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________________ एस धम्मो सनंतनो ऐसी याद दिलायी महाकाश्यप ने ः स्मरण करो-स्मरण करो—पूर्व के उत्पादित ध्यानों का स्मरण करो। इतने जोर से कि एक क्षण को भूल ही गया होगा कि कैदी के हाथ में जंजीरें हैं। एक क्षण को भूल ही गया होगा कि मृत्यु प्रतीक्षा कर रही है। एक क्षण को भूल ही गया होगा कि मेरे चारों तरफ सिपाही खड़े हैं। यह महाकाश्यप की उज्ज्वल, भव्य उपस्थिति, यह महाकाश्यप का दिव्यरूप, यह महाकरुणा! बरस गयी होगी उस पर! नहा गया होगा इसमें। एक क्षण को भूल ही गए बीच के जो वर्ष आए-स्त्री के साथ भाग जाना, संन्यास छोड़ देना, चोरी करना, पाप करना, पकड़े जाना—जैसे कोई दुख-स्वप्न समाप्त हो गया। आंख खुल गयी। एक क्षण को यह दस-पंद्रह वर्षों का जो समय रहा होगा, पुछ गया, अलग हो गया। फिर लौट गया उस घड़ी में जहां से गिरा था। फिर उस घड़ी में थिर हो गया। और ध्यान रखना, आदमी के संबंध में यह समझ लेना बहुत-बहुत जरूरी है। आदमी ऐसा ही है, जैसा तुम्हारा रेडियो। सब स्टेशन उपलब्ध हैं। सिर्फ जो स्टेशन तुम्हें पकड़ना हो, उस पर कांटे को ले जाना जरूरी है। पाप का स्टेशन भी उपलब्ध है। तुम उसमें संलग्न हो जाओ, तो पापी हो जाते हो। पुण्य का स्टेशन भी उपलब्ध है; एक क्षण में कांटा हट जाए और पुण्य पर लग जाए, तो तुम पुण्य को उपलब्ध हो जाते हो। मनुष्य में सारी संभावनाएं हर समय मौजूद हैं। जिस संभावना की तरफ तुम्हारी चेतना बह उठे, वही वास्तविक हो जाती है। इसे खूब गहरे पकड़ लो। पापी से पापी व्यक्ति एक क्षण में पुण्यात्मा हो सकता है। कुछ ऐसा नहीं कि तुमने दिल्ली लगा दिया रेडियो पर, तो अब गोवा नहीं लग सकता। कुछ ऐसा नहीं कि गोवा लग गया, तो अब काबुल नहीं लग सकता। सारी दुनिया की ध्वनि तरंगें तुम्हारे रेडियो के पास से गुजर रही हैं; तुम जिसे पकड़ लोगे, तुम्हारा रेडियो उसी को प्रतिध्वनित करने लगेगा। ऐसा ही मनुष्य है। ध्यान क्या है? ध्यान है परम सत्य की तरफ तुम्हारी तरंगों को जोड़ देना। होश क्या है? वह जो है-वस्तुतः जो है-उसके साथ अपना संबंध जोड़ लेना। बेहोशी क्या है ? जो नहीं है, उसमें खो जाना। मूर्छा क्या है ? नींद में पड़ जाना, यंत्रवत हो जाना। न तो कोई पापी है, न कोई पुण्यात्मा है। अगर तुम पापी बने हो, यह तुम्हारा चुनाव है। अगर तुम पुण्यात्मा हो, यह तुम्हारा चुनाव है। न कोई संसारी है, न कोई संन्यासी। तुम्हारे भीतर दोनों मौजूद हैं। तुम जिससे जुड़ जाओ, वही हो जाते हो। तुम जैसा संकल्प कर लो, वही हो जाते हो। तुम संसारी हो जाते हो। तुम संन्यासी हो जाते हो। और तुम कभी विचार करके देखना; कभी खोजबीन करना। दुकान पर 84
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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