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मंजिल है स्वयं में
सकोगे; हृदय भी न धड़केगा। उसके सहारे धड़क रहा है। वही धड़का रहा है। वही धड़कन है। वही श्वास ले रहा है, वही श्वास है। नाम उसे कुछ भी दो। परमात्मा दो, आत्मा दो, या जो चाहो कहना, कहो। लेकिन तुम्हारे भीतर मौजूद है।
इस जगत का जो मूलस्रोत है, वह तुम्हारे भीतर मौजूद है। अकेले हो—ऐसी बात ही छोड़ो। यह अकेले का खयाल तुम्हें डरा देगा।
ऐसा हुआ : मोहम्मद भाग रहे हैं; उनके पीछे दुश्मन लगे हैं। उनका एक संगी-साथी भर उनके साथ है। वे जाकर एक गुफा में बैठ जाते हैं। घोड़ों की आवाज आ रही है। दुश्मन करीब आता जाता है। साथी बहुत घबड़ाया हुआ है। अंततः उसने कहा : हजरत! आप बड़े शांत दिखायी पड़ रहे हैं। मुझे बहुत डर लग रहा है। मेरे हाथ-पैर कंप रहे हैं। घोड़ों की टापें करीब आती जा रही हैं। दुश्मन करीब आ रहा है। और ज्यादा देर नहीं है। मौत हमारी करीब है। आप निश्चित बैठे हैं! हम दो हैं; वे हजार हैं। आप निश्चित क्यों बैठे हैं?
मोहम्मद हंसे। और मोहम्मद ने कहा हम तीन हैं, दो नहीं। उस आदमी ने चारों तरफ गुफा में देखा कि कोई और भी छिपा है क्या! मोहम्मद ने कहा यहां-वहां मत देखो। आंख बंद करो, भीतर देखो; हम तीन हैं। और वह जो एक है, वह सर्वशक्तिमान है। फिकर न करो। निश्चित रहो। उसकी मर्जी होगी, तो मरेंगे। और उसकी मर्जी से मरने में बड़ा सख है। उसकी मर्जी होगी, तो बचेंगे। उसकी मर्जी से जीने में सुख है। अपनी मर्जी से, जीने में भी सुख नहीं है। उसकी मर्जी से मरने में भी सुख है। इसलिए मैं निश्चित हूं। कि वह जो करेगा, ठीक ही करेगा। जो होगा, ठीक ही होगा। इसलिए मेरी श्रद्धा नहीं डगमगाती। तूने यह बात ठीक नहीं कही कि हम दो हैं। तीन हैं। और हम दो एक दिन नहीं थे और एक दिन फिर नहीं हो जाएंगे। वह जो तीसरा है, हमसे पहले भी था; हमारे साथ भी है। हमारे बाद भी होगा। वही है। हमारा होना तो सागर में तरंगों की तरह है।
लेकिन उस साथी को भरोसा नहीं आता है। उसने कहाः ये दर्शनशास्त्र की बातें • हैं। ये धर्मशास्त्र की बातें हैं। आप ठीक कह रहे होंगे। मगर इधर खतरा जान को है।
पर वही हुआ, जो मोहम्मद ने कहा था। घोड़ों की टापों की आवाज बढ़ती गयी, बढ़ती गयी; फिर एक क्षण आया-रुकी और फिर दूर होने लगी। दुश्मन ने यह रास्ता थोड़ी दूर तक तो पार किया, फिर सोचकर कि नहीं; इस रास्ते पर वे नहीं गए हैं; दूसरे रास्ते पर दुश्मन मुड़ गए। ।
मोहम्मद ने कहाः देखते हो! उसकी मर्जी है, तो जीएंगे। अपनी मर्जी से यहां जीने में सिर्फ जद्दोजहद है। उसकी मर्जी से जीने में बड़ा रस है। और जब मैं तुमसे कहता हूं उसकी मर्जी, तो मैं यही कह रहा हूं कि तुम्हारे अंतर्तम की मर्जी। वह कोई दूर नहीं, दूसरा नहीं।
तो यह तो खयाल छोड़ ही दो कि 'चरण मेरे रुक न जाएं। आज सूने पंथ पर
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