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________________ क्षण है द्वार प्रभु का . यह तो ऐसा ही है कि तुम एक खंभे को पकड़कर खड़े हो जाओ और जोर से खंभे को पकड़े रहो और चिल्लाओ कि खंभे ने मुझे पकड़ लिया है। खंभा तुम्हें कैसे पकड़ेगा! तुम्हें पकड़े रहना हो तो मुझे कोई एतराज भी नहीं है, तुम पकड़े रहो, मगर झूठ तो न बोलो! तुम मजे से पकड़े रहो, तुम्हारी मौज! तुम्हारी जिंदगी है, अगर तुम्हें खंभे पकड़ने में मजा आ रहा है, तुम खंभे पकड़कर मजा लो। किसी को इसमें एतराज होना भी नहीं चाहिए। लेकिन तुम यह तो मत कहो कि खंभे ने मुझे पकड़ लिया है! यह तो तुम बड़ी तरकीब की बात कर रहे हो। यह तो ऐसा हुआ कि अब तुम यह कह रहे हो कि मैं करूं भी क्या, मेरे छोड़े तो छूटने वाला नहीं, खंभे ने मुझे पकड़ा है! संसार तुम्हें पकड़े हुए नहीं है। तुम जब जाओगे तो संसार नहीं रोएगा। तुम जब जाओगे, तुम्हारी अर्थी निकलेगी, तो तुम्हारे मकान से आंसू न गिरेंगे। मकान को पता ही न चलेगा कि कब आप आए और कब आप गए! __मैंने सुना है, एक हाथी अपनी मस्त चाल से एक पुल पर से गुजरता था और एक मक्खी उसके ऊपर बैठी थी। जब पुल हिलने लगा हाथी के वजन में, तो मक्खी ने कहा, बेटा, हमारा वजन काफी ज्यादा मालूम पड़ता है। हमारा! हाथी थोड़ा चौंका कि यह कौन बोल रहा है ? उसने कहा, कौन है तू? उसने कहा, अरे, तुझे पता नहीं! मैं तेरे ऊपर बैठी हूं, मैं तेरी सवारी कर रही हूं। हाथी ने कहा, जब तक तू बोली न थी, मुझे पता ही न था कि तू बैठी भी है। अभी भी मैं देख नहीं पा रहा कि तू कहां है और तू कौन है? __तुम जब जाओगे तब तुम्हारी तिजोड़ी रोएगी तुम्हारे लिए? तुम्हारे हाथ से रुपया गिरेगा, तो तुम सोचते हो कि रुपया तड़फेगा कि वे प्यारे हाथ छूट गए! नहीं, रुपए को पता भी नहीं है कि आप उसे पकड़े थे। और मकान को पता भी नहीं है कि आप उसमें रह रहे हैं और मालिक बन बैठे हैं। तुम्हीं बन बैठे हो, यह तुम्हारा ही मन का जाल है। संसार ने किसी को भी न पकड़ा है, न संसार किसी को पकड़ सकता है। हम पकड़े हुए हैं। यह बहुत बुनियादी है समझ लेना कि हमने पकड़ा है। क्योंकि अगर यह हमारी समझ में आ जाए कि हमने पकड़ा है, तो छोड़ना न छोड़ना हमारी मौज की बात है। और मैं तुमसे कहता भी नहीं कि छोड़ो। मैं तो कहता हूं, इतना जान लेना ही पर्याप्त है कि हमने पकड़ा है, बात छुट गयी, खतम हो गयी। बचा क्या? .. मुट्ठी में रुपया है, तुम्हें समझ में आ गया कि मैंने पकड़ा है, अब मुट्ठी में रुपया रहे भी तो भी मुट्ठी में नहीं है। तुमने जान लिया कि पकड़ मेरी है। रुपए को क्या लेना-देना ! रुपए की तरफ से कोई संबंध मुझसे नहीं है। रुपया तो असंग है। मैं नहीं था तब भी था, मैं चला जाऊंगा तब भी रहेगा। यहीं पड़ा रहेगा। तो थोड़ी सी देर के लिए मैंने ही भ्रम खा लिया है कि मेरा है। कितना मेरा-तेरा हम मचा देते हैं! 49
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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