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________________ एस धम्मो सनंतनो | एक बहुत प्राचीन वचन है मिश्र के शास्त्रों में, कि इसके पहले कि गुरु को शिष्य --चुने, गुरु शिष्य को चुन लेता है। मैं तुम्हें इसकी याद दिलाना चाहता हूं। तुमने कहा ः 'मुझे अपना मान न मान तू, तुझे मैंने अपना बना लिया।' इसके पहले कि तुमने मुझे अपना बनाया, मैंने तुम्हें अपना बना लिया। अन्यथा तुम मुझे अपना न बना पाते। शिष्य तो अंधेरे में भटक रहा है। शिष्य को तो अपने आप का भी पता नहीं है, दूसरे को तो अपना कैसे बनाएगा? शिष्य को तो रोशनी का भी पता नहीं; अगर रोशनी सामने भी आ जाएगी, तो पहचान भी न पाएगा। हम पहचानते भी उसी को हैं, जिसे हमने पहले जाना हो। रास्ते से कार गुजरी; तुमने पहचान लिया कि कार है। लेकिन एक आदिवासी को ले आओ जंगल से, जिसने कार नहीं देखी। रास्ते से कार निकलेगी। वह भी ' देखेगा। आंख में उसकी दिखायी पड़ेगा। आंख तो तुमसे अच्छी उसके पास होगी। साफ-सुथरी होगी। जंगल से आया होगा। धूल-धवांस भी नहीं होगी। शहर का धुआं भी नहीं होगा। स्कूल की पढ़ायी-लिखायी में चश्मा भी नहीं चढ़ा.होगा। आंख तो उसकी तुमसे बहुत बेहतर होगी; मीलों तक देखने वाली होगी। कार उसे बिलकुल साफ दिखायी पड़ेगी। लेकिन पहचान में कुछ भी न आएगा। वह यह न कह सकेगा: यह कार है। वह चौंककर खड़ा हो जाएगा। उसको कुछ समझ में नहीं आएगा कि यह है क्या! अगर पूछेगा भी तो कुछ अजीब सा प्रश्न पूछेगा। पूछेगा कि यह कौन जानवर! यह क्या जा रहा है! और इसका मुंह भी दिखायी नहीं पड़ता; पूंछ भी दिखायी नहीं पड़ती! सींग भी नहीं है। मामला क्या है? किस तरह का जानवर? किस तरह का पशु? चौंककर घबड़ा जाएगा। और कार के निकल जाने के बाद, अगर तुम उससे कहो कि कार का वर्णन करके बताओ, तो न बता सकेगा। हालांकि देखा उसने, लेकिन प्रत्यभिज्ञा नहीं हो पायी। पहचान नहीं हो पायी। वर्णन कैसे होगा? शिष्य तो अंधेरे में जीया है; रोशनी आ भी जाए सामने, तो भी पहचान न सकेगा। रोशनी आंख के सामने खड़ी हो, तो आंखें तिलमिला जाएंगी। आंखें शायद बंद हो जाएं। अंधेरे का आदी है; रोशनी को देखकर आंख बंद करके फिर अपने अंधेरे में खो जाएगा। नहीं; तुम ने मुझे अपना माना, वह इसीलिए संभव हो पाया कि मैंने तुम्हें, तुम्हारी समझ के पहले भी, अपना मान लिया है। तुम अगर मेरे करीब आ सके, तो सिर्फ इसीलिए आ सके हो कि मैंने तुम्हें पुकारा है। अन्यथा तुम करीब न आ सकोगे। यहां ऐसे लोग भी आ जाते हैं, जिन्हें मैंने पुकारा नहीं है। वे आते हैं और चले जाते हैं। उनके लिए यह सराय है। जिज्ञासा, कुतूहल ले आता है कि देखें, क्या 186
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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