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________________ एस धम्मो सनंतनो 'धर्म का दान सब दानों में बढ़कर है। धर्म-रस सब रसों में प्रबल है। धर्म में रति सब रतियों में बढ़कर है। और तृष्णा का विनाश सारे दुखों को जीत लेता है और धर्म की उपलब्धि उससे होती है, इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ है।' पहले इस दृश्य को हृदयंगम कर लें। एक बार देवताओं में प्रश्न उठा...। देवताओं के पास कुछ और काम है भी नहीं। व्यर्थ की बकवास! देवता करेंगे भी क्या? काम तो वहां कुछ बचता नहीं! काम तो समाप्त हो गया। कल्पवृक्षों के नीचे बैठकर सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं! देवता सुख ही सुख में जीते हैं। जीवन का बाहर का व्यवसाय तो बंद हो जाता है। जब बाहर का व्यवसाय बंद हो जाता है, तो चित्त के सब व्यवसाय शुरू हो जाते हैं। तब बड़ा सोच-विचार उठता है। बड़े विवाद उठते हैं। खयाल करना, दर्शनशास्त्र तभी पैदा होता है, जब पेट ठीक से भरा हो। भूखे भजन न होई गोपाला। भूखे भजन हो भी नहीं सकता। जीवन की सीढ़ियां हैं। शरीर की जरूरतें पूरी हो जाएं, तो मन की जरूरतें पैदा होती हैं। शरीर की जरूरतें अधूरी रहें, तो मन की जरूरतें कभी पैदा नहीं होती। अब कोई भूखा मर रहा है, उसको तुम कहो कि यह बीथोवन का संगीत सुनो। वह तुम्हारा सिर फोड़ देगा। वह कहेगा : मैं भूखा मर रहा हूं। बीथोवन का संगीत! आप कह क्या रहे हैं? आप मेरा अपमान कर रहे हैं! और भूखे पेट में बीथोवन का संगीत जाएगा कैसे! भूखा संगीत सुन कैसे सकता है? कोई भूखा मर रहा है, और तुम कहते हो, पढ़ो कालिदास की कविताएं। इनसे बड़ा आनंद आएगा! वह कहता है: कुछ रोटी मिल जाए! कालिदास आप पढ़ो; रोटी मुझे दे दो! एक सीढ़ी है। शरीर की जरूरत पूरी हो, तो मन की जरूरत। मन की जरूरत में काव्य है, संगीत है, कला है। फिर मन की जरूरतें पूरी हो जाएं, तो आत्मा की जरूरतें पैदा होती हैं। जिसने अभी संगीत नहीं सुना, और जिसने काव्य का रसास्वादन नहीं किया, वह धर्म के जगत में प्रवेश न कर सकेगा। और जिसने अभी दर्शन-शास्त्र के ऊहापोह में उलझन नहीं ली, नहीं डोला, वह भी धर्म में प्रवेश नहीं कर सकेगा। धर्म आखिरी जरूरत है। धर्म अंतिम है। वह आत्मा की जरूरत है। इसलिए जब कोई देश समृद्ध होता है, तो वह धार्मिक होता है। जब कोई देश गरीब हो जाता है, अधार्मिक हो जाता है। __इसलिए भारत जैसे देश की अभी धार्मिक होने की संभावना नहीं है। अभी भारत के कम्युनिस्ट होने की संभावना है, धार्मिक होने की संभावना नहीं है। इसलिए लोग हैरान भी होते हैं। पश्चिम से लोग आ रहे हैं पूरब में, तलाश 168
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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