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________________ ध्यान का दीप, करुणा का प्रकाश ने भी खूब अच्छा रास्ता चुन लिया है—प्रेम की ओट में चल रहा है। खलील जिब्रान की एक छोटी कहानी है। पृथ्वी बनी थी नयी-नयी, और परमात्मा ने सौंदर्य और कुरूपता की देवी को पृथ्वी पर भेजा। वे दोनों देवियां उतरी, स्वर्ग से पृथ्वी तक आते-आते धूल-धवांस से भर गयी थीं, तो उन्होंने कहा स्नान कर लें इसके पहले कि गांव में चलें। __ वे दोनों झील में उतरी, वस्त्र उन्होंने उतार दिए, नग्न होकर झील में उतरीं। सौंदर्य की देवी तैरती हुई दूर झील में चल गयी। जब सौंदर्य की देवी दूर चली गयी, तो कुरूपता की देवी झटपट बाहर आयी और उसने सौंदर्य के वस्त्र पहने और भाग गयी। जब तक कुरूपता की देवी भाग गयी तब कहीं होश आया सौंदर्य की देवी को। वह भागी आयी तट पर, उसने देखा उसके कपड़े जा चुके हैं, और अब तो सुबह हुई जा रही थी, लोग चलने-फिरने लगे थे, अब कोई और उपाय न था, तो उसने कुरूपता के वस्त्र पहन लिए। खलील जिब्रान की कहानी कहती है, तब से सौंदर्य कुरूपता के वस्त्र पहने हुए है और कुरूपता सौंदर्य के वस्त्र पहने हुए है। तब से सौंदर्य चेष्टा कर रहा है कुरूपता को पकड़ लेने की कि अपने वस्त्र वापस ले ले, लेकिन कुरूपता हाथ नहीं आती। इस दुनिया में कुरूप सुंदर बनकर चल रहा है, इस दुनिया में अप्रेम प्रेम बनकर चल रहा है। असत्य ने सत्य के वस्त्र पहन रखे हैं। __ इसलिए तुमने खयाल किया, जितना असत्यवादी हो, उतनी ही चेष्टा करता है कि जो मैं कह रहा हूं बिलकुल सत्य है, बिलकुल सत्य है। हजार दलीलें जुटाता है, कसमें खाता है कि यह बिलकुल सत्य है। असत्य को चलाने के लिए सत्य सिद्ध करना ही पड़ता है। सत्य को चलाने के लिए कुछ भी सिद्ध नहीं करना पड़ता है। सत्य अपने पैर से चलता है। असत्य को सत्य के उधार पैर चाहिए। वे तो भूल ही गए खेल अपना। वे तो भूल ही गए किसलिए आए थे और क्या होने लगा। वे तो रम गए। . ऐसा चुंबकीय आकर्षण उन्होंने कभी जाना न था। न देखा था ऐसा सौंदर्य। ___ यह कुछ और ही बात थी। यह कुछ देह की बात न थी। यह कुछ देहातीत था। यह कुछ पार की किरणें बुद्ध की देह से झलक रही थीं। बड़े-बूढ़ों को शायद दिखायी भी न पड़तीं। ये बच्चे तो सरल थे, इनकी आंखें ताजी थी, इसलिए दिखायी पड़ गया। बुद्धों को जानने के लिए, पहचानने के लिए बच्चों के जैसी सरलता ही चाहिए। ___न देखा था ऐसा प्रसाद, ऐसी शांति, ऐसा आनंद, ऐसा अपूर्व उत्सव; वे भगवान में ही डूब गए। वह अपूर्व रस, वह अलौकिक रंग उन सरल-हृदय बच्चों को लग गया। फिर वे रोज आने लगे। फिर वे हर बहाने से आने लगे। फिर कोई भी मौका मिलता तो भागे और जेतवन पहुंचे। वे भगवान के पास आते-आते धीरे-धीरे ध्यान में भी बैठने लगे। 267
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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