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________________ एस धम्मो सनंतनो भगवान के जेतवन में विहरते समय पांच ऐसे भिक्षु थे जो पंचेंद्रिय में से एक-एक का संवर करते थे। कोई आंख का, कोई कान का, कोई जीभ का। एक दिन उन पांचों में बड़ा विवाद हो गया कि किसका संवर कठिन है। प्रत्येक अपने संवर को कठिन और फलतः श्रेष्ठ मानता था। विवाद की निष्पत्ति न होती देख अंततः वे पांचों भगवान के चरणों में उपस्थित हुए और उन्होंने भगवान से पूछा : भंते! इन पांच इंद्रियों में से किसका संवर अति कठिन है? । भगवान हंसे और बोलेः भिक्षुओ! संवर दुष्कर है। संवर कठिन है। इसका संवर या उसका संवर नहीं-संवर ही कठिन है। भिक्षुओ। ऐसे व्यर्थ के विवादों में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि विवाद मात्र के मूल में अहंकार छिपा है। इसलिए विवाद की कोई निष्पत्ति नहीं हो सकती। विवादों में शक्ति व्यय न करके समग्र शक्ति संवर में लगाओ। सभी द्वारों का संवर करो। संवर में दुखमुक्ति का उपाय है। इस दृश्य को ठीक से समझ लें, फिर सूत्र समझ में आना आसान हो जाएंगे। पहली बात, संवर शब्द में गहरे जाना जरूरी है। संवर, या संयम, या समता या सम्यक्त्व, या समाधि, या संबोधि, या संबुद्ध-सब एक ही मूल धातु से निष्पन्न होते हैं—सम। __ भारत ने जितनी श्रेष्ठ दशाएं चित्त की खोजी हैं, सभी को सम से निर्मित शब्दों से इंगित किया है : समाधि, संबोधि, संबुद्ध। इस सम धातु का क्या अर्थ है? सम का अर्थ होता है : जहां व्यक्ति ऐसी दशा में आ जाए, जैसे तराजू तब आता है, जब कांटा बिलकुल मध्य में होता है। दोनों पलड़े समान हो जाते हैं, समतुल हो जाते हैं। __ मनुष्य के मन में दुख है, सुख है; असफलता है, सफलता है; अंधेरा है, उजाला है; जीवन का मोह है, मृत्यु का भय है। ये सारे द्वंद्व जब सम हो जाते हैं; न जीवन का मोह, न मृत्यु का भय; न सफलता की आकांक्षा, न विफलता से बचाव; न सुख की खोज, न दुख से भागना-ऐसी स्थिति सम है। सम की अवस्था में शून्य अपने आप निष्पन्न होता है। क्योंकि धन और ऋण जब बराबर हो जाते हैं, एक-दूसरे को काट देते हैं। सीधा गणित है। धन और ऋण जब बराबर हो गए, तो एक-दूसरे को काट देते हैं; बचता है शून्य। वह शून्य ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उस शून्य का नाम ही सम है। उस शून्य की दशा में ले जाने वाले सब उपाय, और उस दशा में पहुंचने के बाद की सब भंगिमाएं सम शब्द से उदघोषित की गयी हैं। सोचो। परखो। कभी क्षणभर को तुम भी इस समता में आ सकते हो। कभी 284
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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