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समझाते हैं: ध्यान का अर्थ होता है - जो संपदा तुम ले कर आए हो इस जगत में, जो तुम्हारे अंतरतम में छिपी है, उसे उघाड़ कर देख लेना, पर्दे को हटाना, अपनी निजता को अनुभव कर लेना । वह जो भीतर निनाद बज रहा है सदा से सुख का, उसकी प्रतीति कर लेना। फिर तुम बाहर सुख न खोजोगे । फिर बाहर के सब सुख दुख जैसे मालूम होंगे। भीतर का सुख इतना पूर्ण है, ऐसा परात्पर, ऐसा शाश्वत, उसकी एक झलक मिल गयी तो सारे जगत के सब सुख दुख जैसे हो जाते हैं। ... . ऐसे ही ध्यान को उपलब्ध व्यक्ति इस जगत में सुख की थोड़ी सी गंगा को उतार ला सकते हैं। ऐसे ही भगीरथ सुख की गंगा को पुकार सकते हैं।
इन प्रवचनों में ओशो ध्यान का आह्वान करते हैं— जो कि सभी संबुद्धों का आह्वान है।
आओ, तो हम ध्यान की इस सनातन धारा में स्नान करें। आओ, हम भीतर लौट चलें और सुख की गंगा में डुबकी लगाएं, बहें। आओ, हम वह भीतरी नाद सुनें, निनाद सुनें, जिनकी ओर सतत ये बुद्धों के वचन इंगित कर रहे हैं। आओ, हम अंतस - उपवन में रमण करें।
आओ, हम ओशो का आह्वान सुनें । 'एस धम्मो सनंतनो' का यही अभिप्राय है।
स्वामी चैतन्य कीर्ति संपादक : ओशो टाइम्स इंटरनेशनल