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________________ मंजिल है स्वयं में बुद्ध से किसी ने पूछा है...। क्योंकि बुद्ध ने कहाः किसी के सामने नहीं झुकना है। कोई पहुंच गया होगा तार्किक व्यक्ति। उसने देखा कि बुद्ध कहते हैं : किसी के सामने नहीं झुकना; और लोग बुद्ध के सामने ही झुक रहे हैं! और लोग कह रहे हैं; बुद्धं शरणं गच्छामि। संघं शरणं गच्छामि। धम्मं शरणं गच्छामि। बुद्ध की शरण आता हूं; संघ की शरण आता हूं; धर्म की शरण आता हूं। किसी तार्किक ने देखा होगा कि यह क्या हो रहा है! और बुद्ध कहते हैं : किसी के सामने झुकना मत। तो उसने पूछा कि यह आप कैसे स्वीकार कर रहे हैं! लोग आपके सामने झुक रहे हैं! बुद्ध ने कहा कि नहीं; मेरे सामने कोई नहीं झक रहा है। लोग झक रहे हैं। अभी लोग इतने कुशल नहीं हो पाए हैं, इसलिए मेरा सहारा लेकर झुक रहे हैं। मगर मेरे सामने नहीं झुक रहे हैं। जैसे छोटे बच्चे को हम पढ़ाते हैं, तो कहते हैं, ग गणेश का। पुराने जमाने में कहते थे। अब कहते हैं : ग गधा का। उसको गधा या गणेश से जोड़ना पड़ता है ग को, नहीं तो बच्चे को ग समझ में नहीं आता। हां, गणेशजी की मूर्ति दिख जाती है, तो वह समझ जाता है कि ठीक, ग गणेश का। __फिर जिंदगीभर थोड़े ही ग गणेश का! फिर जब भी ग आए, तभी पढ़ना पड़े ग गणेश का, तो फिर पढ़ना ही मुश्किल हो जाए। फिर तो ग गणेश का, और आ आम का, और इसी तरह अगर पढ़ाई करनी पड़े, तो पढ़ाई क्या हो पाएगी! फिर तो एक लाइन भी पढ़ नहीं पाओगे। इतनी चीजें आ जाएंगी कि भटक ही जाओगे। पंक्ति का तो अर्थ खो जाएगा। फिर धीरे-धीरे गणेशजी छूट जाते हैं, गधाजी भी छूट जाते हैं। फिर ग ही शुद्ध रह जाता है। तो बद्ध ने कहाः जैसे छोटे बच्चे को चित्र का सहारा लेकर समझाते हैं, ऐसे ये अभी छोटे बच्चे हैं। मैं तो सिर्फ ग गणेश का। जल्दी ही ये प्रौढ़ हो जाएंगे, फिर मेरी जरूरत न होगी। फिर मेरे बिना सहारे के झुक जाएंगे। जैसे मां बच्चे को चलाती है हाथ पकड़कर। फिर जब बच्चा चलने लगता है, हाथ अलग कर लेती है। ऐसे सदगुरु चलाता है। फिर जब बड़ा हो जाता है, प्रौढ़ हो जाता है व्यक्ति, हाथ अलग कर लेता है। फिर इस बुद्ध के वचनों में ये जो तीन शरण हैं–त्रिरत्न-ये भी समझने जैसे हैं। पहला है : बुद्धं शरणं गच्छामि। बुद्ध एक व्यक्ति हैं। फिर दूसरा है : संघं शरणं गच्छामि। वह बुद्ध से बड़ा हो गया मामला। दूसरा चरण आगे का है। बुद्ध के ही नहीं, जितने बुद्ध हुए हैं, उन सबके संघ की शरण जाता हूं। एक बुद्ध से इशारा लिया, सहारा लिया। एक बुद्ध को पहचाना। एक बुद्ध से संबंध जोड़ा। फिर आगे चले। जैसे घाट से उतरे, तो सीढ़ियों पर चले। फिर सीढ़ियों से उतरे, तो नदी में गए। . 347
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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