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________________ एस धम्मो सनंतनो पाए थे, आज कीचड़ फंसाने को उत्सुक भी नहीं है, कीचड़ को कुछ लेना-देना भी नहीं है और फंस गया है। ऐसी दीन दशा हो जाती है। सभी की हो जाती है। तुम्हारा मन तुमसे कहेगा- नहीं, अपनी नहीं होगी। सावधान रहना। मन की सुनना मत, मन सभी से ऐसा कहता है। मन सभी को ऐसा धोखा देता है। मन मूढ़ता का सूत्र है । मन की जिसने सुनी, वह मूढ़ रह गया। मन की जिसने मानी, वह कभी जान नहीं पाया। मन न जानने की दिशा में ले जाता है। मन आंखों को धुएं से भरता है । मन यही कहेगा कि ठीक है, हो गया होगा कमजोर, लेकिन हम विटामिन लेंगे, इंजेक्शन लेंगे, दवा जारी रखेंगे, डाक्टर हैं, अब तो मेडिकल साइंस इतनी बढ़ गयी, अब कोई ऐसा दुर्बल होने की जरूरत है ! कितनी ही मेडिकल साइंस बढ़े और कितने ही तुम विटामिन लो और कितनी ही दवाइयां पीते रहो और कितने ही टानिक खाते रहो, कुछ फर्क न पड़ेगा, देर- अबेर तुम ऐसे ही कमजोर हो जाओगे ! कमजोर हो जाना ही पड़ेगा, क्योंकि जो शक्ति दी गयी है, वह क्षणभंगुर है। वह विदा होगी। दो- -चार साल आगे कि पीछे, उससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता। आखिरी हिसाब में उससे कुछ अंतर नहीं आता है। आज कीचड़ में फंस गया है वह महाबलवान हाथी । बुढ़ापे ने उसे अति दुर्बल कर दिया है। उसने बहुत प्रयास किए, लेकिन कीचड़ से अपने को न निकाल सका सोन निकाल सका । उसकी पीड़ा समझो। और खयाल रखना, अगर यह जवान होता हाथी तो यह कीचड़ से अपने को निकाल लेता। इसमें एक बात और, बात में बात छिपी है जब तक तुम जवान हो, तब तक संसार से निकलना आसान है। जब बूढ़े हो जाओगे, तो कीचड़ से निकलना मुश्किल हो जाएगा। आमतौर से लोग उलटा तर्क लिए बैठे हैं। लोग सोचते हैं, बूढ़े जब हो जाएंगे तब राम-नाम जप लेंगे, अभी क्या जल्दी है ? बूढ़े जब हो जाएंगे, तब संन्यास ले लेंगे, अभी क्या जल्दी है ? अभी तो जवान हैं! अभी तो जिंदगी है! अभी तो राग-रंग है ! अभी तो भोग लें। जब मौत करीब आने लगेगी और हाथ-पैर जर्जर होने लगेंगे और जरा द्वार खटखटाने लगेगी, तब हो जाएंगे, संन्यस्त हो जाएंगे। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि आप जवान आदमी को संन्यास दे देते हैं! संन्यास तो बूढ़ों के लिए है । किसने तुमसे कहा ? तुम्हारे मन ने कहा होगा। अगर मन की सुनो तो मन तो यह कहता है कि संन्यास मुर्दों के लिए है। बूढ़ों के लिए भी नहीं, मन कहता है, जब अर्थी पर चढ़ जाओ तब ले लेना संन्यास । एक स्त्री मेरे पास आती थी। सामाजिक कार्यकर्त्री थी, बंबई में उसका बड़ा नाम था। वह संन्यास लेना चाहती थी। उम्र उसकी थी कोई पैंसठ साल, मगर वह कहती थी, अभी? स्त्रियां तो पैंसठ साल में भी शायद अपने को जवान ही समझती हैं। 322
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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