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बद्ध को हुए पच्चीस सौ साल हो गए, लेकिन जिनको भी थोड़ी सी
-समझ है, उन्हें आज भी उनकी सुगंध मिल जाती है। जिन्हें समझ नहीं थी, उन्हें तो उनके साथ मौजूद होकर भी नहीं मिली। जिनमें थोड़ी संवेदनशीलता है, पच्चीस सौ साल ऐसे खो जाते हैं कि पता नहीं चलता; फिर बुद्ध जीवंत हो जाते हैं। फिर तुम्हारे नासापुट उनकी गंध से भर जाते हैं। फिर तुम उनके साथ आनंदमग्न हो सकते हो। समय का अंतराल अंतराल नहीं होता; न बाधा बनती है। सिर्फ संवेदनशीलता चाहिए।
ओशो एस धम्मो सनंतनो
भाग 11