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समाधि के सूत्र : एकांत, मौन, ध्यान
तो खुमारी कायम थी। वे भूल गए कि किसके पक्ष में हैं। तो विपरीत की तरफ से बोल गए। और घंटेभर जब बोले...। उनका जो सहयोगी था, उसने कई बार उनका कोट इत्यादि खींचा। मगर वे पीए ही हुए थे, तो वे उसका हाथ झटक दें। उनको और क्रोध आ रहा था। क्रोध आता तों और उनका तर्क प्रखर होता जा रहा था। वे रुके नहीं। __दूसरा, विपरीत का वकील भी हैरान था, कि अब मेरे लिए कुछ बचा ही नहीं! मजिस्ट्रेट भी हैरान था कि अब होगा क्या! और जो विपरीत पार्टी थी, वह चकित थी। और जो हरि सिंह गौर की पार्टी थी, वह चकित थी कि मार डाला, अपने ने ही मार डाला। इनको हो क्या गया! दिमाग खराब हो गया!
जब घंटेभर बाद वे रुके-सफाया करके बिलकुल, तो उनके सहयोगी ने कहाः आपने मार डाला! अपने आदमी को मार डाला! आप भूल गए। उन्होंने कहा : तू घबड़ा मत।
उन्होंने फिर शुरू किया। उन्होंने कहा ः अभी मैंने वे दलीलें दी, जो मेरा विरोधी पक्ष का वकील देगा। अब मैं उनका खंडन शुरू करता हूं। और उन्होंने खंडन भी उसी कुशलता से किया। और मुकदमा जीते भी।
तर्क वकील है। तर्क की कोई निष्ठा नहीं है। जो तर्क को अपने साथ ले ले, उसी के साथ हो जाता है। तो हर चीज के लिए तर्क दिया जा सकता है। और मजा ऐसा है कि जिस तर्क से बातें सिद्ध होती हैं, उसी से असिद्ध भी होती हैं। ... जैसे कि ईश्वर को मानने वाला कहता है : ईश्वर होना ही चाहिए, क्योंकि दुनिया है। घड़ा होता है, तो कुम्हार होना चाहिए। बिना बनाए कैसे बनेगा? इतना विराट सृष्टि का फैलाव! ईश्वर होना ही चाहिए, बनाने वाला होना ही चाहिए। बिना बनाए कैसे बन सकता है? यह उसका तर्क है।
नास्तिक से पूछो।
वह कहता है: हम मानते हैं। यह तर्क बिलकुल सही है। अब हम पूछते हैं : ईश्वर को किसने बनाया? अगर हर बनायी गयी चीज का-अगर हर चीज का, जो है-बनाने वाला होना चाहिए, तो ईश्वर का बनाने वाला कौन है?
आस्तिक कहता है : यह नहीं पूछा जा सकता। ईश्वर को किसी ने नहीं बनाया। आस्तिक कहता है कि कभी तो तुम्हें मानना ही पड़ेगा न एक जगह जाकर कि इसको किसी ने नहीं बनाया; नहीं तो फिर तो यह चलता ही जाएगा: अ को ब ने बनाया; ब को स ने बनाया। चलता ही जाएगा! इसका कोई अंत नहीं होगा। तो आस्तिक कहता है कि एक जगह तो रुकना होगा न। हम ईश्वर पर रुकते हैं।
नास्तिक कहता है: हम भी राजी हैं। एक जगह रुकना होगा, तो सृष्टि पर ही क्यों न रुक जाएं? स्रष्टा तक जाने की जरूरत क्या है?
तर्क एक ही है; दोनों के काम पड़ता है। मगर दोनों में से किसी को भी सत्य की कोई आकांक्षा नहीं है। मैं ठीक!
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