SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान जाकर विवाद हल शायद हो, शायद न हो। अगर भीतर के बुद्ध के पास जाओगे, तो निश्चित हल हो जाएगा। तुम्हारा बुद्धत्व ही विवाद की निष्पत्ति बनेगा । वे पांचों भगवान के चरणों में उपस्थित हुए और उन्होंने भगवान से पूछा : भंते ! इन पांच इंद्रियों में से किसका संवर कठिन है ? भगवान हंसे और बोले... । हंसे, क्योंकि उन पांचों को किसी को भी इससे प्रयोजन नहीं है कि किस इंद्रिय का संवर कठिन है। उन्हें सत्य से कुछ लेना-देना नहीं है। वे पांचों अपने को सिद्ध करने आए हैं। पांचों अकड़कर खड़े हैं। पांचों चाहते हैं, भगवान उनका समर्थन करें। इसलिए हंसे। मूढ़ता पर हंसे। इतने दिन आंख झुकाकर रखी; इतने दिन भोजन का त्याग किया; इतने दिन एकांत में रहे! और फिर उठा आखिर में विवाद ! दुर्गंध उठी अंत में, सुगंध का कुछ पता नहीं। इस दुर्दशा पर हंसे। इस मनुष्य की दयनीयता पर हंसे। इस मनुष्य की मूढ़ता पर हंसे। भिक्षुओं ! उन्होंने कहा : संवर दुष्कर है। इस इंद्रिय का संवर, उस इंद्रिय का संवर—ऐसा विवाद व्यर्थ है । संवर दुष्कर है; जागना दुष्कर है। समता की स्थिि पाना दुष्कर है। और तुममें से किसी ने भी उस स्थिति को पाया नहीं है। तुम अभी दमन में ही लगे हों। असली कठिनाई तो वहां है, जहां तुम जागो और तुम्हारे जागने के कारण संवर सध जाए; साधना न पड़े। साधु वही जो सध जाए; साधना न पड़े। कबीर ने कहा हैः साधो ! सहज समाधि भली। सहज समाधि ! उसी को बुद्ध संवर कहते हैं। वही बुद्ध की भाषा में संवर है । सहज समाधि ! क्या अर्थ हुआ ? अर्थ होता है : जैसे तुम्हारे घर में आग लगी है, और तुम्हें दिखायी पड़ गया कि आग लगी है, और तुम निकलकर भागे और बाहर हो गए। यह सहज समाधि । तुम्हें दिखायी पड़ा कि आग लगी है, अब भीतर रुकोगे कैसे? दिख गया, आग लगी है, बाहर चले गए। लेकिन तुम्हारे घर में आग लगी है और तुम अंधे हो, और कोई आया पड़ोसी और तुमसे कहता है : भई ! बाहर निकलो, घर में आग लगी है ! तुम कहते हो : छोड़ो भी जी! कहां की बातें कर रहे हो ! कोई घर लूटना है मेरा ? कैसी आग ? कहां की आग? मुझे कुछ नहीं दिखायी पड़ता है । और जब तक मुझे नहीं दिखायी पड़ता, मैं कैसे भागू ? लेकिन अगर पड़ोसी बहुत समझदार हो, और समझाने में कुशल हो और तुम्हें समझा दे, और राजी कर दे कि घर में आग लगी ही है, तो तुम बेमन से, जबर्दस्ती अपने को घसीटते हुए घर के बाहर निकालो। निकलना नहीं चाहते। निकलना पड़ रहा है। अब इस पड़ोसी से कैसे झंझट छुड़ाएं! यह पीछे ही पड़ा है, तो निकलना 301
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy