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________________ मंजिल है स्वयं में आदमी वहीं का वहीं है। आदमी कहीं गया नहीं है। आदमी मुर्दो को पूजता है। क्यों? क्योंकि मुर्दो के द्वारा कोई क्रांति नहीं होती, तुम सुरक्षित रहते हो। जिंदा जीसस तुम्हारे जीवन को बदल डालेंगे। जिंदा जीसस से दोस्ती करोगे, प्रेम लगाओगे, तो बदलाहट होगी। मरे हुए जीसस से बदलाहट नहीं होती। मरे हुए जीसस को तो तुम बदल दोगे। तुम्हें वे क्या बदलेंगे। इसलिए आदमी अतीत के साथ अपने मोह को बांधकर रखता है। इसी मोह के कारण इतनी सड़न है, इतनी गंदगी है; धर्म के नाम पर इतना अनाचार है। धर्म के नाम पर इतना रक्तपात है, युद्ध, हिंसा। धर्म के नाम पर जितने लोग मारे गए हैं, और किसी नाम पर नहीं मारे गए हैं। और धर्म प्रेम की बात करता है! और प्रार्थना की बात करता है। और परिणाम में हत्या होती है। लेकिन फिर भी बुद्ध ठीक कहते हैं कि संतों का धर्म जराजीर्ण नहीं होता है। जो जराजीर्ण हो जाता है, वह संतों का धर्म नहीं है। दूसरा प्रश्नः चरण मेरे रुक न जाएं। आज सूने पंथ पर बिलकुल अकेली चल रही मैं रात के नीरव तिमिर में नव-शिखा-सी जल रही मैं डर रही हूं मैं कहीं मुझ पर शलभ मंडरा न आएं। चरण मेरे रुक न जाएं। मौन का संगीत मुझको लग रहा है रागिनी-सा स्नेह मेरा बन गया इस शून्य की निराजनी-सा प्राण का लघुदीप श्वासों के अनिल से बुझ न जाए। चरण मेरे रुक न जाएं। दूर मंजिल, कौन जाने कब मिले मुझको किनारा 325
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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