछोगे, कुछ न कुछ उत्तर खोज लाएगा। लेकिन उस उत्तर से भी कुछ हल नहीं होता। वैज्ञानिक से पूछोगे, वृक्ष हरे क्यों हैं? तो कहेगा, क्योंकि क्लोरोफिल वृक्षों में है। लेकिन इससे कुछ हल नहीं हुआ। यह कोई प्रश्न का उत्तर न हुआ; सिर्फ प्रश्न को टालना हुआ। फिर प्रश्न खड़ा हो जाएगा कि वृक्षों में क्लोरोफिल है क्यों? फिर अटक गयी बात। डी.एच.लारेंस ने ठीक उत्तर दिया है। एक छोटे बच्चे के साथ घूमता है लारेंस एक बगीचे में। और जैसा बच्चे पूछते हैं; बच्चे ने पूछाः वृक्ष हरे क्यों हैं? व्हाय द ट्रीज आर ग्रीन? और डी.एच.लारेंस ने कहाः दे आर ग्रीन, बिकाज दे आर ग्रीन। वृक्ष हरे हैं, क्योंकि हरे हैं। और बच्चा राजी हो गया। और बच्चा हंसा। और बच्चे को बात जंची। बच्चे जैसे सरल हो जाओ, तो तुम्हें मेरी बात समझ में आ जाएगी; मैं जो कह रहा हूं। बस, प्रेम है। जैसे वृक्ष हरे हैं-अकारण। इस जगत में कारण नहीं है। कारण की खोज बड़ी क्षुद्र है। इस जगत में कारण है ही नहीं। यह जगत इसीलिए तो लीला कहा गया है। खेल है; कारण नहीं है।। तुम एक मकान बना रहे हो; उसमें कारण होता है कि रहोगे। और एक छोटा बच्चा ताश के पत्तों को जमाकर मकान बना रहा है। इसमें क्या कारण है? तुम बाजार जा रहे हो। इसमें कारण है। दुकान जाना है। धंधा करना है। पैसा कमाना है। 245
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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