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________________ एस धम्मो सनंतनो दे सकते हैं। इसमें देवता उत्तर नहीं दे सके। यह तो बात कछ जंचती नहीं। तुमसे कोई पूछे : दानों में कौन दान श्रेष्ठ? तुम भी कुछ उत्तर दोगे, सही-गलत की बात और। __ उत्तर तो दिए गए होंगे। लेकिन कोई उत्तर समाधानकारक नहीं था। कोई उत्तर ऐसा नहीं था कि उसको सुनते ही चित्त शांत हो जाए; उसको सुनते ही सत्य का अनुभव हो जाए; उसको सुनते ही, श्रवण करते ही चित्त का विकल्प-जाल टूट जाए-और लगे कि हां, यही ठीक है। ___कोई ऐसा सत्य नहीं खोजा जा सका, जो स्वयं-सिद्ध मालूम पड़ा हो। तब देवताओं ने इंद्र से पूछा। इंद्र है देवताओं का राजा। सोचा, शायद इंद्र को पता हो। वह भी इसका उत्तर न दे सका। ___ नहीं कि उसने उत्तर न दिए होंगे। जरूर उत्तर दिए होंगे। उत्तर तो कोई भी देता है। तुम गधे से गधे को पूछो; वह भी उत्तर देगा। तुम जरा किसी से भी पूछो, कोई भी बात पूछो। उसे पता हो कि न हो, मगर वह उत्तर देगा। उत्तर देने का मौका कोई नहीं चूकता। क्योंकि ज्ञानी बनने का मौका मुफ्त में कौन चूके! किसी से भी पूछो, जिन बातों का उन्हें कोई अनुभव नहीं है...। ऐसा आदमी तुम्हें मुश्किल से मिलेगा, जो कहेगा : मुझे पता नहीं है। ऐसा आदमी मिले, उसके चरण पकड़ लेना। क्योंकि उस आदमी में कुछ सचाई है। नहीं तो हरेक उत्तर दे रहा है। कुछ भी पूछे जाओ, उत्तर दे रहा है। कुछ पता नहीं, और उत्तर दे रहा है। जिन्होंने खुद कभी जिंदगी में कुछ नहीं किया, वे हरेक को सलाह दे रहे हैं! जो अपनी सलाहों पर कभी नहीं चले–मौका आ जाए, फिर भी नहीं चलेंगे-वे दूसरों को सलाह दे रहे हैं। दूसरों को मार्ग दिखा रहे हैं! यहां अंधे अंधों को मार्ग दिखा रहे हैं! और इसलिए सारे लोग गड्डों में पड़े हैं—नेता भी और अनुयायी भी। इंद्र ने भी उत्तर दिया होगा। राजा है देवताओं का। ऐसे स्वीकार तो नहीं कर लिया होगा-कि मुझे पता नहीं। पहले तो अकड़कर बैठा होगा सिंहासन पर। कहा होगा: अच्छा सुनो। सब समझाया होगा। मगर कोई तृप्त नहीं हुआ। मजबूरी में बुद्ध के पास आना पड़ा। उत्तर तो बुद्धों के पास ही हैं। बुद्धत्व में ही उत्तर है। जागे हुए में ही उत्तर है। जो भीतर ज्योतिर्मय हुआ है, उसी के पास उत्तर है। भगवान ने क्या कहा? ___भगवान ने कहा : धर्म के अनुभव में सब प्रश्नों के उत्तर हैं। तुम्हारे प्रश्न अलग-अलग नहीं हैं। तुम पूछते हो, दानों में कौन दान श्रेष्ठ? रसों में कौन रस श्रेष्ठ? रतियों में कौन रति श्रेष्ठ? और तृष्णा-क्षय को सर्वश्रेष्ठ क्यों कहा है ? ये कोई अलग-अलग प्रश्न नहीं हैं। एक ही प्रश्न है। और एक ही इनका उत्तर है। ___ मगर सोचने मात्र से समाधान न कभी हुआ है, न होगा। जानने से समाधान 170
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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