________________
एस धम्मो सनंतनो
जैसे तुम डरते हो गहरे पानी में जाने में। और कोई कहता है : घबड़ाओ मत, मैं किनारे पर खड़ा हूं। तुम जाओ। जरूरत होगी, तो मैं हूं। मैं कूद पडूंगा। बचा लूंगा। तुम जाते हो।
जरूरत कभी पड़ती नहीं। क्योंकि वह गहराई तुम्हारी ही गहराई है। उसमें डूबकर आदमी मिटता नहीं, पहली दफा होता है। इसलिए डूबने में कोई खतरा ही नहीं है। न डूबो, तो ही झंझट है। डूब गए, तब तो कोई खतरा नहीं है। डूब गए, तो पहुंच गए। लेकिन जिसने गहराई नहीं जानी, वह डरता है।
गुरु इतना ही करता है कि तुम्हारे झूठे डर को...। तुमसे अगर वह कहे कि यह डर झूठा है; घबड़ाओ मत; कोई कभी डूबा नहीं है। या डूब भी गए जो, वे पहुंच गए डूबकर; तो शायद तुम भाग खड़े होओगे। तुम कहोगे, क्या पक्का भरोसा कि कोई कभी डूबा नहीं! और न डूबा हो कोई, मुझे तो लगता है कि मैं डूब जाऊंगा। मैं असहाय; मैं अल्प शक्तिवान; इस विराट सागर में अकेला जाऊं-नहीं होगा।
या अगर गुरु कहे तुमसे सच्ची बात-कि डूब गए, तो पहुंच गए। डूबना सौभाग्य है। मृत्यु महाजीवन का द्वार है। तब तो तुम इस आदमी को बिलकुल ही छोड़कर भाग जाओगे। यहां रुकना भी खतरनाक है! मिटने कोई नहीं आता गुरु के पास; होने आता है। लेकिन होने की प्रक्रिया मिटना है।
तो गुरु ये बातें नहीं कहता। इन बातों को छिपाकर रखता है। यह तो तुम जानोगे, तब जानोगे। तुम्हें आश्वासन देता है : घबड़ाओ मत, मैं तो खड़ा हूं। देखते नहीं मुझे कि इतनी गहराइयों में तैरता हूं। तुम डूबोगे, तो मैं बचा.लूंगा। ___यह एक झूठ को दूसरे झूठ से सहारा देकर तुम्हें हिम्मत, तुम्हें साहस देने की
चेष्टा है। यह उपाय है। इस भांति तुम उतर जाते हो। उतर गए, तो तुम स्वयं जानोगे कि बचाने की कोई जरूरत न थी। बचाना तो महंगा पड़ जाता। उतरकर तो डूबना ही है। डूबकर गहराई हो जाना है। उसी गहराई में समाधि है, निर्वाण है।
तो गुरु को तुम्हें बचाने कभी जाना नहीं पड़ता। गुरु तो तुम्हें इस बहाने भेज रहा है कि बचा लूंगा, घबड़ाओ मत; जाओ तो।
एक दफा गए, तो खुद ही स्वाद लग जाएगा। और डूबने का स्वाद लग गया, तो राज समझ में आ गया। जब तुम पा लोगे, तब तुम कहोगे: अरे! यह तो अपने से हो गया! तब तुम जानोगे भलीभांति कि गुरु को कुछ भी न करना पड़ा।
फिर भी तुम अनुग्रह मानोगे, यद्यपि गुरु ने कुछ भी नहीं किया। इतना तो किया कि तुम एक व्यर्थ की बात से डरे थे, तुम्हें सहारा दिया। उस समय सहारा बड़ा जरूरी था।
अब यह जरा जटिल मामला है। सहारा गुरु देता भी नहीं, क्योंकि सहारे की कोई जरूरत नहीं है। और देता भी है। क्योंकि तुम झूठ हो। तुम अंधेरे में खड़े हो। तुम्हें कुछ दिखायी नहीं पड़ता। तुम्हें सहारे की जरूरत है; तो तुम्हें सहारा देता है।
176