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एस धम्मो सनंतनो
अब बुद्ध का पड़ाव पास में ही था, दो-चार घर के पास ही होगा। शायद वहीं से रोज निकलता होगा। लेकिन निकलते वक्त मुंह फेर लेता होगा, या कानों में अंगुलियां डाल लेता होगा। हालांकि कानों में अंगुलियां डालने की जरूरत नहीं, क्योंकि लोग वैसे ही बहरे हैं! आंख उस तरफ कर लेता होगा। हालांकि कोई जरूरत नहीं, क्योंकि लोग आंख के रहते भी देखते कहां हैं!
जल्दी-जल्दी निकल जाता होगा कि कहीं कोई जान-पहचान का आदमी न मिल जाए और कहे कि आओ, आज तो सत्संग कर लो। कहीं कौशल नरेश न मिल जाएं सत्संग से आते हुए–कि अरे, कभी आते नहीं! कहीं लाज-संकोच में, किसी की बात के प्रभाव में फंस न जाऊं! उस रास्ते से न निकलता होगा। दूसरे रास्तों से जाता होगा। बचता होगा।
कौशल नरेश ने कहा : भंते! उसने बड़ा बुरा कर्म किया, जो आप जैसे बुद्ध के पास ही विहार में रहते हुए न दान दिया, न धर्म-श्रवण किया और अपनी इतनी संपत्ति को छोड़कर अंततः मर ही गया न! काम क्या आया!
अब ये कौशल नरेश किससे कह रहे हैं? इनको भी यह समझ में नहीं आया कि वह संपत्ति अपनी नहीं है, जिसको घर ढो लाए। अपनी न दें; कम से कम जो अपनी नहीं है, उसको तो दान कर दें! इन्हें यह भी याद नहीं आ रहा है कि सात दिन दूसरे की संपत्ति घर ढोने में बुद्ध को भूल गए थे। वह बेचारा तो अपनी संपत्ति को बचाने में भूला था; ये तो दूसरे की संपत्ति लूटने में भूल गए थे! यह भी दिखायी नहीं पड़ता। __ कुछ बड़ा मजा है। इस सत्य को ठीक से समझना। हमें दूसरों के कृत्य दिखायी पड़ते हैं, उनके मनोभाव नहीं दिखायी पड़ते। हमें अपने मनोभाव दिखायी पड़ते हैं, अपने कृत्य नहीं दिखायी पड़ते। और यह एक बड़ी जटिल मनोवैज्ञानिक गुत्थी है।
जैसे कोई आदमी चोरी करता है। तो हमें उसका कृत्य दिखायी पड़ता है कि इसने चोरी की। हमें यह नहीं दिखायी पड़ता कि इसके भीतर मनोभाव क्या थे। उस चोर को स्वयं अपना चोरी का कृत्य नहीं दिखायी पड़ता। उसको अपने मनोभाव दिखायी पड़ते हैं। उसके मनोभाव समझो।
इसलिए चोर कहेगाः मुझे कोई समझता नहीं है। मुझे कोई समझ नहीं पाता।
तुम सभी यही कहते हो कोई मुझे समझता नहीं! पत्नी पति को नहीं समझती; पति पत्नी को नहीं समझता। बाप बेटे को नहीं समझता; बेटा बाप को नहीं समझता। भाई-भाई को नहीं समझता। कोई किसी को समझता ही नहीं! इस दुनिया में हरेक को एक ही शिकायत है, कोई मुझे समझता नहीं। . __ कारण क्या होगा इस शिकायत का? यह इतनी सार्वभौम है! कारण यही है। तुम्हें अपना मनोभाव दिखायी पड़ता है।
जो आदमी चोरी करने गया, उसके मन में भी खयाल उठा कि चोरी करना ठीक
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