________________
एस धम्मो सनंतनो
नियम, जो इस प्रकृति को चला रहा है। धर्म का वही अर्थ है बुद्ध के वचनों में, जो गीता में भगवान का अर्थ है, परमात्मा का अर्थ है। धर्म का वही अर्थ है बुद्ध के वचनों में, जो लाओत्सू के वचनों में ताओ का अर्थ है।
और बुद्ध की बात आधुनिक विज्ञान को भी बहुत जमती है; क्योंकि बुद्ध व्यक्ति की बात नहीं करते हैं, नियम की बात करते हैं। धर्म यानी नियम। विज्ञान को भी जंचती है बात। यह तो विज्ञान को भी मानना पड़ेगा कि कोई नियम अनुस्यूत है, नहीं तो प्रकृति कैसे डोलती! चांद-तारे कैसे चलते? चलाने वाला कोई नहीं है। लेकिन चलने की प्रक्रिया के पीछे कोई नियम है। जैसे गुरुत्वाकर्षण का नियम चीजों को अपनी तरफ खींच लेता है, ऐसा कोई नियम है।
एक महानियम इस सारे जगत को व्याप्त किए है। बुद्ध ने उसे धर्म कहा है।
धम्मारामो धम्मरतो धम्मं अनुविचिन्तयं।
धर्म में ही डूबो। धर्म की ही सोचो। धर्म को ही खाओ। धर्म को ी पीयो। धर्म की ही श्वास लो। धर्ममय हो जाओ। धम्माराम हो जाओ।
धम्मं अनुस्सरं भिक्खु सद्धम्मा न परिहायति।
फिर मैं रहूं न रहूं, तुम कभी गिरोगे नहीं। मैं उस धर्म की ही एक भंगिमा हूं। मैं उस धर्म की ही एक अभिव्यक्ति हूं। अभिव्यक्ति तो खो जाएगी, लेकिन जिसकी अभिव्यक्ति है, वह सदा है।
बुद्ध यह कह रहे हैं कि बुद्धपुरुष धर्म की ही एक लहर हैं। धर्म है सागर जैसा, बुद्धपुरुष हैं लहर जैसे। लहरें उठती हैं, खो जाती हैं; सागर सदा है।
यह धम्माराम ने ठीक किया भिक्षुओ। ऐसा ही तुम भी करो। ऐसा ही तुम्हारा जीवन भी हो जाए-एकांत, मौन, ध्यान-ताकि किसी दिन समाधि का फूल खिले।
एस धम्मो सनंतनो।
आज इतना ही।
314